नालागढ़ में  मनाया ईद-उल-जुहा

नालागढ़ —नालागढ़ उपमंडल में ईद-उल-जुहा (बकरीद) का त्यौहार धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया गया। नालागढ़-रोपड़ मार्ग पर स्थित ईदगाह में हजारों मुस्लिम समुदाय ने ईद की नमाज अता की, वहीं नालागढ़ रामशहर मार्ग पर तबलिगी मरकज में भी नमाज पढ़ी गई और समुदाय के लोगों ने ईद की नमाज अता करते हुए देश की अमन, शांति व चैन की दुआ मांगी। नालागढ़-रामशहर मार्ग पर तबलीगी मरकज में मौलाना अब्दुल वाजिद व नालागढ़ रोपड़ मार्ग पर ईदगाह में मौल्वी इरफान ने समुदाय के लोगों से ईद की नमाज अता करवाई। मौलाना अब्दुल वाजिद व इरफान ने कहा कि प्रेम, दया, कुर्बानी और विश्वास का प्रतीक यह त्यौहार खुदा को कुर्बानी की याद दिलाता है। उन्होंने कहा कि इस पर्व पर तमाम मुस्लिम भाईयों द्वारा देश में अमन चैन, शांति व खुशहाली की दुआ मांगी जाती है। बता दें कि मुस्लिम समुदाय में ईद- उल -जुहा का अपना एक महत्व है और यह त्यौहार हजरत इब्राहिम और उनके बेटे हजरत इसमाइल को अल्लाह को खुश करने के लिए दी गई कुर्बानी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। बताया जाता है कि हजारों साल पहले रसूल अल्लाह की ओर से हजरत इब्राहिम को अपनी सबसे अधिक प्रिय वस्तु को खुदा के नाम पर कुर्बान करने का फरमान आया और उस समय हजरत इब्राहिम की उम्र 90 वर्ष की थी और उनकी सर्वाधिक प्रिय वस्तु उनका इकलौता पुत्र इसमाइल था। खुदा के फरमान का अनुसरण करते हुए उन्होंने काबा से करीब दस किलोमीटर दूर मीना में जाकर अपने पुत्र की कुर्बानी दी, लेकिन यह केवल उनकी परीक्षा थी। उनके पुत्र के स्थान पर जमीन पर बिना सींग वाली भेड़ का सिर हलाल हुआ पड़ा था। बकरीद के दिन हर वर्ष मुस्लिम समुदाय के लोग बकरों, भेड़ों आदि की कुर्बानी देते हैं, जो कि तीन दिनों तक चलती है। इसका गोश्त मुस्लिम समुदाय के लोग एक दूसरे को बांटते हैं । ईद की खुशी को दोगुना करते हैं। मान्यता है कि अल्लाह को भेंट स्वरूप दिए बकरे का एक भाग बहनों को दिया जाता है, जबकि अन्य हिस्से को प्रसाद स्वरूप गरीबों व अन्य रिश्तेदारों में बांटा जाता है। ईद के अवसर पर देश के अमन चैन, शांति की दुआ नमाज में मांगी जाती है।