शिमला की सिसकियां

By: Jun 11th, 2018 12:05 am

32 हजार आबादी के लिए बसाए गए शिमला शहर में आज करीब दो लाख लोग वास कर रहे हैं, लेकिन नगर की दुर्गति यह है कि जनसंख्या बढ़ने के साथ मूलभूत सुविधाओं की ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। मसलन  पानी, सड़कें स्वास्थ्य और पार्किंग की दिक्कत दिनों-दिन विकराल होती गई। नतीजतन प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज खूबसूरत शहर मौजूदा समय में सिसकियां भरने को मजबूर है। शिमला के दर्द को दखल के जरिए बता रहे हैं… शकील कुरैशी, खुशहाल सिंह और टेकचंद वर्मा…  

अंग्रेजी हुकूमत के समय में बना शिमला शहर आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश की राजधानी के रूप में उभरा। अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी रहे शिमला को 32 हजार की आबादी के लिए बसाया गया था, परंतु आज इसकी आबादी दो लाख के करीब पहुंच चुकी है। इसमें शहर की आबादी 1 लाख 80 हजार के  करीब है और शेष आबादी इसके साथ लगते क्षेत्रों को मिलाकर है। हैरानी इस बात की है कि शिमला बतौर राजधानी विकसित तो होता गया, मगर यहां की आधारभूत जरूरतों को विकसित नहीं किया जा सका। आलम यह है कि हिल्सक्वीन के नाम से मशहूर शिमला पानी, सीवरेज और ट्रांसपोर्टेशन के मॉडल में फेल हो चुका है। यहां की आधारभूत जरूरतों में ये सबसे प्रमुख है जिस कारण आज यहां रहने वाले लोगों को तो दिक्कतों का सामना करना पड़ ही रहा है वहीं बाहर से आने वाले लोगों, सैलानियों को भी कई तरह की मूलभूत सुविधाओं किल्लत झेलनी पड़ती है। साल दर साल इन सुविधाआें का अभाव हो रहा है कि क्योंकि यहां का विकासीय प्रारूप पहले तैयार नहीं हो सका। प्रदेश के नगर नियोजन विभाग ने अब तैयार किए गए मॉडल में कई तरह की खामियों को दूर करने की बात कही है, लेकिन अब यह कैसे होगा,जबकि पहले ही शहर बस चुका है। ऐसे में इसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार को विशेष रूप से कुछ अलग प्रावधान करने होंगे। राजधानी शिमला में पानी की किल्लत ने त्राहि-त्राहि मचाकर रख दी। बेशक पेयजल स्रोतों में पानी की कमी हो रही है, मगर ऐसा पहली दफा नहीं हुआ है यह बात यहां रहने वाले हरेक की जुबान पर है।  बात पानी के वितरण की हुई, जिसका पूरा ठीकरा मोजूदा सरकार पर फोड़ दिया गया। हालांकि पूर्व की सरकारों ने भी यहां पर पानी की कमी को मुद्दा माना है और इसके लिए कोल डैम जैसी सतलुज से पानी लाने की योजना पर विचार भी किया गया, लेकिन इस पर गंभीरता नहीं बरती गई और आलम ये है कि यह योजना तैयार होने में अभी कई साल और लगेंगे।

पानी

शिमला में पूरी सरकार बैठती है, उसकी प्रशासनिक मशीनरी यहां है लेकिन सभी ने चिंता तो जाहिर की मगर किया कुछ नहीं। शहर की इस जरूरत को पूरा करने के लिए गिरि पेयजल योजना ही एकमात्र नई योजना बनाई जा सकी परंतु आज उसमें भी पानी की कमी हो चुकी है। अंग्रेजों के जमाने में बनी गुम्मा योजना से ही शहर को अधिक पानी दिया जा रहा है। पेयजल के मामले में शिमला का मॉडल पूरी तरह से फेल हो चुका है।

