पाक के राजनीतिक क्रिकेट में गुगली

By: Aug 1st, 2018 12:10 am

डा. वरिंदर भाटिया

लेखक पूर्व कालेज  प्रिंसीपल हैं

सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा और आईएसआई चीफ नवीद मुख्तार ही कहीं न कहीं सुरक्षा, रक्षा और विदेश के मुद्दे खासकर भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंधों को प्रभावित करेंगे। इसलिए इमरान खान के लिए जरूरी है कि वह विकास से जुड़े बाकी मुद्दों को देखें। पाकिस्तान के ऊपर इस वक्त काफी विदेशी ऋण है। पाकिस्तान ऊर्जा और पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। गरीबी, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है। इन मुद्दों से निपटने के लिए इमरान खान को काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी…

पाकिस्तानी राजनीति में क्रिकेट के कप्तान पाक राजनीति के सुल्तान बनकर उभरे। इमरान खान 11 अगस्त को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने वाले हैं। 22 साल पहले इमरान खान ने 1996 में लाहौर के जमान पार्क में जिस तहरीक-ए-इनसाफ की नींव रखी थी, 25 जुलाई को हुए आम चुनाव में वही तहरीक-ए-इनसाफ चुनाव में जबरदस्त सफलता से देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। चुनाव खत्म होने के 24 घंटे बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी पाकिस्तान तहरीक-ए-इनसाफ पार्टी यानी पीटीआई के मुखिया इमरान खान ने पाक की जनता को संबोधित किया और कहा कि वह पाकिस्तान में ऐसा गवर्नेंस लेकर आएंगे, जैसा पहले कोई भी लेकर नहीं आया। उन्होंने वादा किया कि वह लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करेंगे, गरीबी दूर करेंगे और पाकिस्तान को इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली बनाएंगे। यह सब कुछ आसान नहीं लग रहा है। विदेश नीति के मुद्दे पर इमरान ने कहा था कि वह चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने के, अपने बीच के मुद्दों को कूटनीतिक तौर पर हल करें। पाकिस्तानी मीडिया ने भी इमरान खान की काफी तारीफ की और इसे ‘नए पाकिस्तान’ की शुरुआत बताया। यह इमरान और पाक मीडिया की अपरिपक्व भावनात्मक अभिव्यक्ति है। पिछले आम चुनावों में इमरान खान की पार्टी तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी थी। हालांकि इस बार राजनीतिक पंडितों का कहना था कि पीटीआई सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी और नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन बहुत ही कम अंतर से दूसरे स्थान पर रहेगी, लेकिन जैसे-जैसे नतीजे आने लगे वैसे-वैसे दोनों पार्टियों के बीच का अंतर बढ़ता गया।

1996 में पार्टी की स्थापना के बाद से 26 साल हो चुके हैं और तब से अब जाकर पीटीआई इस स्थिति में पहुंची है कि सत्ता पर काबिज हो सके। इमरान खान ने 25 जुलाई को अपने 22 वर्षीय राजनीतिक जीवन में तीन तरह से इतिहास रचा है, जो कि इस प्रकार हैः इमरान खान ने पांच हलकों से निर्वाचित होकर जुल्फिकार अली भुट्टो का रिकॉर्ड तोड़ा, जो तीन क्षेत्रों से निर्वाचित हुए थे। पीटीआई पहली ऐसी पार्टी बन गई, जिसने दूसरी बार खैबर पख्तूनख्वा में सफलता प्राप्त की और पार्टी की पोजीशन अधिक मजबूत हो गई। पीटीआई सरकार बनाने वाली पहली पार्टी बन गई, जो कराची को मुख्यधारा की राजनीति में लाई। इससे पहले केंद्र में सरकार बनाने वाली किसी भी पार्टी को कराची में बहुमत नहीं मिला। पीटीआई ने पहली बार 2002 में चुनाव लड़ा था। उस समय पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था, लेकिन पिछली बार 2013 में पीटीआई को नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन के बाद सबसे ज्यादा वोट मिले थे। 2013 में इमरान खान ने गरीबी, भ्रष्टाचार और पाकिस्तान में परिवाद की राजनीति को खत्म करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। 2013 में चुनाव के एक साल बाद इमरान खान की पार्टी ने चुनाव में बेईमानी होने का आरोप लगाया। इसके बाद इस्लामाबाद में रैलियां निकाली गईं और चार महीने तक धरना दिया गया।

