कहलूर से घराटों की महक गायब  

 बिलासपुर  —एक समय ऐसा भी था जब लोग अनाज पिसाने के लिए पानी के घराटों को यूज करते थे और अब यह भी समय आ गया है जब लोग बिजली से बनी आधुनिक मशीनों से अनाज को पिसने का प्रयोग कर रहें हैं, परंतु अगर हम अभी भी बुद्धिजीवी लोगों की मानें तो उनका हमेशा कहना यह होता है कि घराट में पीसा हुआ अनाज और बिजली से पीसे हुए अनाज में दिन रात का फर्क है। एक समय था जब लोग अपने अनाज को पानी के घराट में पिस्ते थे लेकिन आज के आधुनिक युग ने इन  घराटों की जगह मशीनों ने ले ली है। इस कारण पुरात्तिन घराटों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है, लेकिन इस ओर कोई भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है। गौर हो कि एक तरफ  सरकार व बिजली बोर्ड बिजली को बचाने के लिए बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर लोगों को जरूरत के अनुसार बिजली खर्च करने के लिए जागरूक कर रहा है। वहीं, दूसरी तरफ पानी से चलने वाले इन घराटों की तरफ  कोई भी ध्यान नहीं दे रहा हैं। कोई समय था जब लोग अपना पानी का घराट चलाकर अपने परिवार का व अपनी आजीविका चलाते थे लेकिन समय और जरूरत के अनुसार इस ओर अब कोई भी ध्यान नहीं दे पा रहे है। क्योंकि घराटों से किसी भी प्रकार की कोई भी आमदनी नहीं हो पा रही है। इस कारण इन घराटों पर लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं। बताया जाता है कि पानी से चलने वाले  घराट के आटे की रोटियां बहुत ही स्वादिष्ट व पौस्टिक होती हैं, लेकिन बिजली की मशीन से पिसा जाने वाले आटे में यह गुणवत्ता कहां। वहीं अगर हम बिलासपुर जिला की बात करें तो यहां के साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप चंदेल का कहना है कि पुराने समय में बिलासपुर जिला में सैकड़ों घराट हुआ करते थे। अब के दौर की बात करें तो कुल मिलाकर दस के लगभग ही घराट बिलासपुर जिला में रह गए हैं। बिलासपुर क्षेत्र में पानी से चलने वाले ऐसे अनेक घराट होते थे, लेकिन कुछ वर्षों से बारिश और पहाड़ों में बर्फबारी न होने के चलते पानी में भारी गिरावट आई है। इस कारण इन घराटों का आस्तित्व ही खत्म हो रहा है और ये घराट खंडर बन कर रह गए हैं। पुराने समय में अनेक स्थानों पर पानी से चलने वाले घराटों को देखा जाता था लेकिन समय के साथ साथ ये घराट भी बंद हो रहे है। अब गिने चुने क्षेत्रों में ही पानी से चलने वाले घराट देखे जा सकते हैं। पानी के घराटों में पीसे गए आटे में अच्छी चिकनाई होने के चलते रोटियां अच्छी बनती है लेकिन मशीनों में पिसे गए आटे में ये गुण नहीं होते। वहीं, बिलासपुर शहर के लोगों का कहना है कि कुछ बचे हुए घराटों की तरफ  अगर सरकार ध्यान दे तो खंडर बने घराटों का दोबारा जीर्णोद्धार हो सकता है।

बेरीघाट-किरपू-जोबल घराट थे सुप्रसिद्ध

मिली जानकारी के अनुसार कई दशकों पहले बिलासपुर नगर में बेरीघाट, नाले का नौण व किरपू घराट व जोबल घराट पूरे जिला में काफी मशहूर हुआ करते थे। इन घराटों में लोग दूर-दूर से अनाज पिसाने के लिए आते थे, परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे इन घराटों के इन स्थानों से नामों निशान खत्म होते गए और अब यह घराट सिर्फ खंडर बनकर रह गए हैं।

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