स्वतंत्रता के लिए अग्रणी भूमिका निभाई थी दौलत राम ने

By: Jul 4th, 2018 12:05 am

हमले में उनके दांत चले गए और वह बुरी तरह जख्मी हुए। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी अपना योगदान जारी रखा। 1957 ई. में  हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। 1952 ई. में ‘भाखड़ा पीडि़त संगठन’ बनाया। इनकी विशेष रुचि पहाड़ी क्षेत्रों की सांस्कृतिक एकता और विकास था…

 दौलत राम सांख्यान

दौलतराम सांख्यान का जन्म जिला बिलासपुर, तहसील सदर, डाकघर जुखाला के गांव पंचायत में 16 दिसंबर, 1919 ई. को हुआ। पिता का नाम श्री लखू राम था। उन्होंने साम्राज्यवादी शासन और रजवाड़ाशाही के निरंकुश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में अग्रणी भूमिका अदा की। वह ‘बिलासपुर प्रजा मंडल’ के संस्थापकों में से एक थे। ब्रिटिश सरकार ने कई बार उन्हें कठोर कारावास दिया। दो मार्च, 1946 ई. से आठ जून, 1946 तक उन्हें बिलासपुर में घर में ही कैद रखा गया। 1946-49 में उनकी सारी चल व अचल संपत्ति जब्त कर ली गई। 11 जून, 1946 से 12 अक्तूबर, 1948 तक उन्हें बिलासपुर जिला से जलावतन रखा गया। जेल में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। हमले में उनके दांत चले गए और वह बुरी तरह जख्मी हुए। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी अपना योगदान जारी रखा। 1957 ई. हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। 1952 ई. में ‘भाखड़ा पीडि़त संगठन’ बनाया। इनकी विशेष रुचि पहाड़ी क्षेत्रों की सांस्कृतिक एकता और विकास था। वह हिमाचल विधानसभा के सदस्य और प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे। 1998 ई. में इनका निधन हो गया।

श्री दीनानाथ ‘आंधी’

 इनका जन्म तीन नवंबर, 1914 ई. को कांगड़ा जिला के परागपुर में हुआ। इनका आवास शिमला में अशोका होटल के समीप ‘आंधी भवन जाखू’ में था। इनके पिता का नाम भागमल था। इन्होंने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। जेल (लाहौर) में हिंदी रत्न की परीक्षा पास की। इन्हें जेल का पहला अनुभव 28 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान हुआ। इन्होंने विदेशी माल को खरीदने से रोकने और जलाने में भी भाग लिया। 1934 ई. में वह जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और 16 वर्ष जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष रहे। 1930 ई. में वह लाहौर की ‘कसूर’ और ‘बोसाल’ जेल में आठ महीने रहे। 1932 ई. में एक महीना 15 दिन की जेल हुई। 1936ई. में अमृतसर में तीन महीने की जेल हुई। 1939 ई. में हैदराबाद में पांच महीने की जेल हुई। 1942 ई. भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया, जिसके लिए इन्हें लुधियाना और मुल्तान में आठ महीने की जेल हुई। 1947 ई. में 18 जुलाई से 18 नवंबर तक उन्हें घर के अंदर की कैद रखा गया। नुक्कड़ जनसभाएं करके वह लोगों के अंदर राष्ट्रीय जागृति पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाते रहे।

 


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