बागबानी प्रोजेक्ट में वर्ल्ड बैंक की शर्तें कैसे बदलेगी सरकार

1124 करोड़ की परियोजना पर विवाद, दुनिया भर में मशहूर हैं इटली के पौधे

शिमला— बागबानी मंत्री महेंद्र सिंह ने 1124 करोड़ रुपए के बागबानी विकास प्रोजेक्ट की समीक्षा का ऐलान तो किया है, परंतु अहम बात यह है कि आखिर प्रदेश सरकार वर्ल्ड बैंक द्वारा मंजूर शर्तों को कैसे बदलेगी।  वह भी तब जबकि केंद्र में बैठी भाजपा सरकार के समय में ही वर्ष 2016 में ये प्रोजेक्ट मंजूर हुआ था। हैरानी की बात है कि जिस प्रोजेक्ट में वर्तमान सरकार लोन की बात कर रही है, वह लोन नहीं, बल्कि उसमें 90 फीसदी ग्रांट है। इसके लिए खुद केंद्र की मोदी सरकार ने मंजूरी दी थी और तभी शर्तें भी वर्ल्ड बैंक के साथ तय की गई थीं। अब बागबानी मंत्री महेंद्र सिंह इस प्रोजेक्ट की समीक्षा के साथ इसपर आपत्तियां जता चुके हैं, जिससे मामला विवादों में घिरता जा रहा है। सूत्रों के अनुसार बागवानी विकास परियोजना पर विवाद विभागीय मंत्री और सचिव का है। क्योंकि वर्तमान सचिव ने ही यह प्रोजेक्ट तैयार किया है और पूर्व सरकार में मंजूरी भी उन्होंने ही दिलाई। अभी भी वही इस विभाग को देख रहे हैं। ऐसे में प्रोजेक्ट की समीक्षा के मामले में दोनों आमने-सामने आ चुके हैं और मामला अब मुख्यमंत्री के ध्यान में भी आ गया है। विवाद को अब सरकार कैसे हल करेगी, यह समय बताएगा, लेकिन इसमें कुछ न कुछ जरूर होगा, यह भी तय है।

गर्म क्षेत्रों के लिए प्रावधान

प्रोजेक्ट में गर्म क्षेत्रों के लिए भी प्रावधान रखा गया है। ठंडे व ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां इटली से सेब के पौधे आयात किए जा रहे हैं, वहीं गर्म क्षेत्रों के लिए लीची, आम व संतरे के पौधे भी तैयार किए गए हैं, जो कि वहां के किसानों को बांटे जाएंगे।

अब तक 900 बागबानों को बांटे प्लांट्स

अब तक प्रदेश के 900 बागबानों को ये पौधे वितरित किए जा चुके हैं। 80 हजार पौधे विभाग अपने तैयार कर रहा है। नौणी विवि में इसकी खेप तैयार हो रही है। क्लस्टर को लेकर जो विवाद है, उसमें साफ है कि ठंडे क्षेत्रों में ही सेब लगते हैं और गर्म क्षेत्रों में दूसरे पौधे जिनका प्रावधान इसमें है। ऐसे में कैसे प्रोजेक्ट का स्वरूप अब बदल सकेगा, यह देखना होगा।

बेहतर रहे हैं नतीजे

विशेषज्ञों के अनुसार जिन इटली के पौधों को लेकर बागबानी मंत्री तलखी दिखा रहे हैं, वे पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इटली से रशिया तक भी इन पौधों का आयात करता है। यही नहीं, हिमाचल के क्षेत्रों में भी जलवायु इनके मुताबिक ही है, जिसके नतीजे भी यहां के बागबान सुखद मानते हैं।

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