दादा की प्ररेणा से हासिल की मंजिल

बचपन में दादा की बातों से प्रेरणा लेकर आज सरकाघाट की बेटी भारतीय सेना में लेफ्टिनेट बनकर मुकाम हासिल किया है।  इलाका भदरोता की यह बेटी अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी से सेना में लेफ्टिनेट बनी है। कुमारी सलोचना के दादा स्व. जिंदू राम शर्मा भी 1939 में भारतीय सेना 410 वलोच रेंजिमेंट में थे जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बार में  विनर थे । बेटी ने सिद्ध कर दिया है कि लक्ष्य और प्रेरणा के साथ मुकाम हासिल करना बड़ा आसान है, बस   इनसान में एक लग्न और कड़ी मेहनत करने का जज्बा होना चाहिए।  उपमंडल सरकाघाट की ग्राम पंचायत गौंटा के गांव निचला पलवाहन के सूबेदार मेजर गंगा राम शर्मा की बेटी कुमारी सलोचना के भारतीय सेना में चयनित होने से क्षेत्र में खुशी का माहौल है। बता दें कि कुमारी  सलोचना ने प्राथमिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक पाठशाला गौंटा से प्राप्त की और बारहवीं तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय बरेली से की। उसके बाद बीएससी (नर्सिंग) आर्मी इंस्टीच्यूट ऑफ नर्सिंग गुवाहाटी (असम)  से उत्तीर्ण की। कुमारी सलोचना के पिता सूबेदार मेजर गंगा राम शर्मा  ने बताया कि सलोचना को बचपन से ही सेना मे भर्ती होने का जुनून था  तथा बड़े कठिन परिश्रम से सलोचना ने अपनी मंजिल हासिल की है । कुमारी सलोचना के दो ताया सूबेदार अंनत राम शर्मा व सूबेदार राम लाल शर्मा भी भारतीय सेना से सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए हैं  तथा चचेरे भाई सेना में मेजर पद पर कार्यरत हैं। कुमारी सलोचना के पिता वर्तमान में सेना में सूबेदार मेजर के पद पर ज ेएंड के में कार्यरत हैं। इनका मानना है कि यूं  तो हौंसले से आ जाते हैं सितारे जमीन पर, पर मेहनत से सितारों  का कंथों पर आना बात ही निराली है।  यह कहना गलत न होगा कि  अगर दिल में दृढ़ संकल्प हो और कड़ी मेहनत हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है! फिर चाहे शिक्षा शहरी स्कूल से हो या फिर गांव के  स्कूल में हुई हो,  कोई मायने नहीं रखता है। जो इलाका भदरोता की कुमारी सलोचना ने कर दिखाया है। सूबेदार गंगा राम शर्मा के दो बच्चे हैं। इसमें बड़ी बेटी कुमारी सलोचना जो हाल ही में सेना में लेफ्टिनेट बनी है। वहीं  छोटा बेटा बीटैक कर रहा है।  माता मीना देवी गृहिणी हैं। कुमारी सलोचना ने सेना में लेफ्टिनेट बनकर जहां इलाका भदरोता का नाम रोशन किया है। वहीं अपने परिजनों का गौरव भी बढ़ाया है और क्षेत्र में लड़कियों के लिए प्रेरणा बन कर उभरी हैं।

— पवन प्रेमी, सरकाघाट

मुलाकात

कर्म ही हमारा भाग्य निर्धारित करता है…

आपकी जिंदगी में सैनिक परिवार में पैदा होने का असर कहां तक रहा?

मेरे दादा जिंदू राम भारतीय सेना में वलोच रेजिमेंट में थे और द्वितीय विश्व युद्व के वार विनर थे वह हमें बचपन से ही सेना की गतिविधियों की कहानियां सुनाया करते थे, वहीं से मेरे मन में भी सेना में जाने का शौक उत्पन्न हुआ। सैनिक परिवार में पैदा होने का जो असर हुआ तभी आज में इस मुकाम पर हूं।

सैन्य सेवा में आने के लिए खुद को कैसे तैयार किया?

मेरी प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल अपने गांव गौंटा में हुई और उसके बाद अपने पिता के साथ बरेली में चली गई और वहां से मैंने +2 मेडिकल में की।  फिर मैंने आर्मी इंस्टीच्यूट से बीएससी नर्सिंग की और पढ़ाई के बाद गंगा राम अस्पताल में नौकरी की, फिर आर्मी में जाने की तैयारी की और मैं लेफ्टिनेट बन गई।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में नायक या नायिका किसे मानती हैं। जिन्हें अपना आदर्श बनाया?