हालांकि अंतरराष्ट्रीय आब्जर्वर का कहना था कि पिछले चुनावों की तुलना में यह चुनाव ज्यादा ईमानदारी से हुआ था, लेकिन सिर्फ पांच ही सालों में समय ने ऐसी करवट ली कि आज वही पार्टी जो कल तक सत्ता में थी, वह पीटीआई पर चुनाव में गड़बड़ी करने का आरोप लगा रही है। हालांकि इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि चुनाव के पहले कुछ महीनों में देश की और विदेशी मीडिया को भी दबाने की कोशिश की गई। कई पत्रकारों और मीडिया हाउस पर दबाव डाला गया कि वह नवाज को समर्थन देने वाली अपनी मुहिम को बंद कर दें। इमरान खान पर पहला आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने अपने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को धीमा कर दिया। पीटीआई ने पीएमएलएन और पीपीपी से दल-बदल करने वाले नेताओं को लगातार अपनी पार्टी में शामिल किया। शायद उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन्हें यह समझ आ गया था कि वह नेता अपनी सीट पर जीतेंगे। इस तरह उन्होंने कहीं न कहीं अपने सिद्धांतों से समझौता किया। दूसरा आरोप उन पर लगाया जाता है कि जब खैबर पख्तूनख्वा में उनकी सरकार थी, तो उन्होंने जनता के पैसे को एक मदरसे के लिए दे दिया था। गौरतलब है कि इस मदरसे को जो व्यक्ति चलाता है उसे ‘फादर ऑफ तालिबान’ कहा जाता है, क्योंकि उसने कई आतंकवादी नेताओं को ट्रेनिंग दी है, लेकिन इमरान खान ने इसका यह कहकर बचाव किया कि वह चाहते हैं कि यह मदरसा पाकिस्तानी शिक्षा की मुख्यधारा में आ जाए। अब जैसे ही इमरान खान प्रधानमंत्री बनेंगे, उनके सामने सबसे पहली चुनौती चुनावों में बेईमानी के आरोपों से निपटने की होगी। हालांकि यह हो सकता है कि चुनाव आयोग के स्तर पर कुछ लापरवाही हुई हो, लेकिन कहीं न कहीं इससे यह भी साबित होता है कि पाकिस्तान में चुनावी हार को बर्दाश्त कर पाने की ताकत नहीं है। हालांकि इमरान खान के लिए अपने सारे वादे पूरे कर पाना आसान नहीं होगा। सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा और आईएसआई चीफ नवीद मुख्तार ही कहीं न कहीं सुरक्षा, रक्षा और विदेश के मुद्दे खासकर भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंधों को प्रभावित करेंगे।

इसलिए इमरान खान के लिए जरूरी है कि वह विकास से जुड़े बाकी मुद्दों को देखें। पाकिस्तान के ऊपर इस वक्त काफी विदेशी ऋण है। पाकिस्तान ऊर्जा की समस्या से जूझ रहा है। पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। गरीबी, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हैं। इन मुद्दों से निपटने के लिए इमरान खान को काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी। मान लें कि इमरान खान एक ऐसे नेता हैं, जो लोगों में जोश भर देते हैं, लेकिन वह एक ऐसे संक्रामक सिस्टम का भी संभावित शिकार हैं, जो उन्हें चुनता तो है, पर उनके प्रभाव को कम कर देता है। जैसे ही उनको इस बात का एहसास होगा कि नवाज शरीफ भी कभी सेना के काफी करीबी हुआ करते थे, वैसे ही उनको ये भी पता चल जाएगा कि सेना से कितनी नजदीकी रखनी है और कितना दूर रहना है। इमरान खान को भले ही लोगों का वोट मिला हो, लेकिन सभी को पता है कि असलियत में पाक के राजनीतिक क्रिकेट में गुगली गेंद रूपी आउट करने वाली शक्ति पाक सेना के पास है।


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