मैदान में युवा

By: Jul 2nd, 2018 12:02 am

हिमाचल के नौजवान खेलों में भी प्रदेश को गौरवान्वित कर रहे हैं, लेकिन बेहतर सुविधाएं न मिलने से खेल प्रतिभाएं दम तोड़ती नजर आने लगी हैं। दूसरे राज्यों के मुकाबले हिमाचल के पिछड़ते खेल ढांचे को दखल के जरिए बेपर्दा कर रहे हैं, शकील कुरैशी, टेकचंद वर्मा और भावना शर्मा…

हिमाचल के कई खिलाड़ी आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम गौरवान्वित कर रहे हैं। मौजूदा समय में क्रिकेट, शूटिंग, एथलेटिक्स और कबड्डी  में खिलाड़ी देश सहित प्रदेश का सम्मान बढ़ा रहे हैं, मगर खेल विभाग अधिकाधिक युवाओं को खेल मैदान तक लाने में नाकाम दिख रहा है। हालांकि पूर्व में पायका, राजीव गांधी खेल योजना के तहत ग्रामीण स्तर पर विभिन्न तरह की खेल गतिविधियां आयोजित कर ग्रामीण खिलाड़ी गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच रहे थे, मगर उक्त खेल गतिविधियों के बंद होने से आज खेल विभाग को युवाओं को खेल मैदान तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। इन खेल गतिविधियों के  बंद होने से ग्रामीण स्तर पर अब नाम मात्र इवेंट ही हो पा रहे हैं। प्रदेश में खेल, साहसिक खेलों की अपार संभावनाएं हैं। इस दिशा में पूर्व सरकार सहित भाजपा सरकार द्वारा कारगर कदम उठाने के दावे भी किए गए थे, लेकिन खेलों को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठाए जा सके। मौजूदा समय में विभाग द्वारा ऐसा कोई विशेष अभियान लांच नहीं किया है, जिसके माध्यम से राज्य में खिलाडि़यों की खेल शैली निखारने सहित खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन मिले। देश-प्रदेश में खेलो इंडिया के शुरू होने के बाद खेल विभाग चुनिंदा इवेंट आयोजन तक ही सीमित रह गया है।

चार दीवारी में कैद ग्रामीण प्रतिभाएं

हिमाचल प्रदेश में युवाओं (खिलाडि़यों) के आकर्षण और शौक का केंद्र नाम मात्र खेल ही रह गए हैं, जिसका मुख्यतः कारण राज्य में खेल संबंधित आधारभूत ढांचे का अभाव है। हालांकि सरकार राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए बड़े-बड़े दावे करती है, मगर वह केवल फाइलों तक ही सीमित है।

यही कारण है कि पहाड़ी प्रदेश की प्रतिभा आज भी चार दीवारी में कैद होकर रह गई है। खेल विभाग द्वारा राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत ढांचा तैयार किया जा रहा है, लेकिन यह शहरों की मुख्य धारा तक सीमित है। ग्रामीण स्तर पर खेल प्रतिभा (पौध) को संवारने (निखारने) के लिए आज भी सकारात्मक पहल नहीं हो पाई है, जिसके चलते आज भी ग्रामीण प्रतिभा ग्रामीण स्तर तक सीमित होकर रह गई है। मौजूदा समय में खेल विभाग द्वारा विभिन्न खेलों व खिलाडि़यों को निखारने के लिए इंडोर स्टेडियम, आउटडोर स्टेडियम सिंथेटिक ट्रैक, एस्ट्रो टर्फ तैयार किए गए हैं।

इसके अलावा होस्टलों के माध्यम से भी खिलाडि़यों को विभिन्न खेलों में निपुण किया जा रहा है, मगर आज भी प्रदेश के पदकों के ग्राफ अन्य राज्यों की तुलना में कई पायदान पीछे हैं।

प्रदेश में चार इंडोर स्टेडियम

मौजूदा समय में प्रदेश में चार इंडोर स्टेडियम है, जो प्रदेश के धर्मशाला, ऊना, बिलासपुर और रोहड़ू में स्थापित हैं। रोहड़ू में इंडोर स्टेडियम के साथ-साथ आउटडोर स्टेडियम भी स्थापित किया गया है। जहां खिलाडि़यों की खेल शैली निखारने के लिए प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के साथ-साथ आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवाया जा रहा है।

