‘दाग’ अच्छे नहीं हैं  

By: May 14th, 2018 12:05 am

हर माह आठ कत्ल, साल में 248 रेप और 1800 केस पेंडिंग। शांति का तमगा लिए हिमाचल में हर 30 मिनट बाद बड़ा क्राइम होता है। गणित ऐसा है तो सवाल भी पुलिस से ही होगा। जवाब में भले ही 1970 खाली पदों का हवाला दिया जाए, लेकिन ये दाग अच्छे नहीं हैं। प्रदेश में पुलिस विभाग की तस्वीर को पेश कर रहे हैं…खुशहाल सिंह

किसी भी समाज में विकास का महत्त्व तभी होता है, जब वहां शांति हो और हर आदमी चैन से जी सके। हालांकि पूरी तरह से समाज को अपराध मुक्त करना संभव नहीं है,लेकिन अपराध को कम करने का दायित्व सरकार और इसकी सुरक्षा एजेंसियों का होता है। हालांकि हिमाचल पहले शांत राज्यों में गिना जाता था, लेकिन अब यहां भी आपराधिक वारदातें तेजी से बढ़ने लगी हैं। हत्या, चोरी, डकैती, लूटपाट जैसी वारदातों के साथ ही नशे का जाल देवभूमि में फैल रहा है। हिमाचल में हर तीस मिनट में एक आपराधिक मामला दर्ज हो रहा है। बीते साल के आंकड़ों पर गौर करें तो यह पाया गया है कि राज्य में इस दौरान 17799 मामले दर्ज किए गए। यानी हर रोज 48 मामले पुलिस थानों में पहुंचे। राज्य में दर्ज होने वाले केसों में जिलावार स्थिति देखें तो बीते साल में कांगड़ा जिला में सबसे अधिक 3386 मामले दर्ज किए गए। वहीं, 2483 मामलों के साथ मंडी जिला दूसरे स्थान पर है, जबकि 2474 मामलों के साथ शिमला जिला तीसरे स्थान पर रहा है। इस अवधि के दौरान अन्य जिलों पुलिस जिला बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 805, बिलासपुर में 1232, चंबा   में 985, हमीरपुर में 858, किन्नौर में 292 , कुल्लू में 1213 , लाहुल-स्पीति में 160, सिरमौर  में 1194, सोलन में 1021 तथा ऊना जिला में 1657 मामले दर्ज किए गए। इनके अलावा रेलवे एंड ट्रैफिक में 11 मामले और सीआईडी में 28 मामले दर्ज किए गए।

हर महीने 8 कत्ल

हिमाचल जैसे शांत राज्य में हत्या जैसे संगीन जुर्म होने लगे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बीते साल राज्य में 99 लोगों को मौत के घाट उतारा गया। यानी हर माह औसतन आठ लोगों का कत्ल देवभूमि में हुआ है। इसके अलावा 69 मामले हत्या के प्रयास के दर्ज हुए हैं। जिलावार हत्याओं के मामलों को देखें तो कांगड़ा जिला 19 हत्याओं  के साथ पहले स्थान पर, शिमला जिला 16 हत्याओं साथ दूसरे स्थान पर और ऊना जिला 13 हत्याओं के साथ तीसरे स्थान पर रहा है। इस दौरान बीबीएन में 7, बिलासपुर में 4, चंबा में 4, किन्नौर में 4, कुल्लू में 9, सिरमौर में 7, सोलन में 5 मामले दर्ज हुए हैं। सुकून की बात यह रही है कि बीते साल हमीरपुर व लाहुल-स्पीति जिला में एक भी हत्या नहीं हुई है। वहीं इस साल भी राज्य में 21 लोगों को अब तक मौत के घाट उतारा जा चुका है। ऐसे में यहां भी लोगों में अब ऐसे अपराधों से खौफ होने लगा हैं।

