गुजारा खर्चा देना पड़ा, तो मारकर दफना दी घरवाली

मामा-भानजे ने मिलकर दिया वारदात को अंजाम, नगरोटा बगवां के चाहड़ी में दो साल बाद हत्याकांड का पटाक्षेप

नगरोटा बगवां  – नगरोटा बगवां में दो साल पहले एक विवाहित महिला की हत्या कर शव को खेतों में दबाकर अपने पति धर्म निभाने का अनूठा तथा शर्मनाक मामला सामने आया है। ठानपुरी के परिवहन निगम में सेवारत एक कलियुगी पति को अपनी ही बीवी उस समय और भी बोझ लगने लग पड़ी थी, जब अदालत ने जनवरी, 2016 में गुजारा खर्चा देने के आदेश जारी कर दिए थे, जिसकी गुजारिश मृतका ने 2014 में की थी। आरोपी पति ने 4500 रुपए एक मर्तबा तो अदालत के आदेशों के मुताबिक दे दिए, लेकिन दो अगस्त, 2016 को दूसरी किस्त देने के चार दिन पहले ही एक योजनाबद्ध तरीके से अपनी बीवी की सांसें रोक दीं, ताकि गुजारा खर्चा देने की नौबत ही दोबारा न आए। यह मृतक महिला की ममता ही थी, जो अपने दो बच्चों से मिलने अकसर यहां आती-जाती रहती थी, जबकि पति पत्नी के रिश्तों में दरार 2014 में ही आनी शुरू हो गई थी तथा मृतका के लिए मायका ही एकमात्र ठिकाना शेष बन गया था। 27 जुलाई, 2016 का दिन था, जब बच्चों से मिलाने का वास्ता देकर मृतका शारदा को एक बार फिर यहां बुलाया गया तथा रात को चाहड़ी में बहन के घर ठहरने की योजना बनी। दो दिन बाद 29 जुलाई की रात ही शारदा देवी के लिए मनहूस साबित हुई, जब आरोपी पति ने अपने सगों का सहारा लेकर सात फेरों के सातों वचन सुनसान खेतों में रात के अंधेरे में सदा के लिए दफन कर दिए। उधर, घर वापस न पहुंची बेटी के लिए परेशान बूढ़े पिता मनोहर लाल ने 11 अगस्त को अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। समय का पहिया घूमता रहा तथा पीडि़त परिवार दर-दर न्याय की गुहार लगाता रहा। सरकार के संज्ञान में आने के बाद मामला मई, 2017 में सीआईडी ने संभाला, तो मामला परत-दर- परत खुलता चला गया, जिसका गुरुवार को एक साल के बाद ही पटाक्षेप हो गया।

कानून के लंबे हाथ

मृतका शाहपुर के मकरोटी गांव की थी, जो 2001 में ठानपुरी में व्याही गई थी। वह अपने पीछे एक लड़का तथा लड़की छोड़ गई है, जो परिवार के बिखराव के बाद से ही पिता के घर में रह रहे हैं। उधर, 22 महीनों के अंतराल के बाद गुरुवार को कानून ने अपने लंबे हाथ होने का सबूत दे दिया है, जिसका बड़े पैमाने पर स्वागत भी हुआ है। एक बार फिर साबित हुआ कि परफेक्ट क्राइम की अवधारण का कोई वजूद नहीं है।

बताओ…मेरी बेटी का क्या था कसूर

गुरुवार को वारदात की जगह पहुंचे मृतका शारदा देवी के बुजुर्ग पिता मनोहर लाल तथा भाई अजय कुमार रो-रो कर बेहाल थे तथा सामने खड़े आरोपियों से अपनी बेटी का कसूर पूछ रहे थे। कोई भी पिता कभी सपने में भी न सोच सकता कि जिसके लिए दिल पर पत्थर रखकर अपनी बेटी की सुरक्षा का जिम्मा सौंप कन्यादान कर ठंडक की सांस ली थी, वहीं जान का दुश्मन बनकर ऐसी दर्दनाक मौत दे दे, तो अपने ही फैसले पर पश्चाताप होना स्वाभाविक ही है ।

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