राष्ट्रपति ने मानद उपाधि लेने से किया इनकार

सोलन—महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को डा. वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा प्रदान की जाने वाली डाक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि को लेने से इनकार कर दिया। वह नौणी विश्वविद्यालय में आयोजित 9वें दीक्षांत समारोह में मुख्यातिथि के रूप में पहुंचे थे। मानद उपाधि को अस्वीकार करते हुए महामहिम ने कहा कि मैं इस उपाधि को लेने के लिए योग्य नहीं हूं तथा इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हालांकि वह हार्दिक दिल से विश्वविद्यालय प्रशासन का इस सम्मान को देने की पहल करने का वह धन्यवाद करते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में कुल 148 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं तथा वह अकसर उन्हीं विश्वविद्यायों में आयोजित दीक्षांत समारोहों में जाना पसंद करते हैं। वह पहली बार किसी राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह में इसलिए आए हैं क्योंकि किसानों, बागबानों के लिए की जा रही रिसर्च को वह देश के प्रत्येक विवि में ले जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एशिया के प्रथम बागबानी व वानिकी विश्वविद्यालय में इतना व्यापक व सटीक अनुसंधान होना चाहिए, ताकि इसका लाभ देश के प्रत्येक किसान को हो।

सरकार नहीं, आम आदमी भाग्य विधाता

महामहिम राष्ट्रपति ने राष्ट्रगान की दूसरी पंक्ति पर अपने विचार रखते हुए कहा कि इसमें भारत भाग्य विधाता कोई सरकार नहीं बन सकती किंतु भारत का भाग्य विधाता आम नागरिक, किसान व युवा शक्ति ही बन सकती है। सरकार को चलाने वाले भाग्य का विधाता नहीं हो सकते।

बाबा भलकू राम का योगदान सराहनीय

महामहिम राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने सोलन जिला के चायल क्षेत्र के स्व. बाबा भलकू राम को बहुत याद किया। उन्होंने कहा कि उनके नाम से शिमला में रेलवे म्यूजियम भी बना है। करीब 112 वर्ष पूर्व कालका-शिमला रेलवे लाइन अब वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है। इस रेलवे लाइन को शिमला तक पहुंचाने के लिए जब ब्रिटिश इंजीनियर भी परेशान हो गए तो बाबू भलकू ने रास्ता बताकर इस ऐतिहासिक रेल मार्ग को निकालने में अदृश्य शक्ति के दम पर सहायता की।

नौणी पहुंचने वाले दूसरे राष्ट्रपति

नौणी विश्विद्यालय की सन् 1985 में हुई स्थापना के बाद आज यह दूसरा अवसर था कि जब भारत के राष्ट्रपति दीक्षांत समारोह में पहुंचे थे। इससे पूर्व आर वेंकटरमन नौणी आए थे।

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