सतलुज में 22 हजार पीपीएम पहुंची गाद

पहाडि़यां खिसकने से बढ़ रही मात्रा, रॉयल्टी की बिजली में करोड़ों का नुकसान

शिमला— प्रदेश की सबसे बड़ी नदी सतलुज में गाद की समस्या साल दर साल बढ़ रही है। हैरानी इस बात की है कि इसमें सिल्ट जिन कारणों से बढ़ रही है, उसका कोई समाधान सरकार नहीं कर पा रही। किन्नौर जिला में लगातार भू-स्खलन बढ़ रहा है और यहां भू-स्खलन को रोकने के लिए सरकार की तरफ से कदम नहीं उठाए जा रहे। जानकारी के मुताबिक सतलुज नदी में सिल्ट की मात्रा वर्तमान में 22 हजार पीपीएम तक पहुंच गई है, जो कि पिछले साल 15 से 16 हजार पीपीएम तक थी। इसमें लगभग 6 हजार पीपीएम की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रोड साइड रिवर होने के चलते यहां भू-स्खलन के बाद पूरा मलबा सीधे नदी में पहुंचता है। यही नहीं, मलबा गिरने के बाद सरकारी मशीनरी उसे नदी के किनारे फेंकती है, जिससे गाद सतलुज में बहते हुए आगे निकलती है। इस कारण से इसपर स्थापित बिजली परियोजनाओं को हर साल नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह नुकसान केवल पावर प्रोजेक्टों को ही नहीं, बल्कि सरकार को भी हो रहा है, क्योंकि रॉयल्टी की बिजली जो सरकार को मिलनी है, वह नहीं मिलती। नाथपा झाखड़ी व रामपुर के साथ कड़छम वांगतू से भी सरकार को 12 फीसदी से अधिक की रॉयल्टी मिलती है। बताया जाता है कि इस नुकसान का आंकलन करने के लिए ऊर्जा निदेशालय को कहा गया है जो अपनी रिपोर्ट सरकार को देगा। जिस तरह से यहां पर सिल्ट की मात्रा बढ़ी है उसके कारणों को जांचकर समाधान करने की जरूरत है। सूत्रों के अनुसार किन्नौर जिला के भूस्खलन को लेकर लोक निर्माण विभाग को भी कदम उठाने के लिए कहा गया है, क्योंकि गिरने वाले मलबे से यदि गाद बढ़ रही है तो करोड़ों के इस नुकसान को रोकने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं। शनिवार को नाथपा झाखड़ी व रामपुर प्रोजेक्ट की एक-एक टरबाइन को चलाया गया, लेकिन वह भी कुछ देर ही चलीं, क्योंकि सिल्ट की मात्रा काफी ज्यादा है।

उत्तर भारत में संकट

सतलुज की परियोजनाओं के बंद होने से पूरे उत्तर भारत में बिजली का संकट पैदा हो चुका है। हिमाचल प्रदेश करीब 900 मेगावाट बिजली का प्रबंध दूसरे राज्यों से करना पड़ रहा है। ग्रिड के माध्यम से प्रदेश ये बिजली खरीद रहा है।