एससी-एसटी-ओबीसी को आरक्षण न मिला तो संघर्ष

कांगड़ा – लोकसभा चुनाव की आहट से पहले आरक्षण के मुद्दे पर अन्य पिछड़ा वर्ग संगठन ने तेवर तीखे कर लिए हैं। संघर्ष की रणनीति 22 जुलाई को बिलासपुर में होने वाले संगठन के सम्मेलन में बनाई जाएगी। रविवार को यहां आयोजित संगठन की बैठक में ऐलान कर दिया गया कि अगर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व ओबीसी को आरक्षण न मिला, तो संघर्ष होगा। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट आरएल चौधरी कहते हैं कि इस वर्ग को राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया, लेकिन इनके साथ न्याय न कर पाए। यहां संगठन की हुई बैठक में श्री चौधरी ने कहा कि देश में लोकतंत्र को लागू हुए 70 वर्ष हो गए हैं, परंतु ओबीसी समाज को लोकतंत्र की सही परिभाषा ही मालूम नहीं है। उनका कहना है कि लोकतंत्र को समझना वे उस पर अमल करना बहुत जरूरी है। वह कहते हैं कि भारतवर्ष में सामान्य श्रेणी के लोगों की संख्या 15 प्रतिशत है और एससी-एसटी की 7.5 तथा ओबीसी 67.5 प्रतिशत संख्या है। वे बताते हैं कि भारत की केंद्र तथा लगभग राज्य सरकारें 31 से 40 फीसदी  वोटों से बनती हैं, जबकि ओबीसी की संख्या 67.5 फीसदी है। यानी कुल मिलाकर देश में सभी सरकारें 15 फीसदी सामान्य वर्ग से आने वालों की बनती हैं, इसलिए ओबीसी को आजादी के बाद आज तक उनका हिस्सा न मिल पाया है। जैसे आज भी सरकारी नौकरियों में एससी संख्या 15 प्रतिशत होनी चाहिए थी, लेकिन सिर्फ 12 प्रतिशत ही है। इसी प्रकार से एसटी की सरकारी नौकरियों में संख्या 7.5 की होनी चाहिए थी, परंतु सिर्फ  पांच प्रतिशत है। ओबीसी की संख्या सरकारी नौकरियों में 67.5 प्रतिशत होनी चाहिए, परंतु सिर्फ  चार प्रतिशत है, जबकि सरकारी नौकरियों में संख्या 15 प्रतिशत होनी चाहिए, लेकिन इसकी संख्या 79 प्रतिशत है, जो कि लोकतंत्र की हत्या है । इसी प्रकार प्रदेश के हालात हैं। यहां ओबीसी को सरकारी नौकरियों में क्लास एक और दो में सिर्फ  चार प्रतिशत लोग हैं तथा क्लास तीन और चार में  आठ प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं, जबकि प्रदेश में ओबीसी की संख्या 40 प्रतिशत है, लेकिन ओबीसी को आरक्षण मात्र 10 प्रतिशत क्लास एक और दो में तथा 18 प्रतिशत क्लास तीन और चार में दिया जा रहा है। ऊपर से उसमें कोई भी रोस्टर नहीं व कोई आरएमपी रूल नहीं। इसी प्रकार लोकतंत्र की हत्या हिमाचल की सरकारें कर रही हैं। बैठक में कहा गया कि इस सरकार इस वर्ग की मांगों को स्वीकार करे, अन्यथा संघर्ष का सामना करने के लिए तैयार रहे।