पारंपरिक अंदाज में मनाया गुगावल पर्व

संगड़ाह— सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कई मुख्य त्योहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर क्षेत्र में मनाई जाने वाली गुगावल पर भक्तों द्वारा खुद को लोहे की जंजीरों से पीटे जाने की धार्मिक परंपरा काफी खतरनाक व रोमांचक समझी जाती है। गुग्गा नवमीं की पूर्व संध्या अथवा श्री कृष्ण जन्माष्टमी की रात माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गुग्गा मंदिरों में भक्ति गीतों के साथ शुरू हुआ उक्त पर्व मंगलवार सायं सूरज ढलने के साथ परंपरा के अनुसार संपन्न हो गया। करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में मंगलवार प्रातः करीब 11 बजे से शाम सूरज ढलने तक गुगावल अथवा गुग्गा नवमी धार्मिक उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गुग्गा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। लोहे की जंजीरों से बने गुग्गा पीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौरड़े का वजन आमतौर पर दो किलो से 10 किलोग्राम तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं। गुगावल शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छडि़यों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुग्गा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुग्गा पीर स्तूति अथवा शौर्य गान शुरू होते ही भक्त खुद को जंजीरों से पीटना शुरू कर देते हैं तथा इस दौरान कई भक्त लहूलूहान होते भी देखे जाते हैं।