1800 केसों की जांच पेंडिंग

देश में पुलिस केसों को पहले दर्ज नहीं करती और अगर कर भी दे तो समय पर इनकी जांच को पूरी नहीं करती। हिमाचल में हालांकि स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में अच्छी हो सकती है, लेकिन इसे बेहतर  नहीं माना जा सकता।   पुलिस थानों में बीते एक साल में दर्ज केसों में से करीब 1800 केसों में अभी तक जांच नहीं हो पाई है। इसकी एक बड़ी वजह स्टाफ की कमी भी है। लेकिन कुल मिलाकर यहां भी स्थिति इतनी अनुकूल नहीं है। इस तरह समय पर केसों की जांच न पूरी होने से अपराधियों के खिलाफ अदालत में ट्रायल शुरू नहीं हो पाता। ऐसे में पीडि़तों को न्याय नहीं मिल पाता क्योंकि कहा गया है कि न्याय में देरी का मतलब है न्याय नहीं किया गया।

सैलानियों ने बढ़ाया क्राइम

पहाड़ी राज्य को कुदरत ने खूबसूरती से संवारा है। यहां की कल -कल करती नदियां, झरने और मन को सुकून देने वाले रमणीय स्थान बरबस सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। लेकिन सैलानियों के बढ़ने के साथ ही यहां अपराध भी तेजी से बढ़ने लगा है। हिमाचल में देह व्यापार का धंधा जोर पकड़ रहा है।  यहां के कई होटलों में यह धंधा किया जा रहा है। कई होटलों में रेव पार्टियां चलती हैं। इसके लिए बाहर से कॉल गर्ल को बुलाया जाता है। यहां तक कि इंटरनेट पर भी खुलेआम इसके लिए बुकिंग की जाती है। हिमाचल में कई बार पुलिस ने देह व्यापार में शामिल लोगों को पकड़ा है, लेकिन फिर भी बड़ी मात्रा में यह गुपचुप तरीके से होटलों में चल रहा है। यही नहीं, पर्यटन के साथ हिमाचल में ड्रग्ज और नशे का धंधा भी तेजी से फैलने लगा है। हिमाचल के ग्रामीण इलाकों तक सैलानी पहुंच रहे हैं जो कि वहां से चरस, अफीम जैसे नशीले पदार्थ तस्करी करके बाहरी राज्यों और महानगरों में पहुंचा रहे हैं। यही नहीं, बाहरी राज्यों से भी सैलानी यहां ड्रग्ज की सप्लाई कर रहे हैं। इस तरह सैलानियों की आमद से जहां राज्य में विकास को गति मिली है, वहीं इससे नशे जैसी बुराइयां भी साथ आ रही हैं।

हिमाचल में महफूज नहीं बेटियां

हिमाचल भी अब महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गया्र है। इस पहाड़ी राज्य में महिलाओं के खिलाफ जुर्म सभी हदें लांघने लगा है। हत्या, बलात्कार जैसे वारदातें लोगों के सीने पर जख्म दे रही है। कोटखाई के महासू स्कूल की छात्रा के साथ हुई दरिंदगी को कौन भूल पाया है। आंकड़ों के अनुसार बीते साल हिमाचल में 248 मामले रेप के विभिन्न थानों में दर्ज किए गए हैं। महिलाओं की आबरू लूटने के मामले में कांगड़ा जिला के साथ मंडी भी अव्वल है। वहीं  किन्नौर और लाहुल-स्पीति में इस तरह की वारदातें न के बराबर हैं। आंकडों के अनुसार बीते एक साल में राज्य में कांगड़ा व मंडी जिला में दुष्कर्म के सबसे ज्यादा 37-37 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं शिमला में इस दौरान 29 मामले, सिरमौर में 26 मामलों दर्ज हुए हैं। बीबीएन में 10 मामले, बिलासपुर में 25 मामले, चंबा में 10 मामले, हमीरपुर में 18 मामले, किन्नौर में तीन मामले, कुल्लू में 19 मामले, लाहुल-स्पीति में एक मामला, सोलन में 19 मामले, ऊना में 14 मामले इस अवधि के दौरान दर्ज किए गए हैं। यही नहीं, इस साल भी राज्य में अब तक 71 मामले रेप के दर्ज किए जा चुके हैं।

