बिलासपुर लाइब्रेरी…कहलूर का इतिहास न मांगें

By: Jun 25th, 2018 12:05 am

 बिलासपुर  —1960 सन् से बिलासपुर में खुली लाइब्रेरी में अभी तक भी बिलासपुर के इतिहास की एक भी किताब नहीं है। अगर विद्यार्थियों को बिलासपुर के इतिहास के बारे में कुछ जानना हो तो उन्हें इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है। वहीं, हैरान करने की बात तो यह सामने आती है कि यहां पर प्रदेश के कुछ जिलों के इतिहास की हर किताब यहां पर उपलब्ध है, लेकिन बिलासपुर के इतिहास की बात की जाए, तो यहां के विद्यार्थियों को इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है। विद्यार्थियों ने इस बात का कई बार रोष प्रकट भी किया है कि उन्हें बिलासपुर इतिहास की किताबें प्रोवाइड की जाएं। बता दें कि बिलासपुर जिला की लाइब्रेरी में आए दिन विद्यार्थियों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि आज कल विद्यार्थियों के टेस्टों की तैयारी चली हुई है, इसके चलते विद्यार्थी घर के बजाय लाइब्रेरी में पढ़ना उचित समझ रहे हैं। विद्यार्थियों का कहना है कि बिलासपुर लाइब्रेरी में पढ़ाई का माहौल तो उचित है, लेकिन यहां पर विद्यार्थियों को मिलने वाली व्यवस्था न के बराबर है। यहां पर आए दिन दर्जनों विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं, लेकिन यहां पर बैठने के लिए मात्र 20 के लगभग ही कुर्सियां हैं, उनमें से भी कुछ कुर्सियां टूटी हुई हैं। इस लाइब्रेरी में पढ़ाई करने के लिए विद्यार्थियों को अपनी बारी के लिए घंटों का इंतजार करना पड़ता है। बिलासपुर लाइब्रेरी में सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर रै जे यूर द्वारा ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के संक्षिप्त इतिहास के साथ ही गदर दिल्ली की डायरी जैसी गई दुर्लभ श्रेणी की किताबें भी पाठकों के लिए उपलब्ध रहती हैं। पाठकों की भाषा ज्ञान के हिसाब से भी यहां पर अंग्रेजी, हिंदी, पहाड़ी, पंजाबी और उर्दू भाषाओं की किताबें भी इस लाइब्रेरी में पाठकों के लिए उनकी डिमांड के मुताबिक उपलब्ध करवाई जाती हैं।  जानकारी के मुताबिक वर्ष 1956 में इसे पब्लिक लाइब्रेरी के नाम से शुरू किया गया था। इसके बाद 1960 में इसका नाम पब्लिक लाइब्रेरी से बदलकर जिला लाइब्रेरी कर दिया गया। वहीं बिलासपुर जिला के पाठकों के लिए हिमाचल लेखकों सुदर्शक वशिष्ठ, खुशी राम शास्त्री, गौतम व्यथित, नरोतम दत्त शास्त्री की व्यास की धरा, कांगड़े दियां लोक कथां, गास्सें हत्थ पुजाणे लोगों की मांग पर मंगवाए जाते हैं। लेकिन हैरान करने बात तब पैदा होती है जब यहां के लोग व विद्यार्थी बिलासपुर इतिहास की किताब मांगते हैं तो विद्यार्थी को निराशा हाथ लगती है।

लाइब्रेरी में 20 किताबें मिसिंग

जिला लाइब्रेरी की स्थापना से लेकर आज तक कुल 250 किताबें विभिन्न कारणों से यहां नहीं हैं। इनमें से सिर्फ 20 ऐसी किताबें थीं जिन्हें पाठक पढ़ने के लिए अपने साथ ले तो गए लेकिन उन्होंने उन किताबों को फिर कभी वापस नहीं लौटाया। जबकि अन्य किताबें या तो खराब अवस्था के कारण बेकार हो गइर्ं या फिर लाइब्रेरी में बारिश के कारण होने वाली सीलिंग के चलते बेहद जीर्ण अवस्था में पहुंच गइर्ं।

लाइब्रेरी में इंग्लिश पैटर्न की किताबें ज्यादा

बिलासपुर की रहने वाली प्रतिमा बंसल ने बताया कि बिलासपुर की लाइब्रेरी में ज्यादा इंग्लिश पैटर्न की किताबें ज्यादा हैं। जिसके चलते उन्हें कई बार अपने सब्जेक्ट से संबंधित किताब नहीं मिल पाती है। प्रतिमा बंसल वर्तमान में बीएड कर रही है, जिसके चलते वह प्रतिदिन अभ्यास के तौर में लाइब्रेरी पहुंचती है। लेकिन कई बार उन्हें हिंदी की किताबें कम मिलने के कारण बाहर से किताबें खरीदनी पड़ती हैं।


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