सीवरेज

शहर की मूलभूत सुविधाओं में से एक सीवरेज का मॉडल है। इस पर भी गंभीरता से काम नहीं किया गया और आज भी अधिकांश स्थानों पर अंग्रेजों द्वारा बनाया गया सिस्टम ही चल रहा है। सालों बाद कोल डैम प्रोजेक्ट के तहत ही सीवरेज सिस्टम को भी जोड़ने की याद आई।  अभी तक  शहर या इसके साथ लगते क्षेत्रों में सीवरेज कनेक्टिविटी पूरी तरह से नहीं है। शहर के बीचोंबीच जहां पुरानी सीवरेज लाइनें हैं वे चोक कर गई हैं। रोजाना सड़कों पर गंदगी दिखाई दे जाती है।

ट्रांसपोर्टेशन 

शिमला में तीसरा फैक्टर ट्रांसपोर्टेशन का है, जिस पर भी सरकारों ने कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किए। सड़कों की चौड़ाई जो पहले थी वही रही। आलम यह है कि हाई कोर्ट को मध्यस्थता करनी पड़ी, जिसके बाद  कार्ट रोड को कुछ  स्थानों पर चौड़ा करने का काम किया जा रहा है,पर ये भी नाकाफी है और इससे ज्यादा अब  गुंजाइश नहीं रह गई है क्योंकि सड़कों के साथ मकान या होटलोंव सरकारी भवन भी बन चुके हैं, जिनको तुड़वाना आसान नहीं।

पार्किंग

आज सैलानियों या स्थानीय लोगों को वाहन खड़े करने के लिए पार्किंग नहीं है जिस कारण वाहन भी सड़कों के किनारे खड़े हैं, जिससे यहां ट्रैफिक जाम होता है। राजधानी मॉडल में पार्किंग सुविधा के साथ चौड़ी सड़कों का होना जरूरी था जो कि शिमला में नहीं है। इस मॉडल में केवल इतना ही शिमला में हो सका कि यहां दो बाइपास रोड बनाए गए, ताकि वे वाहन बाहर से बाहर निकल जाएं, जिनका काम शहर के मध्य में नहीं है ,परंतु ऐसा भी नहीं हो पा रहा है।

अतिक्रमण

शहर से बस अड्डे को बाहर किया गया है, बावजूद इसके दिक्कतें वहीं की, वहीं खड़ी हैं। बाइपास मार्ग में भी अब बेतरतीब ढंग से कब्जे में कर लिए गए हैं, जिनके आसपास भी अवैध कब्जे हुए हैं ,वहीं वाहनों को खड़ा करने का स्थल बन चुके हैं। इस कारण अब वहां भी स्थिति ठीक नहीं रही है। ऐसे में इन तीनों मॉडलों में जो कि राजधानी के लिए सबसे अहम हैं , में शिमला शहर पूरी तरह से फेल हो चुका है।

स्वास्थ्य

शिमला में एक समस्या और अहम मानी जा सकती है। यहां प्रदेश का प्रीमियम अस्पताल आईजीएमसी है, मगर आईजीएमसी तक पहुंचने वाला मार्ग संकीर्ण है, जैसा सालों पहले था। सालों बाद इस समस्या के निजात के लिए आईजीएमसी का एक भवन कार्ट रोड से जोड़ा जा रहा है जिससे काफी हद तक निजात मिलेगी लेकिन ऐसा सालों बाद ही हो पा रहा है  यहां पर भी व्यवस्थाएं बदतर ही चल रही हैं। अब सरकार ने यह भी सोचा है कि आईजीएमसी को शहर से बाहर कर दिया जाए, लिहाजा इसके लिए जगह देखी है और काम भी किया जा रहा है। पर इसमें अभी काफी समय लगेगा।

सेटेलाइट टाउन बनाना जरूरी

टीसीपी विभाग में डिवीजनल नगर नियोजन अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त राजेंद्र चौहान कहते हैं कि शिमला शहर को डिकंजस्ट किया जाना जरुरी है, अन्यथा हालात बद से बदतर होंगे। इसके लिए यह जरूरी है कि शिमला शहर के आसपास कुछ सेटेलाइट टाउन स्थापित किए जाएं। चौहान के मुताबिक इसके लिए पहले भी प्लान तैयार किए गए थे। वहीं शहर के अंदर चल रही बड़ी व्यावसायिक गतिविधियों को बाहरी इलाकों में शिफ्ट करना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो शिमला शहर पर जनसंख्या का दबाव दिनोंदिन बढ़ता जाएगा और इससे शहर में मूलभूत सुविधाओं की कमी खलेगी। ऐसे में सरकार को इस दिशा में प्रयास करने जरूरी है।