कोटखाई से लेकर कसौली तक पुलिस ने खोई साख

हिमाचल में पुलिस की बड़ी नाकामी कोटखाई से लेकर कसौली तक देखने को मिली। इन वारदातों ने हिमाचल पुलिस की छवि ऐसी खराब की है जिसको सुधारना आसान नही होगा। कोटखाई में 16 साल की मासूम के साथ हुए गैंगरेप व मर्डर मामले में पुलिस ने उन मजदूरों को गिरफ्तार किया,जिनका इसमें अपराध साबित नहीं हो सका। वहीं इनमें से एक नेपाली मूल के युवक की थाने में हत्या कर दी गई और हिमाचल पुलिस के आईजी, एसपी और डीएसपी से लेकर कांस्टेबल रैंक तक के नौ कर्मियों को जेल की हवा खानी पड़ी। इससे पहले मंडी में एक युवक को एनडीपीएस के झूठे केस में फंसाने को लेकर भी हिमाचल पुलिस की छवि दागदार हुई है। वहीं अब कसौली में कब्जा छुड़ाने गई एक अधिकारी को दिनदहाड़े गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया।

पुलिस आधुनिकीकरण की गति धीमी

सीसीटीवी कैमरे, आधुनिक पैट्रोलिंग वाहन व आधुनिक हथियारों की कमी

हालांकि हिमाचल पुलिस आधुनिकीकरण की ओर  कदम जरूर उठा रही है, लेकिन इसकी गति बेहद धीमी है। इसमें संदेह नहीं कि हिमाचल में पुलिस ने क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक लागू किया है। राज्य में मौजूदा समय में करीब 141 पुलिस थाने सीसीटीएनएस से जुड़ चुके हैं। इनके अलावा चार पुलिस चौकियां भी इससे जोड़ी गई हैं।  आधुनीकीकरण योजना के तहत प्रदेश में सीसीटीवी कैमरों को व्यापक स्तर पर स्थापित किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। कुछ ही जगहों पर सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए गए हैं, लेकिन हालात ये हैं कि इनमें भी अधिकतर पुरानी तकनीक के हैं। ऐसे में रात के वक्त या धुंध के वक्त ये तस्वीरें साफ नहीं ले सकते। राष्ट्र्रीय राजमार्गों पर भी अभी आधुनिक पैट्रोलिंग वाहन नहीं है। इससे इन मार्गों पर न केवल हादसों बल्कि यहां पर अपराधों की भी आशंका बनी रहती है। कई जगह पुलिस थाने व चौकियां अपने  भवनों में नहीं चल रहीं। जवानों के लिए आवासों की भारी कमी है।  ऐसे में वे किराए के मकानों में रह रहे हैं। वहीं प्रदेश में कई थानों में वाहन पुराने भी हो गए हैं। इसके अलावा पुलिस के पास आधुनिक हथियारों की भी कमी है।

पुलिस विभाग में 1970 पद खाली

हिमाचल में ऊपरी स्तर पर अफसरों की भरमार है। उन्हें प्रोमोशन दी जा रही है, जबकि निचले स्तर पर स्टाफ की भारी कमी है। विभाग में मौजूदा समय में निचले स्तर पर करीब 1970 पद खाली चल रहे हैं। इनमें इंस्पेक्टर के 30 पद, सब-इंस्पेक्टर के 69 पद, एएसआई के 276 पद, हैड कांस्टेबल के 333 पद और कांस्टेबल के 1262 पद खाली चल रहे हैं। इस तरह एक ओर जहां जवानों की कमी है वहीं इनके ऊपर काम का भारी दबाव है। हालात ये हैं कि पुलिस के इन जवानों को कई बार चौबीस घंटों में भी डयूटी बजानी पड़ रही है।

