चांद के दीदार के साथ माह-ए-रमजान

जब इनसान यह महसूस करने लगता है कि मैं हलाल कमाई से हासिल किया गया खाना और पानी इस्तेमाल करने से खुद को रोक सकता हूं तो गलत काम करने से क्यों नहीं रोक सकता हूं। इनसान अकसर यह सोचता है कि वह चाहकर भी खुद को गुनाह करने से रोक नहीं पाता, मगर यह उसकी गलतफहमी है। रमजान उसे इसका एहसास कराती है…

इस्लाम में रमजान के पाक महीने में रोजा रखने के पीछे इस बात का तर्क दिया जाता है कि व्यक्ति अपनी बुरी आदतों से जैसे झूठ बोलना, शराब पीना, बुरा-भला कहना या कोई भी गलत काम नहीं करता है।  रमजान कभी 25 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है। रमजान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसके हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। इसके हर हिस्से को ‘अशरा’ कहा जाता है। कुरान में हर मुसलमान के लिए रोजा रखना जरूरी माना गया है। विश्वभर में मुसलमान पहली बार कुरान के उतरने की याद में पूरे महीने रोजे रखते हैं। रोजे के महीने में नशीले पदार्थ का सेवन पूरी तरह से मना है।

रूह को पाक करके अल्लाह के करीब जाने का मौका देने वाला रमजान का मुकद्दस (पवित्र) महीना हर इनसान को अपनी जिंदगी सही राह पर लाने का पैगाम देता है। भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है। हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होने वाले माह-ए-रमजान की शुरुआत इस साल 18 मई से हुई। खुद को हर बुराई से बचाकर अल्लाह के नजदीक ले जाने की यह सख्त कवायद हर मुसलमान के लिए खुद को पाक-साफ  करने का सुनहरा मौका होता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने रमजान की फजीलत पर रोशनी डालते हुए बताया कि रमजान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना या उसे पुनर्जीवित करना है। शरीयत की जबान में इस ताकत को ‘तकवा’ कहा जाता है।उन्होंने कहा कि रोजे में इनसान खुद को रोक लेता है। उसके सामने पानी होता है, लेकिन सख्त प्यास लगी होने के बावजूद रोजेदार उसे नहीं पीता। गलत बात होने के बावजूद खुद को गुस्सा होने से रोकता है। झूठ बोलने और बदनिगाही से परहेज करता है। जिंदगी में सारे गुनाह इसीलिए होते हैं, क्योंकि इनसान खुद को गलत काम करने से रोक नहीं पाता। सिर्फ  जानकारी की कमी की वजह से अपराध नहीं होते, बल्कि जानकारी होने के बावजूद खुद पर काबू नहीं रख पाने की वजह से उससे गुनाह हो जाते हैं। मौलाना नोमानी ने कहा कि रमजान में 30 दिन तक इस बात की मश्क(अभ्यास) कराई जाती है कि जो काम तुम्हारे लिए जायज है, उसके लिए भी तुम खुद को रोक लो। मौलाना महली ने कहा कि रमजान की फजीलतों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। इस दिन दुनिया में उतारा था कुरान शरीफ । जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें गरीबों की भूख का एहसास हो सकता है। उन्होंने कहा कि रमजान के महीने में ही कुरान शरीफ  दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में कुरान शरीफ  सुनना बेहद सवाब (पुण्य) का काम है।

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