60 हजार में कैसे बचेंगे वन

गगरेट  – ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे के बीच जंगल बचाने के प्रयास आखिर कैसे पूरे हो सकते हैं, जब प्रदेश सरकार ही जंगलों को बचाने के लिए गंभीर न हो। गर्मी के मौसम में जंगलों में लगने वाली आग हर साल करोड़ों रुपए की वन संपदा स्वाह कर रही है, लेकिन इस पर चिंता जाहिर करने से ज्यादा सरकार भी कदम बढ़ाने को तैयार नहीं है। यही वजह होगी कि गर्मी के मौसम से पहले जंगलों को आग से बचाने के लिए फायर लाइन विकसित करने के लिए सरकार बजट उपलब्ध करवाने में भी कंजूसी कर रही है। इस साल वन मंडल ऊना के अंतर्गत आने वाले जंगलों को बचाने के लिए फायर लाइन क्लीयरेंस के लिए महज 60 हजार रुपए का बजट उपलब्ध हो पाया है। अब इस बजट के सहारे आखिर किस हद तक जंगल बचाए जा सकते हैं इसका आकलन साधारण व्यक्ति भी कर सकता है। हर साल जिले में आग लगने की घटनाओं से करोड़ों रुपए की वन संपदा जलकर स्वाह हो जाती है। जाहिर है कि जंगलों में इन दिनों सूखा पड़ा घासफूस आग लगने की घटना के समय बारूद का काम करता है और कुछ ही पल में आग कई-कई किलोमीटर के क्षेत्र में फैल जाती है। शिवालिक की पहाडि़यों की गोद में बसे जिला ऊना के जंगलों में चीड़ व खैर के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं। चीड़ के पेड़ बिरोजा उत्पादन तो खैर के पेड़ कत्था उत्पादन के लिए जाने जाते हैं और हर साल इस प्रजाति के पेड़ आग लगने की स्थिति में जल रहे हैं। इस बार वन मंडल ऊना के लिए फायर लाइन विकसित करने को महज 60 हजार रुपए का बजट मिला है। ऐसे में जिला में रिजर्व व सरकारी जंगलों में भी आग से निपटने के माकूल प्रबंध नहीं हो पाया हैं। ऐसे  में आग इस बार भी जिला के जंगलों में तांडव कर सकती है।  वन मंडल अधिकारी यशुदीप सिंह ने वनों को आग से बचाने के लिए अब मनरेगा का सहारा लेने की पहल की है। इसके तहत मनरेगा मजदूरों की सहायता से जंगलों में फैले पड़े चिलारू को एकत्रित करने का निर्णय लिया गया है, ताकि जंगलों में लगने वाली आग को फैलने से रोका जा सके। अब मनरेगा के तहत कब तक इस मुहिम पर काम होता है यह देखने वाली बात होगी। यही नहीं बल्कि जंगलों में लगने वाली आग पर नजर रखने के लिए साठ फायर वाचर भी तैनात किए गए हैं।

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