तुलसी के नीति वचन

By: Aug 11th, 2018 12:07 am

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर।

अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है। इसलिए मानव को कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करना चाहिए।

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है।

मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूं एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।

अर्थ : मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है।

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। जो सिमरत भयो भांग ते तुलसी तुलसीदास।

अर्थ : राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास है जिसको स्मरण करने से भांग सा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया।

सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि।

अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि होती है।

बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।

अर्थ : तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्त्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूता है। तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।

अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती हैं-ज्ञान, विनम्रतापूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम।

सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।

अर्थ : शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, कहकर अपने को नहीं जनाते. शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं।

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं। सुंदर मोर को ही देख लो, उसका वचन तो अमृत के समान है, लेकिन आहार सांप का है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App