मुस्तैदी से काम कर रही पुलिस

अपराधों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

— पुलिस अपराधों को रोकने के लिए बेहद गंभीर है। सभी पुलिस अधीक्षकों को निर्देश किए हैं कि आपराधिक वारदातों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं। पुलिस ने  इस साल के तमाम हत्या व रेप के केसों को सुलझाया है। वहीं, 2015 से लेकर 2017 तक के ऐसे सभी अपराधों को शीघ्र अतिशीघ्र सुलझाने के आदेश  दिए गए हैं। यही नहीं, लोग पुलिस के कामकाज से काफी हद तक संतुष्ट हैं।  हाल ही में सीडीएस-कॉमन कॉज की रिपोर्ट में हिमाचल पुलिस की कार्यशैली को सराहा गया है। हिमाचल इस सर्वे में पूरे देश में अव्वल रहा है। यहां के 71 फीसदी लोग इस सर्वे में पुलिस से संतुष्ट हुए हैं ,जबकि अन्य राज्यों में मात्र 10 फीसदी लोग ही वहां की पुलिस से संतुष्ट हो पाए हैं।

हिमाचल प्रदेश में अपराध तेजी से बढ़ रहा है, कैसे रोकेंगे?

— हिमाचल में अपराध राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। हिमाचल में आपराधिक मामले अधिक दर्ज होने की एक वजह केसों का आसानी से पुलिस द्वारा दर्ज करना है। एफआईआर में वृद्धि एनडीपीएस, फोरेस्ट एक्ट और माइनिंग एक्ट के मामलों में व्यापक पैमाने पर कार्रवाई से आई है। हालांकि राज्य में हत्या व रेप के मामलों में बीते चार माह में मामूली बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पुलिस ने इन मामलों को समय रहते सुलझाया है। शाहपुर में ब्लाइंड रेप व मर्डर के मामलों को 12 घंटे में सुलझाया गया। पालमपुर गैंगरेप के मुजरिम को भी पकड़ा गया है।

पुलिस को ढांचागत सुविधाएं दी जानी थी, उन पर कोई भी कार्य नहीं हुआ?

— पुलिस विभाग में न केवल ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है बल्कि आधुनिकीकरण के लिए भी विभाग द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं। पुलिस जवानों को आधुनिक हथियार उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। इसके अलावा पुलिस थानों व चौकियों में पर्याप्त वाहन दिए जा रहे हैं।

पुलिस के सामने नशा, साइबर अपराध जैसी चुनौतियां उभरकर सामने आई हैं?

— प्रदेश में नशे को रोकने के लिए व्यापक स्तर कार्रवाई की जा रही है। स्कूलों तक नशा न पहुंचे इसके लिए पुलिस को बेहद चौकसी बरतने को कहा गया है। पुलिस को स्कूलों के आसपास के ढाबों को चैकिंग के कड़े निर्देश दिए गए हैं। पूरे प्रदेश में नशे के खिलाफ पुलिस कार्रवाई कर रही है। वहीं साइबर अपराध को सुलझाने के लिए आधुनिक लैब भी स्थापित की जा रही है। पुलिस थानों व चौकियों में पुलिस जवानों की कमी को दूर करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

क्या कोटखाई से लेकर कसौली तक पुलिस की साख गिरी है ?

— ऐसे मामले फिर से न हों, इसके लिए पुलिस मुख्यालय से जारी आदेशों को अक्षरशः लागू करने की जम्मेदारी उच्चतम अधिकारियों को दी गई है।

साइबर अपराध ने बढ़ाई टेंशन

साइबर अपराध पूरे देश के साथ-साथ हिमाचल पुलिस के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। यह अपराध बेहद तेजी से फैल रहा है।  कुछ रुपए से लेकर 56 लाख तक के साइबर फ्रॉड हिमाचल में देखने को मिल चुके हैं। हिमाचल की बात करें तो बीते एक साल में ही साइबर अपराध के राज्य में 62 मामले दर्ज किए हैं। वहीं इस साल चार माह तक राज्य में करीब 30 मामले साइबर अपराधों को प्रदेशभर के थानों में दर्ज किए गए हैं। सोशल नेटवर्किंग अपराध भी हिमाचल में तेजी से बढ़ा है। इसमें फेसबुक पर लड़कियों की झूठी प्रोफाइल बनाना या उनका फेसबुक पर पीछा करना, व्हाट्सऐप पर परेशान करना या गलत मैसेज करने के अलावा ई-मेल व वेबसाइट हैक करने जैसे मामले हैं। वहीं शातिर कई लोगों को लॉटरी का झांसा या बीमा करवाने व लक्की ड्रा फ्रॉड आदि के नाम पर लूट रहे हैं।  हिमाचल में मौजूदा समय में एक मात्र साइबर थाना शिमला में काम कर रहा है। राज्य में एक मात्र साइबर थाना पूरे राज्य को डील नहीं कर सकता।

