जब हिंदुओं ने जान पर खेलकर बचाए 30 मुस्लिम परिवार

By: Aug 11th, 2018 12:15 am

1947 के दंगों में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बना सराह गांव, राजपूत महिला ‘दे’ ने दिखाई वीरता

गगल— देश को आजादी मिली तो भारत-पाक बंटवारे ने हिंदू-मुस्लिम समुदाय को कभी न मिलने वाले जख्म भी दिए। नफरत की ऐसी आंधी उठी कि लाखों परिवार दंगों की भेंट चढ़ गए। उस दौरान नफरत की लपटों से पहाड़ भला कैसे अछूता रहता। कुछ ऐसी ही नफरत की लपटें धर्मशाला से सटे सराह गांव पहुंचीं तो यहां के लोगों ने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल कायम कर 30 गुज्जर परिवारों को जान पर खेलकर सुरक्षित कांगड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचाया। उम्र के 90 साल पार कर चुके ग्रामीण रावण, फकीरी राम, साहबू बताते हैं कि उस समय गांव में 40 फीसदी आबादी गुज्जरों की थी। यह करीब 30 परिवार थे। यहां इतनी बड़ी संख्या में गुज्जर इसलिए थे, क्योंकि सराह में बड़ी-बड़ी चरागाहें थीं। यह गांव नागनी और बाहल खड्डों से घिरा था। ऐसे में पशुपालन के लिए परिस्थितियां अनुकूल थीं। यही वजह थी कि इतनी बड़ी संख्या में यहां गुज्जर रहते थे, जो कि हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की बड़ी मिसाल थी। इस दौरान जब हिंदू-मुस्लिम दंगों की खबरें यहां पहुंचीं तो सारा गांव अपने मुस्लिम भाइयों के पक्ष में खड़ा हो गया। बुजुर्ग बताते हैं कि गुज्जर परिवारों को चैतड़ू पुल से होकर किसी तरह कांगड़ा रेलवे स्टेशन तक पहुंचना बेहद जरूरी था। यह किसी भी सूरत आसान काम नहीं था। …क्योंकि चैतड़ू पुल और अन्य स्थानों से तनाव की सूचनाएं आ रही थीं। ऐसे में गांव के कुछ जुझारू लोगों ने अपने मुस्लिम भाइयों की सुरक्षा का जिम्मा उठा लिया। पहले तो तमाम मुस्लिम परिवारों को यहां के प्रतिष्ठित परिवार हवलदार हरनाम सिंह की डियोड़ी में सुरक्षित रखा गया। बुजुर्ग कहते हैं कि जब गुज्जरों को हरनाम सिंह अपने साथियों संग गांव से ले जाने लगे तो कुछ आक्रोशित युवाओं ने उन्हें रोक दिया और हरनाम पर तलवार से हमला कर दिया। इस दौरान गांव की एक राजपूत महिला जिसे ‘दे’ यानी देवी कहा जाता था, ने तलवार छीन ली और खुद उनके सामने डट गई। वीरांगना का गुस्सा देख वे युवा भाग गए।

हरनाम ने छीनी बंदूक

मुश्किल यहीं खत्म न होने वाली थी। काफिला जब चैतड़ू पहुंचा तो वहां तनाव चरम पर था। भीड़ को हवलदार हरनाम रोड़ा लगे, किसी ने दोनाली बंदूक से हवलदार हरनाम पर फायर कर दिया। गोली उन्हें नहीं लगी। इस पर 30 साल के युवा हरनाम ने तुरंत गोली चलाने वाले से बंदूक छीन ली। रौंद निकालने के बाद उन्होंने बंदूक को नदी में फेंक दिया। यह रौंद अभी भी उनके बॉक्स में महफूज है।

‘कांझ’ रेलवे स्टेशन तक गई

खैर किसी तरह सभी मुस्लिमों का रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया गया। इसमें कांझ नामक महिला रेलवे स्टेशन तक उन परिवारों के साथ गई। गांव में इन सभी होनहार जांबाज ग्रामीणों का नाम आज भी बड़े आदर से लिया जाता है।


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