ट्रकों की हड़ताल से कारखाने जाम   

ऊना में उद्योग प्रबंधकों को रोजाना लग रहा लाखों का चूना, आठवें दिन में पहुंची स्ट्राइक

गगरेट  – आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के आह्वान पर हड़ताल पर गए ट्रक आपरेटर की मांगों को लेकर केंद्र सरकार द्वारा कोई पहल न करने के चलते ट्रक आपरेटर की हड़ताल जैसे-जैसे लंबी खिंचने लगी है इसका असर अब रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं पर दिखने लगा है। माल ढुलाई न होने के कारण खाद्य पदार्थों का स्टाक भी अब बाजार में खत्म होने लगा है तो अब हड़ताली ट्रक आपरेटर ने दूध व सब्जियों ढुलाई में लगे वाहनों को भी माल ढुलाई बिलकुल बंद कर देने का फरमान जारी कर दिया है। दि विशाल हिमचल गुड्स ट्रांसपोर्ट सोसायटी माल ढुलाई में लगे किसी भी वाहन को गगरेट से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दे रही है। अगर शीघ्र ही हड़ताल का कोई हल न निकला तो दाल-सब्जी का भी अकाल पड़ने के आसार प्रबल हो गए हैं। शुक्रवार को भी दि विशाल हिमाचल गुड्स ट्रांसपोर्ट सोसायटी के सदस्य सड़कों पर डटे रहे और माल लेकर आने वाले वाहनों को आगे बढ़ने से रोक दिया। यहां तक कि शुक्रवार को सब्जी लेकर आए वाहनों को भी कल से न आने की चेतावनी देकर ही आगे जाने दिया। हालात यह हो गए हैं कि औद्योगिक क्षेत्र गगरेट में स्थित औद्योगिक इकाईयां भी पिछले करीब सात दिनों से अपना तैयार माल बाहर नहीं भेज पाई हैं। यही नहीं बल्कि दिल्ली की तरफ से भी मालवाहक वाहनों के न आने से कस्बे में रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं भी नहीं पहुंच पा रही हैं। अगर अगले दो-चार दिन में खाद्य वस्तुओं का स्टाक बाजार में नहीं पहुंचा तो इसका सीधा असर खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर देखने को मिल सकता है। हड़ताल से डरे हुए पेट्रोल पंप मालिक भी अब अपने टैंकर पेट्रोल लाने के लिए नहीं भेज रहे हैं। ऐसे में अगर समय पर पेट्रोल पंपों पर पेट्रो उत्पाद नहीं पहुंचे तो इसका सीधा असर यात्री वाहनों पर भी पड़ सकता है। उधर, उपमंडल औद्योगिक संघ के महासचिव सुरेश शर्मा का कहना है कि पिछले सात दिनों से यहां के उद्योगों के लिए बाहर से कच्चे माल की सप्लाई भी नहीं आ सकी है। अगर हड़ताल यूं ही  रही तो उद्योगपतियों को अपने उद्योगों में मजबूरन शटडाउन का ऐलान करना पड़ सकता है। वहीं दि विशाल हिमाचल गुड्स ट्रांसपोर्ट सोसायटी के प्रधान सतीश गोगी का कहना है कि ट्रक आपरेटरों को अभी तक वार्ता के लिए न बुला कर केंद्र सरकार ने असंवेदनशीलता का परिचय दिया है लेकिन ट्रक आपरेटरों को अगर भूखे भी जान देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटेंगे क्योंकि वैसे ही ट्रक आपरेटरों को कर्ज के बोझ तले दब कर मरने की नौबत आ गई है। देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के बाद ट्रक आपरेटर ही हैं जो जनता तक तूफान-बारिश की परवाह किए बिना जरूरी सामान पहुंचाते हैं। ऐसे में सरकार को ट्रक आपरेटरों की बात सुननी ही पड़ेगी।