लड़कियों को भी समानता देनी चाहिए

स्वरा भास्कर

अभिनेत्री स्वरा भास्कर जितनी मशहूर अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए हैं, उतनी ही चर्चा वह अपने बेबाक बयानों से भी पाती हैं। जल्द ही वह फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ में नजर आएंगी। उनसे एक खास मुलाकात में हमने फिल्म, ट्रोलिंग कल्चर और शादी जैसे तमाम विषयों पर बातचीत की…

आप सामाजिक सरोकारों पर आवाज उठाती रहती हैं। जैसे, कठुआ रेप के दौरान उठाया, लेकिन बहुत से लोग उसी के चलते फिल्म बायकॉट करने की बात कह रहे हैं। इस तरह के विरोध को कैसे देखती और आप पर इसका क्या असर पड़ता है?

मुझे लगता है कि जबसे यह सरकार आई है, तब से हमारे समाज का चरित्र बहुत ही बेतुका, नाराज और नफरत से भरा हुआ बनता जा रहा है। जो पहले वसुधैव कुटुंबकम और सहनशील समाज की हम बात करते थे, वह खत्म होता जा रहा है। हमें लोकतांत्रिक वार्तालाप और तर्क से परहेज होने लग गया है। लोकतांत्रिक ढंग से अगर कोई ऐसा तर्क दे रहा है, जो आपसे अलग है, तो आप उसे गाली देकर चुप करा देना चाहते हैं। यह पिछले पांच साल से हो रहा है। मेरे साथ भी जो हो रहा है, वह भी इसी मानसिकता की वजह से है। जबकि, मुझे लगता है कि आपका देश आपके घर की तरह होता है और अगर आपके घर में कोई गलत चीज हो रही है, तो उससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए, उससे लड़ना चाहिए। क्योंकि जिस चीज से आप प्यार करते हैं उसे बचाने के लिए आपको लड़ना चाहिए, सिर्फ  इसलिए मैं बोलती हूं।

‘वीरे दी वेडिंग’ में आपकी सारी मेहनत सिर्फ अच्छे कपड़े पहनने में गई। फिर ऐसी फिल्म करने की वजह क्या रही?

यह वाकई मेरे लिए सबसे मुश्किल फिल्म रही। ‘अनारकली ऑफ  आरा’ और ‘निल बटे सन्नाटा’ मेरे लिए ज्यादा आसान थीं, क्योंकि उन किरदारों को तैयार करने का मैथड पता है मुझे। ये जो अमीर बाप की बिगड़ी औलाद हैं, वह बनने के चक्कर में मेरी तो सारी मेहनत और एक्टिंग कपड़े पहनने में ही लग गई। मेकअप, हेयर और पतला होना। सारे डाइट कर लिए मैंने। आखिर, करीना कपूर और सोनम कपूर के साथ एक फ्रेम में खड़ा होना था। यह फिल्म करने की वजह यह रही कि मुझे लगता है कि हर एक्टर को अपना कम्फर्ट जोन ब्रेक करते रहना चाहिए। अब मेरा कम्फर्ट जोन वह बन गया है, कैरेक्टर ओरिएंटेड, गरीबी, भुखमरी, लाचारी, ये सब मेरा कम्फर्ट जोन हैं, तो मुझे लगा कि यार यह एक ऐसा किरदार है, जो अर्बन, शहरी किरदार है,तो क्या मैं वह कर पाऊंगी, इसलिए मैंने यह किया।

आपके हिसाब से फिल्म किस मायने में खास है?

यह फिल्म दोस्ती की कहानी है। चार लड़कियां हैं अमीर, जो जिंदगी से जूझ रही हैं। उनमें कमियां हैं, खामियां हैं, अंतरद्वंद्व है, लेकिन उनकी दोस्ती बहुत मजबूत है। भारतीय सिनेमा के 105 सालों में पहली बार हम कॉमर्शल बालीवुड में ऐसी कहानी देख रहे हैं, जहां चार लड़कियां हैं और किसी को एक लड़के से प्यार नहीं है। मुझे लगता है कि आज तक हिंदी सिनेमा ने सिर्फ  मर्द किरदारों को यह आजादी दी कि आप कन्फ्यूज हो सकते हैं। आपमें कमियां हो सकती हैं, जबकि हीरोइन हमेशा क्लियर होनी चाहिए। हमने अपनी हीरोइन पर पवित्र और अच्छी होने का एक बोझ डाला हुआ है, जो पिछले कुछ सालों में बदल रहा है। मेरा मानना है कि जब हम समानता की बात करते हैं, तो हमें भी कन्फ्यूज होने, गलतियां करने की आजादी मिलनी चाहिए। ‘वीरे दी वेडिंग’ में आपको यह समानता दिखेगी। मैं यह नहीं कह रही कि वे परफेक्ट या अच्छी लड़कियां हैं, लेकिन वे असली लड़कियां हैं, जो मेरे जैसी या मेरे समाज की लड़कियां हैं। हम करते हैं सेक्स की बातें अपने दोस्तों के साथ, हम गालियां देते हैं, हम शराब पीते हैं। हम सिगरेट पीते हैं कभी-कभी। ये आजादी जो मर्द किरदारों को मिली है, महिला किरदारों को भी मिलनी चाहिए।