सरकारी दफ्तरों को बाहर करना जरूरी

शिमला को यदि कंजेशन से बचाना है तो आने वाले समय में यहां के सरकारी अदारे को शहर से बाहर करना बेहद जरूरी होगा। इस सोच के साथ कुसुम्पटी को बसाया गया था जहां पर बड़ी संख्या में सरकारी दफतर हैं परंतु वहां पर भी जगह कम पड़ गई। ऐसे में शहर से बाहर कहीं पर पूरा सरकारी अदारा शिफ्ट होता है तो ही शिमला को कई तरह की समस्याओं से निजात मिल सकती है।

शहर से बाहर हो सचिवालय

यहां सचिवालय राजधानी के बीचोंबीच है और बिलकुल मुख्य सड़क के किनारे पर है। सुरक्षा के लिहाज से इसे सही नहीं माना जा सकता क्योंकि सचिवालय के बाहर से बसें व दूसरे वाहन गुजरते हैं। इसे भी यहां से शिफ्ट करने की सोचनी जरूरी है परंतु सरकार की आर्थिक हालात वैसी नहीं है। वैसे सरकार को इन मामलों को गंभीरता से देखना चाहिए तभी आधुनिक शिमला का निर्माण किया जा सकेगा।

फलक्रांति की समृद्धि भी पड़ी भारी

ऊपरी शिमला में फल क्रांति में आई समृद्धि भी एक बड़ा कारण मानी जा सकती है क्योंकि इससे लगातार शिमला की जनसंख्या में बढ़ोतरी होती रही है।  लोग सेब   से मालामाल होने के बाद शिमला की ओर बढ़े जिससे यहां पर बड़ी संख्या में भवन निर्माण हुआ है।  शिमला का एक कोना जिसे संजौली और सिमिट्री कहा जाता है में एक तरह से पूरा पहाड़ बसता है, ऐसा यहां कहा जाता है। यहां बड़ी संख्या में ऊपरी शिमला के लोगों के आवास हैं, जिन्होंने आलीशान भवनों का निर्माण कर रखा है। यह कहें कि फलक्रांति से जनसंख्या वृद्धि हुई तो यह कहना गलत नहीं होगा

10 हजार भवन अनधिकृत

शिमला शहर में दस हजार के करीब ऐसे भवन में हैं, जो अनधिकृत माने जाते हैं, जिनका निर्माण लोगों ने अपनी जमीन खरीदकर कर तो दिया, लेकिन बाद में इन्हें मंजूरी हासिल नहीं हो सकी। इनको बिजली और पानी नहीं मिला, यदि इनको भी पानी की नियमित व्यवस्था कर दी जाए तो यहां पानी के हालात और बदत्तर हो जाएंगे।

कागजों में ही रह गई कई योजनाएं

शिमला शहर की वास्तुकला, जीवनशैली व पर्यावरण सबसे अलग माना जाता था। अंग्रेजों ने इस शहर को बसाया था। यहां पर अंग्रेजों द्वारा बनाए गए लकड़ी के मकान आज भी खड़े हैं, वहीं कई इमारतें तो आग की भेंट चढ़ चुकी हैं। ये ऐतिहासिक इमारतें आज भी वास्तुकला का अनूठा नमूना है जिसे देखने के लिए विदेशों तक से पर्यटक पहुंचते हैं। यहां की जनसंख्या में बढ़ोतरी और उस लिहाज से योजनाएं कागजों में ही दबे रहने के कारण शहर की व्यवस्थाएं तहस-नहस हो रही है।