धर्मशाला-हमीरपुर में सिंथैटिक ट्रैक

प्रदेश के धर्मशाला व हमीरपुर में एथलीटों को आधुनिक सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। उक्त क्षेत्रों में खिलाडि़यों के लिए सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण किया गया है। इसके अलावा बिलासपुर के लुहणू में भी सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इसके अलावा जिला शिमला के रोहड़ू-सरस्वती नगर में भी सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण किया जाना है, जिस पर 12 करोड़ रुपए की धन राशि खर्च की जाएगी। हाल ही में उक्त सिंथेटिक ट्रैक निर्माण के लिए शिलान्यास पट्टिका रखी गई।

70 कोच दे रहे प्रशिक्षण

प्रदेश में मौजूदा समय में 70 के करीब प्रशिक्षक विभिन्न खेलों में खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। राजधानी शिमला (जिला) में सबसे अधिक प्रशिक्षक तैनात हैं। विभाग से प्राप्त जानकारी के तहत जिला में 15 के करीब प्रशिक्षक विभिन्न खेलों में युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं। इसके अलावा बिलासपुर में चार, हमीरपुर में चार, कांगड़ा में छह, मंडी में सात, कुल्लू, चंबा में तीन, किन्नौर में एक, सिरमौर में दो, ऊना में आठ और सोलन में चार प्रशिक्षक तैनात हैं।

हिमाचल में नहीं हो पाया इंटरनेशनल खेल मुकाबला

हिमाचल प्रदेश में खिलाडि़यों को अभी तक आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। पहाड़ी प्रदेश में खेल ढांचा इंडोर स्टेडियम तक सीमित रह गया है। इनमें भी खिलाडि़यों को खेल संबंधित सामान का अभाव चल रहा है। प्रदेश राज्य सरकार व विभाग इंडोर स्टेडियम का निर्माण नहीं कर पाया है, जिसके चलते आज तक प्रदेश में कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुकाबला नहीं हो पाया है। अगर राज्य में इस तरह की सुविधाएं जुटाई जाएं, तो प्रदेश के खिलाड़ी बड़े स्तर के मुकाबले के लिए अच्छे से अभ्यास करने सहित यहां होने वाले मुकाबले से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

किराए के सामान से शूटिंग की प्रैक्टिस

प्रदेश में एक मात्र शूटिंग रेंज है। जहां से सरकार व विभाग अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए शूटर तराशने का प्रयास कर रहे हैं, मगर शूटिंग रेंज के शुरू होने से पहले से अब तक विभाग उक्त शूटिंग रेंज में शूटरों को उपकरण उपलब्ध नहीं करवा पाया है। आज भी शूटिंग रेंज में शूटिंग का प्रशिक्षण किराए के उपकरणों के सहारे चल रहा है।

खिलाडि़यों को कम मिल रहा मान

प्रदेश में खिलाडि़यों को अन्य राज्यों के खिलाडि़यों की तरह सम्मान की आवश्यकता है, जिससे खिलाडि़यों का मनोबल बढ़ सके। इसमें बेहतर उपलब्धि करने वाले खिलाडि़यों को परशुराम अवार्ड प्रदान करने सहित रोजगार में तीन फीसदी कोटे को सुदृढ़ता से लागू करना प्रमुख है और राज्य का नाम रोशन करने वाले को उपलब्धि के तहत रोजगार मिलना चाहिए।

सरकार की बेरुखी से दम तोड़ रहे खेल

स्कूलों से आगे नहीं मिल पा रही पर्याप्त मदद, खेल संघ-खिलाड़ी अपने बूते पा रहे मुकाम हिमाचल प्रदेश में खेल गतिविधियां खेल संघों तक ही सीमित होकर रह गई हैं। खेल संघ ही खिलाडि़यों के लिए जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले का आयोजन कर रही है और इन स्पर्धाओं में खिलाडि़यों की भागीदारी का बीड़ा उठा रही है।

अगर यूं कहा जाएं कि खेल संघ व खिलाड़ी स्वयं ही खेलों को आगे बढ़ा रहे हैं तो वह गलत नहीं होगा। चूंकि सरकार द्वारा संघों को प्रदान की जा रही सहायता नाम मात्र है। इस सहायता में जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर के आयोजन करवाना संभव नहीं है। यहीं कारण हिमाचल में खेलों के प्रदर्शन गिरने का माना जा रहा है।  हिमाचल प्रदेश में अधिकांश खेल संघ सक्रिय हैं, जो अपने व खिलाडि़यों के बूत्ते पर खेलों को आगे लेकर जा रहे हैं, लेकिन सरकार का सहयोग न मिलने से खेल व खिलाड़ी दोनों दम तोड़ते दिख रहे हैं।