गाली देना या शराब पीना कोई अच्छी बात तो है नहीं। फिर, समानता के नाम पर इन बुराइयों को अपनाना कौन सी बहादुरी है?

शराब पीना बुरी बात है, यह सोच हमारी मध्यवर्गीय नैतिकता ने दिमाग में डाली है। शराब की लत बुरी बात होती है। थोड़ा-बहुत शराब पीना कोई बुरी बात नहीं है। हजारों सालों से हम पीते आ रहे हैं। हमारे तो शिव जी पीते हैं भांग और विष्णु भगवान पीते हैं सोमरस। इसकी लत बुरी चीज है और हम नहीं दिखा रहे कि इसकी लत लगा लो। मैं यही कह रही हूं कि जब हम समानता की बात करते हैं, तो जो मोहलत और आजादी आप हीरोज को दे रहे हैं, वहीं लड़कियों को भी देनी चाहिए। यह परफेक्शन और अच्छाई का बोझ हमेशा औरतें क्यों ढोती रहें। क्या सारी औरतें बिना खामियों के होती हैं। वे भी इनसान ही हैं। इनसान होने की पहली चीज है कि आपमें कमी होनी चाहिए, जिसमें कमी नहीं है, वह तो भगवान ही होता है। मेरे हिसाब से शराब पीना, सिगरेट पीना या गाली देना कोई बुरी चीज नहीं है, जो ज्यादा बुरी हैं, जैसे नफरत करना, सरेआम लोगों को मार देना, जिंदा जला देना, मैं ये सारी चीजें बोल रही हूं, जो पिछले दो-तीन सालों में हुई हैं। मीट के नाम एक इनसान को लिंच करके मार देना, सीट के नाम पर एक 15 साल के लड़के को मार देना, जुनैद की बात कर रही हूं। पहले तो सही और गलत पर ही डिबेट होनी चाहिए। मेरे हिसाब से गाली देना बुरी चीज नहीं है। हां, बड़ों के सामने मत दो। पब्लिक लाइफ  में मत दो, जो कि हमारे नेता देते हैं। आप चुनाव प्रचार में मत बोलिए कि रामजादों को वोट दोगे या हराम’’ को। यहां मत दो गाली, मगर अपने घर में, अपने दोस्तों के बीच,अपने पारिवारिक मुद्दों में गाली देना असलियत है।

‘तारीफां’ गाने में मर्द के साथ ईव टीजिंग वाली बात को भी सही मानती हैं?

उस गाने में हम लोग यह कोशिश कर रहे थे कि पार्टी और क्लब के गानों में जो कुछ औरतों के साथ होता है, वही हम मर्दों के साथ करें। उसी कोशिश में हमने वह सीन शूट किया था, तो मेरे मन में वह बात आई नहीं। यह दिखाता है कि कहीं न कहीं हम इतने यूज टू हो गए हैं ऐसी चीजों के। लड़कियों के साथ छेड़छाड़ को इतना नॉर्मल कर दिया गया है जबकि हमने उससे उल्टा करने की कोशिश की, तो वही गलती की। इससे पता चलता है कि इसे नॉर्मल करने के खतरे क्या हैं। यह जायज सवाल है और मैं बिलकुल अपने को शामिल कर रही हूं। उस गलती में कि हां छेड़छाड़ को नॉर्मल किया गया, लेकिन गालियों वाली बात से मैं बिलकुल असहमत हूं। जब ‘अनारकली ऑफ आरा’ में मैंने गालियां दी थीं, उसमें तो मैं बीड़ी पी रही हूं, तब किसी ने नहीं पूछा, क्योंकि हमारी मानसिकता में अनारकली एक बुरी लड़की थी। जबकि, यहां करीना कपूर और सोनम कपूर दे रही हैं गालियां और वे हीरोइनें हैं, अच्छी लड़कियां हैं, तो हमें लग रहा है कि अरे, ये क्यों गालियां दे रही हैं।

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