महिला थानों में स्टाफ का टोटा

प्रदेश में महिला थाने तो खोल दिए गए हैं, लेकिन इनके लिए भी अभी पर्याप्त स्टाफ नहीं है। अभी तक राज्य में महिला थानों के भी यही हालात हैं। राज्य में मौजूदा समय में आठ महिला थाने काम कर रहे हैं और सरकार ने इस बजट में दो जिलों चंबा और हमीरपुर में महिला थाने खोलने का ऐलान किया। वहीं सोलन, किन्नौर और लाहुल-स्पीति में महिला थाने खोले जाने हैं, लेकिन जहां महिला थाने है, वहां पर महिला स्टाफ की कमी है। इससे ये पूरी तरह अपने मकसद के अनुरूप काम नहीं कर पा रहे।

पांव पसार रहा नशा माफिया बड़ी चुनौती

पहाड़ी राज्य हिमाचल में नशा माफिया पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। हिमाचल में चरस, अफीम के साथ-साथ अब सिंथेटिक ड्रग्ज का कारोबार खूब पनप रहा है।  राज्य में जहां साल 2007 में एनडीपीएस के 233 मामले दर्ज किए गए थे वहीं साल 2017 में राज्य में 1010 रिकार्ड मामले दर्ज किए गए हैं। हालांकि एनडीपीएस मामले अधिक से अधिक दर्ज करना पुलिस की कामयाबी जरूर है,लेकिन इसके कहीं ज्यादा मामलों का पता नहीं चल पाता।    बीते एक साल की अवधि के दौरान राज्य में सबसे ज्यादा 245 मामले कांगड़ा जिला में दर्ज हुए। शिमला जिला में 131  , मंडी में 127  , कुल्लू  में 134 मामले इस दौरान दर्ज किए गए। वहीं बीबीएन के तहत 22 मामले, बिलासपुर में 49,  चंबा में 60,  हमीरपुर में 39,  सिरमौर में 50,  सोलन में 30,  ऊना में 81 मामले बीते एक साल में सामने आए हैं।

तीन क्विंटल चरस पकड़ी

आंकड़ों के अनुसार बीते साल में हिमाचल में 306 किलोग्राम चरस और 8.3 किलोग्राम अफीम पकड़ी गई है। यही नहीं इस दौरान पुलिस ने 250 ग्राम स्मैक, 3.417 ग्राम हेरोइन,  4.49 ग्राम ब्राउन शूगर, 74 ग्राम कोकीन भी बरामद की। इनके अलावा इस दौरान राज्य में पुलिस ने 1.34 लाख नशीली गोलियां, 1.05 लाख कैप्सूल,  3029 प्रतिबंधित सिरप की शीशियां और 53 नशीली इंजेक्शन बरामद किए गए। वहीं पुलिस ने राज्य में रीब 701 किलोग्राम चूरा-पोस्त और करीब 148 किलोग्राम गांजा भी बरामद किया है।

फोरेंसिक लैब्स की कमी

हिमाचल में फोरेंसिक जांच की व्यापक सुविधा नहीं हैं। यही वजह है कि अधिकतर वारदातों के वैज्ञानिक सबूत पूरी तरह से एकत्र नहीं हो पाते। कई संगीन मामलों में यह देखा जा चुका है। राज्य में फारेंसिक की सुविधा अभी केवल कुछ ही जगहों तक सीमित है। राज्य में मौजूदा समय में शिमला, मंडी और धर्मशाला में फारेंसिक लैंबे हैं जबकि इनको जिला स्तर पर स्थापित करने की जरुरत है।

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