थुनाग में ही रहेगा एसडीएम आफिस

By: Jul 18th, 2018 12:02 am

थुनाग, शिमला— मुख्यमंत्री के गृह विधनासभा क्षेत्र में बहुचर्चित एसडीएम मुख्यालय अब थुनाग में ही रहेगा। इस मामले में दायर पुनर्विचार याचिक को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। यहां बता दें कि सराज विधानसभा क्षेत्र में जंजैहली में एसडीएम कार्यलय की अधिसूचना रद्द करने को लेकर संघर्ष समिति के सदस्य ने हाई कोर्ट में  पुनर्विचार याचिका दायर की थी।  तीन मई, 2015 को पूर्व सरकार में रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जंजैहली में एसडीएम कार्यालय की घोषणा की थी। इस पर ग्राम पंचायत थुनाग ने 16 मार्च, 2016 हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि थुनाग में तहसील मुख्यालय होने के बावजूद जंजैहली में एसडीएम कार्यलय खालने की घोषणा उचित नहीं है। यह मामला कोर्ट में दो साल तक चलता रहा। दो साल बाद दो फरवरी, 2018 को हाई कोर्ट ने जंजैहली एसडीएम कार्यालय की अधिसूचना रद्द कर दी, जिसके बाद जंजैहली में लोगों ने प्रदेश सरकार वे खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया। इसके बाद हिमाचल सरकार ने 12 फरवरी को थुनाग में एसडीएम कार्यालय की अधिसूचना जारी की। इसके बाद 12 मार्च, 2018 को संघर्ष समिति के सदस्य ने मुख्यमंत्री के साथ बैठक हुई और जिसमें दोनों पक्षों में यह सहमति वनी कि 12 दिन के लिए जंजैहली में एसडीएम बैठेगा। इसके साथ संघर्ष समिति के लोगों ने हाई कोर्ट में एसडीएम कार्यालय को जंजैहली में ही रखने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर कर दी। इस 17 जुलाई, 2018 को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। अब एसडीएम कार्यालय थुनाग में ही रहेगा। इस फैसले को लेकर थुनाग क्षेत्र के साथ लगती पंचायत पखरैर, बहलीधार, शिकावरी, लंबाथाच, श्ररण, जैंशला, कांढा बगस्याड़, शिल्हीबागी, बागाचनोगी व इत्यादि पंचायतों ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

एमबीबीएस-बीडीएस काउंसिलिंग की सुनवाई 23 को

शिमला —प्रदेश हाई कोर्ट ने एमबीबीएस-बीडीएस की काउंसिलिंग में हिमाचल के मूल निवासी, जो हिमाचल से बाहर रह रहे हैं, को भी स्टेट कोटे का हकदार माना जाए या नहीं, इस पर तीसरे जज के समक्ष सुनवाई 23 जुलाई को निर्धारित की गई है। राज्य के महाधिवक्ता के किसी अन्य केस के सिलसिले में दिल्ली दौरे के कारण उक्त सुनवाई टली। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपने आदेशों में महाधिवक्ता की स्टेटमेंट को रिकार्ड किया, जिसके तहत अदालत को बताया गया कि स्टेट कोटे के अंतर्गत प्रार्थियों के लिए नौ सीटें ब्लॉक कर दी गई हैं। अदालत को बताया गया कि जिन छात्रों ने हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दायर नहीं की है, उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि यह याचिका के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। ज्ञात रहे कि एमबीबीएस-बीडीएस की काउंसिलिंग पर दोनों जजों ने अलग अलग निर्णय सुनाया है।  न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी  ने अपने निर्णय में व्यवस्था दी है कि किस श्रेणी को छूट देनी है, किसे नहीं यह सरकार के स्तर पर लिया जाने वाला निर्णय है और सरकार ने इस बारे में निर्णय लिया है। दूसरे जज न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने अपने निर्णय में अलग राय व्यक्त करते हुए व्यवस्था दी कि आजीविका कमाने के लिए प्रदेश से बाहर जाने वाले लोगों को प्रदेश भर से सरकारी या अर्धसरकारी नौकरी करने वालों में सरकार भेदभाव नहीं कर सकती, इसलिए सरकार का उक्त निर्णय असवैंधानिक है और कानून समत नहीं हैं।


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