हालांकि खेल विभाग द्वारा ग्रामीण स्तर खेलों के प्रोत्साहन के लिए विभिन्न आयोजन कर प्रयास किए जा रहे हैं। मगर विभाग के यह प्रयास केवल मात्र स्कूलों तक ही सीमित है। इसके पश्चात सहयोग न मिलने से हिमाचल अन्य राज्यों के मुकाबले पदक दौड़ में काफी पिछड़ता दिख रहा है।

प्रदेश में सक्रिय खेल संघ

मौजूदा समय में हिमाचल प्रदेश में सक्रिय खेल संघों की श्रेणी में क्रिकेट, बॉक्सिंग, कराटे, बैडमिंटन, ताईक्वांडो, जूडो, शूटिंग, हॉकी, कबड्डी, वालीबाल, एथलेटिक्स शामिल हैं। इतना ही नहीं प्रदेश में कई खेलों में दो-दो संघ भी सक्रिय हैं।

एक साल में तीन मुकाबले

हिमाचल प्रदेश में बॉक्सिंग, बैडमिंटन, जूडो, कराटे, ताईक्वांडो, हॉकी और क्रिकेट एसोसिएशनों द्वारा एक वर्ष के दौरान तीन स्पर्धाएं आयोजित करवाई जा रही हैं, जिसमें जिला स्तरीय, राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय स्पर्धा शामिल हैं। इतना ही खेल संघों द्वारा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए भी खिलाड़ी भेजे जा रहे हैं।

बेकार नहीं जाएगा खिलाडि़यों का टेलेंट

गोविंद ठाकुर

खेल मंत्री, हिमाचल प्रदेश

दिहि :   हिमाचल की खेल नीति क्या होगी? इसके अंतर्गत टेलेंट हंट कैसे होगा और क्या ढांचागत सुविधाएं जुटाई जाएंगी?

गोविंदः खेल नीति पर अभी चर्चा चल रही है। दूसरे राज्यों के मॉडल भी देखे जा रहे हैं। यहां खिलाडि़यों के करियर को बेहतरीन दिशा मिले इसका खेल नीति में प्रावधान रहेगा। खिलाडि़यों के टेलेंट को परखने का पूरा इंतजाम रहेगा। प्रदेश में टेलेंट की कमी नहीं है, जिसका उचित सम्मान जय राम सरकार करेगी।

दिहि:  प्रदेश में खेल विश्वविद्यालय बनाने से पूर्व क्या मैदानों की दशा सुधारना अधिक आवश्यक नहीं है? प्रदेश के बड़े मैदानों का इस्तेमाल सांस्कृतिक आयोजनों, मेलों व पार्किंग के लिए हो रहा है। क्या इस ओर पहले ध्यान नहीं देना चाहिए?

गोविंदः प्रदेश में मैदानों की बेहद कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे खेल मैदान विकसित करने की योजना है जिसके लिए बजट में भी प्रावधान रखे गए हैं। खेलों के लिए जो मैदान चिन्हित होंगे, वहां पर अन्य गतिविधियां न हो इसका ख्याल रखा जाएगा। पार्किंग या मेलों आदि के लिए अलग से स्थान होने चाहिएं। पूर्व सरकारों ने आधारभूत ढांचे पर ध्यान नहीं दिया जिस कारण आज ये परेशानी खड़ी है।

दिहि:   खेलों में उम्दा प्रदर्शन करने वाले युवाओं के भविष्य का क्या होगा? देखा गया है कि पुख्ता नीति के अभाव में कई अच्छे खिलाड़ी सरकारी रोजगार का अरसे से इंतजार कर रहे हैं। क्या करेंगे?

गोविंदः  खिलाडि़यों को खेल कोटा रोजगार के लिए दिया जाता है। उम्दा प्रदर्शन करने वाले खिलाडि़यों का सरकार को पूरा ध्यान है। खेल नीति में इनके लिए विशेष प्रावधान करेंगे और खिलाड़ी प्रदेश से बाहर न जाएं, इसका भी ख्याल किया जाएगा।

दिहि:   प्रदेश में आयोजित होने जा रही ग्रेट खली की कुश्ती प्रतियोगिता से प्रदेश के युवा खिलाडि़यों का क्या भला होगा?

