बच्चों को डांटें, मगर प्यार से

बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अभिभावकों द्वारा उन्हें डांटना कतई अनैतिक और ज्यादती नहीं कहा जा सकता। हां, इस बात का ध्यान जरूर रहे कि बच्चों का कोमल मन आप की बेरुखी और डांट से चोटिल हो कर कोई गलत कदम न उठा ले।बच्चों के साथ प्रभावशाली बातचीत करने से उन्हें गलत कदम उठाने से न सिर्फ  रोका जा सकता है, बल्कि उसे सही राह भी दिखाई जा सकती है। कुछ महीने पहले फरीदाबाद में 2 छात्र लोकेश और भव्य घर से पार्क घूमने निकले, लेकिन फिर वापस नहीं लौटे। चिंतित माता-पिता ने अपहरण के भय से थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी, लेकिन कुछ दिनों बाद एक व्यवसायी की सूचना पर दोनों छात्र पुलिस को मिले। दरअसल, हफ्ते भर परिजन व पुलिस की नींद उड़ाने वाले दोनों छात्र मां-बाप की डांट से घर छोड़ कर भागे थे। इसी तरह मुंबई के वाकोला से 6 नाबालिग लड़कियां अपने घर से भाग निकली, जबकि उन के माता-पिता ऐसी किसी भी प्रकार की जबरदस्ती करने की बात से इनकार करते हैं। उन्हीं लड़कियों में से एक के पिता दयानंद सावंत का कहना है, बच्चों को पढ़ाई के लिए डांटना फटकारना कौन से माता-पिता नहीं करते। हमें उन के भविष्य की परवाह है। इसलिए ही तो ऐसा करते हैं। अब हाल ऐसा हो गया कि हम थोड़ा सा भी जोर से बच्चों को बोल दें, तो वे गलत कदम उठा लेते हैं। समय ऐसा आ गया है कि बच्चों को जोर से नहीं बोल सकते। इसलिए बच्चों को जो भी बात समझाएं प्यार से  समझाएं।

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