ऐसे तो में अपने दादा जिंदू राम को अपना आदर्श मानती हूं, लेकिन जहां में प्रशिक्षण ले रही थी उस इंस्टीच्यूट की प्रधानाचार्या लेफ्टिनेट कर्नल वी सुगिरथा से ज्यादा प्रभावित हुई हूं। उनको अपनी महिला नायक मानती हूं।

कर्म और भाग्य के बीच आपका अपना विश्वास किस तरह पुष्ट होता है?

मैं 99 प्रतिशत कर्म पर विश्वास करती हूं एक प्रतिशत भाग्य पर भरोसा करती हूं, क्योंकि कर्म ही हमारा भाग्य निर्धारित करता है।

सैन्य और सामान्य सेवाओं में आप क्या अंतर देख पाईं?

दोनों ही सेवाएं अपनी जगह सही हैं, सैन्य सेवा देशभक्ति व समर्पण की भावना जगाती है।

जब आपको गुस्सा आता है तो क्या करती हैं। किस बात पर गुस्सा आता है?

जब मुझे गुस्सा आता है तो मैं शांत रह कर जवाब देती हूं।  कई बार कोई मुझे किसी बात पर चिढ़ाता है या चैलेज करता है तो मैं ज्यादा मेहनत करती हूं।

दोस्त और दुश्मन के बीच सलोचना किस तरह फर्क कर पाती हैं?

जो हमारी मदद मुश्वित में करता है वही हमारा मित्र है और मैं दुश्मन कभी किसी को नहीं मानती हूं।

कब लगा कि आप सामान्य लड़कियों से भिन्न हैं तथा सेना ही करियर है?

जब मैं अपने पिता के साथ बरेली गई, तो मुझे सेना में जाने का रास्ता नजर आने लगा और मैंने सेना में जाने के सपने लेना शुरू ही नहीं किया, बल्कि मेहनत करना ज्यादा तेज कर दिया। बस फिर मुझे लगा कि मेरी सोच अन्य लड़कियों से भिन्न है और अपना करियर भी सेना में बनाने का मन पका मना लिया।

देश या समाज की कौन सी बुराइयां विचलित करती हैं, जहां भारतीय होने पर फख्र होता है?

देश में युवाओं को नसे की लत लगी है मैं नसे के खिलाफ  हूं । युवाओं को नसे से दूर रहने की अपील करती हूं और भारतीय होने का गर्व है।

भारतीयता के आपके मायने?

अपने देश के प्रति देशभक्ति की भावना व कड़ी मेहनत से अपने देश की प्रगति के लिए हमारा भी योगदान हो।

जीवन में कभी कोई ऐसी शख्सियत मिली जिससे जीतने का नजरिया बदल गया? जीत को कैसे परिभाषित करेंगी?

हां मेरे दादा के अलवा मेरे भाई मेजर व मेरे संस्थान की प्रधानाचार्या वी सुगिरथा जिन्होंने मेरे जीवन का नजरिया बदल दिया।

कभी तनाव होता है, तो क्या करती हैं। युवाओं से कौन सी प्रवृतियां दूर करना चाहती हैं?

तनाव मैं शांत रहती हूं और मैं अपने आप को तनाव मुक्त रखती हूं। युवाओं को नसे से दूर रहने की सलाह देती हूं। बजाय नसा करने के अपनी योग्यता ज्यादा से ज्यादा बढ़ाएं और देश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।

आपके लिए आशा का ठोस आधार क्या रहा और कब लगा कि वर्दी इंतजार कर रही है। खुशी का इजहार कैसे करती हैं?

वर्दी का इंतजार पहले से ही था और आज मेरे पास वर्दी है मैं अपने आप को शौभाग्यशाली समझती हूं।  अपनी खुशी में सबसे पहले अपने परिजनों से शेयर करती हूं। खुशी होते हैं तो मेरी खुशी दोगुना ज्यादा हो जाती है।

्रहिमाचली बेटियों के नाम आपकी राय तथा हाल की उपलब्धियों में जिसने आपको प्रभावित किया?

प्रदेश की बेटियां हमेशा न.1 पर रही हैं।  मैं अपने देश की बेटियों को भी सेना में जाने की सलाह देती हूं।