गोविंदः ग्रेट खली हिमाचल ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा नाम है। हमारी सरकार उनका इवेंट यहां करवाने जा रही है जो प्रदेश के लोगों के लिए एक नया रोमांच होगा।  इसकी तैयारियां की ली गई हैं। इस तरह के और इवेंट भी करवाए जाएंगे।  इससे यहां खिलाडि़यों और युवाओं को बड़ा संदेश मिलेगा जो अपने प्रदेश के लिए नया कुछ कर सकेंगे। साथ ही सरकार उनके लिए कुछ भी कर सकती है इसका एहसास भी उन्हें होगा। इस तरह की प्रतियोगिता खिलाडि़यों के सम्मान के लिए ही आयोजित की जा रही है।

खेलों का शेड्यूल तैयार कर रहा विभाग

सुमन रावत,  अतिरिक्त निदेशक, खेल विभाग

हिमाचल प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए अभी भी खेल संबंधी आधारभूत ढांचा सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। खास तौर पर प्रदेश के ग्रामीण हलकों में खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कोई कारगर कदम अभी तक नहीं दिख रहे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभाओं को बेहतर प्लेटफार्म नहीं मिल रहा है। हालांकि पूर्व में खेल विभाग द्वारा पायका के माध्यम से प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न खेलों का आयोजन किया जाता था, मगर पायका के खत्म होने के बाद ग्रामीण स्तर पर तो अधिकांश खेल गतिविधियां ठप पड़ी हुई है। ऐसे में ग्रामीण युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए बेहतर प्लेटफार्म नहीं मिल रहा है, जिसके चलते ग्रामीण प्रतिभा चार दीवारी में ही कैद होकर रह गई है। अतिरिक्त निदेशक सुमन रावत का कहना है कि प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। हर जिले में खिलाडि़यों को आधारभूत ढांचा विकसित किया जा रहा है। इंडोर स्टेडियम के साथ-साथ आउटडोर स्टेडियम का निर्माण हो रहा है। वहीं खिलाडि़यों के लिए सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण भी किया जा रहा है। खिलाडि़यों की खेल शैली निखारने के लिए हर जिले में कोच की तैनाती की जा रही है। इसके अलावा खिलाडि़यों की डाइट का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। प्रदेश व ग्रामीण स्तर पर खेल गतिविधियों के आयोजन को लेकर खेलों का शैडयूल तैयार किया जा रहा है।

खेलो इंडिया के बेहतर परिणाम

खेलो इंडिया खेलो प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश का बेहतर प्रदर्शन रहा है। पहली मर्तबा हुए इस आयोजन में हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों ने कई पदकों पर कब्जा जमाकर प्रदेश को गौरवान्वित किया है।

साई स्पोर्ट्स की धाक

खेल विभाग के स्पोर्ट्स होस्टलों के मुकाबले साई स्पोर्ट्स होस्टलों की उपलब्धियां अधिक हैं। मगर विभाग के खेल होस्टलों से भी उम्दा खिलाड़ी निकल रहे हैं। विभाग के होस्टलों में प्रशिक्षण ग्रहण कर कई खिलाड़ी, बॉक्सिंग, कबड्डी, एथलेटिक्स में राज्य का नाम गौरवान्वित कर चुके हैं। प्रदेश में साई के भी दो स्पोर्ट्स होटल चल रहे हैं, जो धर्मशाला व बिलासपुर में हैं। इन होस्टलों में अभ्यासरत खिलाडि़यों ने कई खेलों में सकारात्मक प्रदर्शन के बूते पर पदकों पर कब्जा जमाया है। विभाग सहित साई के स्पोर्ट्स होस्टलों में खिलाडि़यों को आधुनिक स्तर के उपकरणों सहित प्रशिक्षित प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे भविष्य में और अच्छे सकारात्मक परिणाम सामने आने की उम्मीदें लगाई जा रही है।

साई स्पोर्ट्स होस्टल की उपलब्धियां

वर्ष 2017 के दौरान साई स्पोर्ट्स होस्टल के खिलाडि़यों ने विभिन्न खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। साई होस्टल की खिलाडि़यों ने इंटर कालेज, स्टेट, स्कूल चैंपियनशिप, नेशनल स्कूल गेम्स, फेडरेशन कप सहित अन्य मुकाबलों में 136 पदक हासिल किए। इसमें एथलेटिक्स में 32 स्वर्ण, 13 रजत, पांच कांस्य, कबड्डी में 30 गोल्ड, 29 सिल्वर, 17 ब्रांज और वालीबाल में 10 स्वर्ण जीते हैं।