आपदा से सुरक्षित नहीं 80 फीसदी शहर

ऐतिहासिक धरोहरों, राजनीतिक महत्त्व और खूबसूरत इमारतों पर इतराने वाला अस्सी फीसदी शिमला शहर आग और भूकंप जैसी आपदाओं के लिहाज से सुरक्षित नहीं। महज बीस फीसदी ही ऐसा क्षेत्र है जहां तक बचाव दल की पहुंच है। इसकी मुख्य वजह बेतरतीब निर्माण तथा गलियां मकानों से  सैट बैक न छोड़ना है। अग्निशमन विभाग के सर्वे में यह खुलासा किया गया है।

अफसरशाही ने नहीं दिखाई रुचि

राजधानी पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए जरूरी है कि इसको डिकंजस्ट किया जाए। इसके लिए टीसीपी ने कुछ समय पहले शहर घंडल, वाकनाघाट के साथ-साथ गुम्मा क्षेत्र में सेटेलाइट टाउन बनाने की योजना तैयार की थी, लेकिन सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया। वहीं टीसीपी द्वारा शोघी में आनंदपुर क्षेत्र में बड़ी सब्जी मंडी को स्थापित करने के लिए करीब 180 बीघा जमीन का चयन भी किया गया था। इसकी पूरी प्लानिंग तैयार की गई थी और इसको एसडीएम शिमला कार्यालय में जमा करवाया गया था। लेकिन यह प्रस्ताव आज तक धूल फांक रहा है। इसी तरह अनाज मंडी को शहर के बाहर शिफ्ट कर भी यहां पर पड़ रहे दबाव को कम किया जा सकता है। लेकिन अफसशाही इन प्रस्तावों को लागू करने में कोई रुचि नहीं दिखाती है।

सरकार-निगम ने नहीं किए प्रयास

प्रसिद्ध पर्यटन नगरी शिमला को आबादी के हिसाब से बसा तो जरूर दिया गया मगर सरकार व विभागों ने उन मूलभूत सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा,जो बढ़ती आबादी के चलते लगातार सिकुड़ती जा रही है। सरकार व नगर निगम की नजरअंदाजी के चलते मौजूदा दौर में जनता को मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। आबादी बढ़ने के साथ मूलभूत सुविधाओं पर दबाव काफी अधिक बढ़ गया है। शिमला शहर को विकसित करने में सरकारी व विभागों की विल पावर न के बराबर दिख रही है। शहर में जनता को पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है, जिसका नजारा शिमला में बीते दिनों भारी पेयजल किल्लत की घटना से देखा जा चुका है।

बढ़ता ट्रैफिक

शिमला पर हर साल ट्रैफिक का दबाव बढ़ता जा रहा है। राजधानी मे हर साल भारी संख्या में वाहन पंजीकृत हो रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार राजधानी में मौजूदा समय में पंजीकृत वाहनों की तादाद करीब एक लाख तक पहुंच गई है। इनके अलावा सैलानियों और राज्य के दूसरे हिस्सों से भी यहां हर रोज सैकड़ों वाहन पहुंच रहे हैं। ऐसे में शिमला शहर की सड़कों पर वाहनों की बड़ा दबाव है। वहीं, पर्यटन सीजन के दौरान यह दबाव कई गुना बढ़ जाता है। शिमला की खराब ट्रैफिक व्यवस्था की  एक बड़ी वजह, यहां की संकरी सड़कें भी हैं।  हालात यह है कि शिमला शहर में अंग्रेजों के समय के बने कार्ट रोड में पहले सुधार करने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। हालांकि अब इसको चौड़ा करने का काम किया जा रहा है। कार्ट रोड पर करीब 70 स्थानों को चिन्हित कर इसे चौड़ा किया जा रहा है, इससे उम्मीद की जा रही है कि इस समस्या का कुछ हल निकले। लेकिन इसके अलावा शहर में वैकल्पिक सड़कों का निर्माण करना भी जरूरी है। शहर में होटल होली-डे होम से कृष्णा नगर होकर एनएच बाइपास तक,  होली-डे होम से लालपानी,  छोटा शिमला से फ्लावर डेल, धोबीघाट से मल्याणा और रूल्दूभट्टा से शांकली की सड़कें बनाने की योजना कई सालों से है, लेकिन इन सड़कों को बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। राजधानी शिमला में मौजूदा समय में नगर निगम की पार्किंगों की क्षमता अढ़ाई हजार वाहनों को पार्क करने की है। वहीं यलो लाइन लगाकर भी वाहनों को पार्किंग की व्यवस्था कुछ जगह की गई है। इस तरह शहर में कुल मिलाकर पांच से छह हजार वाहनों की पार्किंग करने को ही पार्क करने की जगह है। बाकी वाहन सड़कों के किनारे ही नजर आते हैं।

