सफेद नहीं हुआ काला धन

By: Jul 7th, 2018 12:02 am

राजेश कुमार चौहान

हमारे देश के लिए बहुत दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश की इतनी धन-दौलत दूसरे देशों के  बैंकों की शान बनी हुई है। एक तरफ हमारे देश में करोड़ों रुपए दूसरे बैंकों में पड़े हैं, तो दूसरी तरफ हमारे देश में अधिकतर लोग ऐसे भी हैं, जो गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं। 2014 के आम चुनाव के प्रचार-प्रसार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताली बजा-बजाकर लगभग 100 दिनों में देश में से कालेधन की बीमारी को सत्ता में आते ही जड़ से उखाड़ने का वादा किया था। इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालेधन पर नकेल कसने के लिए कोई कदम न उठाए हों। नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला तो लिया था, लेकिन नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी, बिना किसी तैयारी और बौखलाहट में लिया गया लगता है, क्योंकि नोटबंदी से न तो कालेधन पर नकेल लगी और न ही कालेधन को दूसरे देशों के बैंकों की शान बनाने वालों के हौसले पस्त हुए। अगर कालेधन के जमाखोरों को मोदी सरकार का जरा भी डर होता, तो स्विस बैंक के आंकड़ों में यह खुलासा नहीं होता कि पिछले एक साल में वहां जमा भारतीयों की जमापूंजी में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बेशक अब इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह सफाई दी है कि जरूरी नहीं है कि स्विस बैंकों में जमा सारा पैसा कालाधन ही हो, फिर भी अगर कोई दोषी पाया जाएगा, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यहां सवाल यह है कि भारतीय करंसी को दूसरे देशों के बैंकों की शान बनाकर, भारत की आर्थिक स्थिति को क्यों कमजोर किया जा रहा है? क्या मोदी सरकार भारतीय बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए विदेशी बैंकों में भारतीय करंसी को जाने से रोकने के लिए नोटबंदी जैसा कठोर फैसला नहीं ले सकती है?

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App