नीली छतरी मंदिर

By: Aug 4th, 2018 12:07 am

नीली छतरी मंदिर की स्थापना पांडवों के ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर ने की थी, ऐसा माना जाता है कि युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ इस मंदिर में आयोजित किया था…

भगवान शिव के अनेक मंदिर व शिवालय हर जगह मौजूद हैं। श्रावण केमहीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भोलेनाथ अपने भक्तों को मनचाहा फल देते हैं। ऐसा ही एक प्राचीन नीली छतरी मंदिर है, जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर नई दिल्ली में स्थित है। नीली छतरी मंदिर की स्थापना पांडवों के ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर ने की थी, ऐसा माना जाता है कि युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ इस मंदिर में आयोजित किया था। इस मंदिर के इतिहास के बारे में कोई विशेष उल्लेख नहीं है फिर भी इस मंदिर को पांडव कालीन मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और श्रावण में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। शिव भक्त यहां माथा टेकने आते हैं और लड्डू का चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।

लड्डू का लगता है भोग- नीली छतरी की विशेषता इस मंदिर को और भी बढ़ा देती है। नीली छतरी एक गुंबद है, जो कि नीले रंग के पत्थर से बना हुआ है। लोगों के अनुसार किसी समय में यह नीलम पत्थर से बना  मंदिर था। रात के समय में चंद्रमा की रोशनी जब नीले पत्थर पर पड़ती थी, तब इसके प्रकाश से आसपास का माहौल नीला हो जाता था। इसी कारण इस मंदिर का नाम नीली छतरी पड़ गया। इस मंदिर में गंुबद के नीचे भगवान शिव की पूजा की जाती है और मंदिर के ऊपर अलग देवता की पूजा की जाती है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि व्यक्ति की मनोकामना पूर्ति के लिए उसे शिवजी को यहां पांच लड्डू का प्रसाद चढ़ाना होता है। भोलेनाथ को यह प्रसाद चढ़ाने से उस व्यक्ति की सारी इच्छाएं व मुरादे पूरी हो जाती हैं।

श्रावण में रहता है विशेष महत्त्व- मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय श्रावण व शिवरात्रि का होता है। श्रावण के पावन महीने में मंदिर बहुत ही अच्छे से सजाया जाता है व यहां भक्तों की भीड़ से मंदिर का माहौल शिवमय हो जाता है। वहीं भक्तों द्वारा भोले के ज्यकारे मन को प्रसन्न कर देते हैं। सोमवार के दिन भक्त विशेष रूप से यहां दर्शनों के लिए आते हैं, क्योंकि सोमवार का दिन भगवान का खास दिन होता है। मंदिर पूरे वर्ष खुला रहता है और सभी जातियों और पंथ के आगंतुकों का स्वागत करता है। यह मंदिर यमुना नदी के किनारे स्थित है। मंदिर के दोनों तरफ सड़क है। एक तरफ  महात्मा गांधी रोड है जहां से मंदिर के ऊपर बने गुंबद में जाया जा सकता है, तथा दूसरी सड़क है जिसको लोहे वाले पुल की सड़क के नाम से जाना जाता है, जो पुरानी दिल्ली से गांधी नगर जाती है। इस सड़क पर मंदिर का मुख्य द्वार है।


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