प्लान के विपरीत बस गया शहर

शिमला शहर का अंतरिम डिवेलपमेंट प्लान 1979 में तैयार किया गया था। यह प्लान 2001 की शहर की आबादी और उसकी जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। प्लान में शिमला शहर की संभावित आबादी करीब 1.27 लाख रखी गई थी। इस आबादी के लिए क्या-क्या सहुलियतें होनी चाहिएं और शहर का कैसा विकास होना चाहिए, इसका खाका इस प्लान में था। इस प्लान में यह तय किया गया था कि कहां पर आवासीय क्षेत्र होंगे, कहां पर औद्योगिक क्षेत्र और कहां पर अन्य कार्यों के लिए जगह होंगी इसमें शिमला शहर के आसपास उपनगरों के विकसित होने की भी संभावना था, लेकिन इस प्लान को पूरे तौर पर लागू ही नहीं किया गया। शहर के अनियोजित विकास हुआ जहां औद्योगिक क्षेत्र होने चाहिए थे, वहां पर आबादी बस गई। मसलन प्लान में संजौली क्षेत्र में सर्विस इंडस्ट्रियल जोन बनाया जाना था, लेकिन इस पूरे इलाके को रिहायशी क्षेत्र में बदल दिया गया ,वहीं समरहिल क्षेत्र को उच्च शिक्षा के हब के तौर विकसित किया जाना था, लेकिन इस पूरे इलाके में भवन खड़े कर दिए गए। कुसुम्पटी में न्यू शिमला नाम से नगर बसाया जाना था और यहां पर विकासनगर बनाया गया, जबकि इससे कुछ दूरी पर बीसीएस के साथ करीब आधा दर्जन गावों को बनाकर न्यू शिमला बनाया गया। वहीं प्लान में भराड़ी क्षेत्र को बड़े नियोजित रिहायशी क्षेत्र के रूप में विकसित करना था, लेकिन यहां पर रिहायशी इलाकों के साथ होटल, स्कूल और अन्य संस्थान बना दिए गए। वहीं, टुटू को लघु औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर विकसित करने का प्लान था और टूटीकंडी को रिहायशी क्षेत्र के साथ-साथ पर्यटन गतिविधियों का क्षेत्र विकसित किया जाना था, लेकिन इन क्षेत्रों को बेतरतीब रिहायशी इलाकों में बदल दिया गया।

2005 की योजना को नहीं मिली मंजूरी

टीसीपी ने साल 2005 में भी शिमला का डिवेलपमेंट प्लान तैयार तो किया था, लेकिन इस प्लान को भी तत्कालीन सरकार की अंतिम मंजूरी नहीं मिल पाई थी और यह लागू नहीं हो किया जा सका।  शहर में बढ़ती जनसंख्या का दवाब इसकी सुविधाओं पर पड़ने लगा है। नतीजतन यहां रहने वाले लोगों के लिए सुविधाएं कम पड़ने लगीं ।

शिमला की दिनों-दिन बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने पर अब काम किया जा रहा है। शिमला शहर का प्लान जीआईएस आधारित होगा, जिसमें 2035 तक की आबादी के लिए तमाम सुविधाओं का ब्लूप्रिंट होगा। शहर की बढ़ती आबादी के लिए पानी, बिजली, सीवरेज, सड़क, यातायात जैसी तमाम सुविधाओं का इसमें पूरा रोडमैप होगा।

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