बिना बजट, कैसे हों समर कैंप

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में खेलों को बढ़ावा देने और छात्रों को स्पोर्ट्स  से जोड़कर प्रदेश से खिलाड़ी तैयार  करने के लिए युवा एवं खेल विभाग चलाया जा रहा है। एचपीयू में विभाग तो बना दिया है, लेकिन इसमें बजट की कमी के साथ-साथ आधारभूत ढांचा ही नहीं है, जिससे कि यह विभाग स्पोर्ट्स की गतिविधियों को बढ़ावा दे सकें। विभाग को वर्ष भर की गतिविधियों के लिए इस वर्ष भी मात्र 25 लाख का ही बजट मुहैया करवाया गया है। ऐसे में इतने कम बजट में इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिताएं करवाने के साथ ही यूथ फेस्टिवल और अन्य गतिविधियां प्रदेश के कालेजों सहित विश्वविद्यालय में करवानी हैं।

बजट की कमी ही सबसे बड़ी समस्या है कि एचपीयू इन वार्षिक गतिविधियों के अलावा अन्य कोई भी समर कैंप प्रदेश में आयोजित नहीं कर पा रही है। विश्वविद्यालय को छोड़कर अन्य बाहरी राज्यों के विश्वविद्यालय समर कैंप आयोजित कर रहे हैं। इन विश्वविद्यालयों में स्पोर्ट्स के विभागों को उनमें होने वाली वार्षिक स्पोर्ट्स गतिविधियों के तहत ही बजट मिलता है। साथ ही इन विश्वविद्यालयों को कैंप के लिए भी अतिरिक्त बजट मुहैया करवाया जाता है। इसके मुकाबले प्रदेश के एकमात्र विश्वविद्यालय में युवा एवं शारीरिक शिक्षा विभाग मात्र छात्रों को कोर्स करवाने और उन्हें थ्योरी का ही ज्ञान देने तक सिमट कर रह गया है। विश्वविद्यालय के पास न ही बेहतर खेल मैदान हैं और न ही खेलों के पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर।

यहां तक कि  इंटर कालेज और इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिताओं के लिए भी अधिकतर आयोजन शिमला खेल परिसर में ही एचपीयू करवाता है। हालात यह है कि एचपीयू में स्पोर्ट्स कोच के 12 पद खाली पड़े हैं। ऐसे में विभाग अपने अच्छे खिलाडि़यों को सही स्पोर्ट्स ट्रेनिंग ही नहीं दे पा रहा है, जिसकी वजह से न ही समर कैंप एचपीयू लगा पा रही है, न ही कोई अन्य गतिविधियां करवाई जा रही हैं। एचपीयू के युवा एवं खेल विभाग को मात्र एचपीयू के बजट में से ही कुछ राशि वार्षिक बजट के रूप में मुहैया करवाई जाती है।

  1. आधारभूत ढांचे की कमी के चलते खिलाड़ी मुश्किल में
  2. कोच के खाली पड़े हैं 12 पद

इतने कम बजट में इंटर कालेज और यूथ फेस्टिवल में होने वाली प्रतियोगिताएं व चैंपियनशिप करवा पाना ही संभव नहीं होता है, तो समर कैंप करवाने का विचार भी एचपीयू नहीं कर सकती है

प्रो. सुरेंद्र शर्मा

निदेशक, युवा एवं खेल विभाग, एचपीयू

विभाग का दावा, बढ़ाए जा रहे मैदान

खेल विभाग का दावा है कि राज्य में खिलाडि़यों व खेल को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत ढांचा विकसित किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों सहित स्कूलों में खेल मैदान बनाए जा रहे है। इंडोर व ओपन स्टेडियम का निर्माण किया जा रहा है।

खेल विभाग के दो स्पोर्ट्स होस्टल

हिमाचल प्रदेश में खेल विभाग के दो स्पोर्ट्स होस्टल चल रहे है, जो ऊना व बिलासपुर में चल रहे हैं। विभाग के इन स्पोर्ट्स होस्टलों में वालीबाल, एथलेटिक्स, कबड्डी, हैंडबाल, हॉकी और बास्केटबाल का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।


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