किन्नौर में दुर्लभ प्रजाती के सैकड़ों पेड़ होगें हलाल

रिकांगपिओ – जहां पूरे प्रदेश में हरे पेड़ों के कटान पर पूरी तरह प्रतिबंध है वहीं नेशनल इंट्रेस्ट के नाम पर किन्नौर में सैंकडों हरे भरे पेड़ों की बली दी जा रही है। दो वर्ष पूर्व ही एचपीपीसीएल (हिमाचल प्रदेश पावर कोरपोरेशन) द्वारा शौंगठंग-करच्छम जल विद्युत परियोजना के निर्माण को लेकर पांच सो से अधिक दुर्लभ प्रजाती के हरे पेड़ों को काटा गया वहीं अब इसी परियोजना क्षेत्र में और पांच सौ के करीब हरे पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही है। एचपीपीसीएल इन पेडों की बली दे कर उस चिन्हित स्थान पर परियोजना सुरंग से निकलने वाले मलवा को डप करना है। बताया जाता है कि जिस स्थान पर सेंकडों हरे पेड़ कटने है उस भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार के  नाम है जबकि कब्जा भारतीय थल सेना को दर्शया गया है। जानकार बताते है कि यदि उक्त भूमि को किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग करना हो तो सब से पहले सम्बंधित क्षेत्र के ग्राम सभा से एनओसी प्राप्त करना अनिवार्य रहता है, जिस के बाद एफसीए की प्रक्रिया को पूरा करना होता है। लेकिन यहां पर न तो सबंधित क्षेत्र के ग्राम सभा से एनओसी प्राप्त किया गया है और न ही एफसीए की प्रक्रिया को अमल में लाया गया है। वन विभाग द्वारा ऐसे सभी प्रमुख औपचारिकताआें को नजर अंदाज करने को लेकर पर्यावरण प्रेमियों में खासा गुस्सा पनप रहा है। हिम लोक जागृति मंच के संयोजक आरएस नेगी सहित कई पर्यावरण पे्रमियों ने बताया कि इस मामले में सबंधित पंचायत की ग्राम सभा सहित एफसीए की अनुमति लेना अनिवार्य है तब तक पेड़ों का कटना किसी भी सुरत में सभव नहीं है। यदि औपचारिकताआें को पूरा किए बीना ही पेड़ों को कटा जाता है तो स्वयं वन विभाग की जवाव देही सुनिश्चित होगीं। इस मामले पर डीएफओ किन्नौर एंजल चौहान ने खबर की पुष्टि करते हुए बताया कि पेड़ों को काटे जाने को लेकर आवेदन आया है। पंचायत प्रधान बीना नेगी बताया कि पेडों को काटे जाने को लेकर ग्राम सभा से कोई एनओसी जारी नहीं हुआ है। यह स्थल पवारी के निकट रांग मुहाल के खसरा नंबर 2, 5, 9, 416 भूमि पर है। जो करीब 2 हैक्टेयर के करीब है। स्वयं वन विभाग ने इस सरकारी वन भूमि पर 243 चिलगोजा के हरे वृक्ष तथा 250 के करीब अन्य प्रजाती के छोटे-बडे पेडों की मार्किंग तक की है। चिलगोजा के कई दर्जन वृक्ष डी, सी व बी श्रैणी के है।