और नेताजी के लिए चार वीरों ने छोड़ दी अंग्रेज सेना

1942 में नौकरी छोड़ ज्वाइन की आजाद हिंद फौज, 1984 में मिला फ्रीडम फाइटर का दर्जा

गगल – वे जब अंग्रेजी सेना में थे, तो फिरंगी उनके साहस के कायल थे और जब आजाद हिंद फौज में आए, तो भारत माता को उन पर फख्र हुआ। जी हां! कुछ ऐसी ही कहानी है, धर्मशाला से सटे सराह गांव के चार सूरमाओं की, जिन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर अंग्रेजी सेना की नौकरी को ठोकर मार दी। नौकरी क्या छोड़ी, तुरंत आजाद हिंद फौज भी ज्वाइन कर ली। बात बरस 1942 की है, जब सराह गांव के शिविया राम, सोहन सिंह भुल्लर, पंडित चंद राम, बलवंत धीमान नेताजी के आह्वान पर तुरंत आजाद हिंद फौज से जुड़ गए। इसी बीच जब फिरंगियों को इन जांबाजों के इरादों की भनक लगी, तो इन्हें खूब प्रताडि़त किया गया। बुजुर्ग बताते हैं कि इन चारों को लंबे समय तक बर्मा और जापान की जेलों में रखा गया। बाद में इन्हें जंगलों में छोड़ दिया गया। आजादी के बाद जब वे किसी तरह भारत आए, तो इनका रिकार्ड खो गया था। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के चलते इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। कुछ ऐसी ही कहानी अन्य जवानों की थी। खैर, ऐसे असंख्य वीर जवानों के संघर्ष से बरस 1947 में देश आजाद हो गया, लेकिन इन जांबाजों का संघर्ष शायद और लंबा चलना था। आजादी के बाद इन सूरमाओं की सही पैरवी न हो पाने से इन्होंने और इनके परिवारों ने अगले 38 साल बेहद मुश्किल में गुजारे।  लंबे संघर्ष के बाद 1984 में आखिर वह दिन आया, जब इन वीर सपूतों को फ्रीडम फाइटर का दर्जा मिला। आज पूरे देश को आजादी के इन नायकों पर गर्व है। आइए, इन्हें स्वतंत्रता दिवस पर नमन करें।

हवलदार ने भगाया फिरंगी

सराह गांव में वर्ष 1912 में जन्मे जांबाज हवलदार हरनाम सिंह आजादी के गुमनाम नायक रहे हैं। हरनाम 1932 में अंग्रेजी सेना की पंजाब रेजिमेंट में बतौर सैनिक भर्ती हुए। महज चार साल में ही योग्यता के दम पर उन्होंने हवलदार का रैंक हासिल कर लिया। 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध में हरनाम ने बैल्जियम, सिंगापुर, बर्मा की लड़ाई में कई मेडल हासिल किए। सन 1945 में वह अपनी बटालियन मेरठ आए। यहां उनका रुतबा अस्थायी रूप से बटालियन हवलदार मेजर का था। इसी बीच एक दिन परेड के दौरान एक फिरंगी अफसर ने दो भारतीय सैनिकों को गालियां निकालना शुरू कर दी, इस पर हरनाम ने रायफल उठा ली। बचने के लिए फिरंगी ऐसा भागा कि उसने कर्नल बैरक में जाकर शरण ली। इस पर हरनाम को कोर्ट मार्शल के बाद मौत की सजा (गोली मारने) दी। खैर, बड़ी बगावत के डर से अंग्रेजों ने उन्हें माफी मंगवानी चाही, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इस पर उन्हें बिना मेडल-पेंशन घर भेजा गया, जब वह घर आए तो मां-बाप और पत्नी की मौत हो चुकी थी। वर्ष 2005 में उनका निधन हो गया, लेकिन इस जांबाज ने कभी सरकार से पेंशन-भत्ते और फ्रीडम फाइटर का दर्जा नहीं मांगा।