पत्तल बनाने वालों के बहुरेंगे दिन

By: Jun 8th, 2018 12:25 am

थर्माेकोल बैन होने से पारंपरिक कारोबार से जुड़े लोगों में नई ऊर्जा का संचार

सुंदरनगर — प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा थर्माेकोल पर बैन लगाने से प्रदेश में टौर के पत्तों से बनने वाली पत्तल के कारोबार में एक नई ऊर्जा आ गई है ।  पिछले काफी समय से थर्मोकोल से बनी चीजों की वजह से पत्तल का ट्रेंड ही खत्म होता जा रहा था।  इस कारोबार से कई परिवार प्राकृतिक कच्चे माल से इसका निर्माण करते है।  टोर के पत्तों को बेचने वालों के लिए सस्ता और सुलभ कारोबार है। इससे कई परिवारों की रोजी-रोटी चली हुई है। मुख्यमंत्री के इस बैन से पत्तल बनाने वाले खुश तो हैं। मगर इन लोगों की मांग है कि बाजार में थर्मोकोल के अलावा कागज की पत्तलों और गिलासों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। क्योंकि सभी प्रदूषण के  वाहक हैं । इन लोगों को कहना है कि प्रदेश की हर धाम में टोर से बनी पत्तलों पर खाना  परोसा जाता है, जबकि मंडयाली धाम तो पत्तलों के बिना अधूरी है। मगर स्टेंडिग खाने की संस्कृति ने पत्तल में खाने की परंपरा को लगभग खत्म कर दिया है । फिर हिमाचल के गांवों में आज भी पत्तलों में खाने का रिवाज कायम है । बहरहाल टौर  के पत्तों से पत्तल बनाने वाले परिवारों के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की घोषणा ने नई ऊर्जा भर दी है।  उन्हें आस है कि थर्माेकोल से बनी प्लेट गिलास पर प्रतिबंध लगने से उनके कारोबार में तेजी आएगी।

प्रदूषण नहीं खाद बनती है

कागज और थर्मोकोल से बनी पत्तलें जहां प्रदूषण फैलाती है। वहीं टौर के पत्तों से बनी पत्तलें पूरी तरह से बाओडिग्रेडेबल है । इन पर खाना खाने के बाद गोबर की खाद बनाने वाली जगह पर फेंक दें तो इनकी  भी प्राकृतिक  खाद बन जाती है । इसलिए यह प्रदूषण मुक्त है। हालांकि पशुओं के लिए ये खतरनाक है । क्योंकि इसे बनाने में बांस की पतली तिलियों का इस्तेमाल होता है । ऐसे में जब पशु इन पत्तलों को खाते हैं पतली तिलियां उनके पेट में जाकर नुकसान करती हैं।

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