समुद्र मंथन से निकली माता पद्मा

By: Sep 15th, 2018 12:02 am

-गतांक से आगे…

माता गौरी की मूर्ति कान्य कुब्ज के सिद्ध पीठ पर विराजमान है। देवी के 108 पीठों में यह अन्यतम पीठ है। (देवी भा. 7-30-58) विश्व पर जब-जब संकट आया है, तब-तब पराम्बा ने उसे दूर कर विश्व को बचाया है। (मार्क. 68.71)। माता गौरी ने विश्व को यह वरदान दे रखा है कि जब-जब दानवों से बाधा उपस्थित होगी, तब मैं प्रकट होकर उसका विनाश कर दिया करूंगी। (मार्क 88-51)। गौरी गणेश की पूजा के बिना कोई कार्य सफल नहीं हो पाता। स्त्रियों के लिए प्रतिदिन पूजा करने का विधान है। आवाहन के मंत्र में माता गौरी का इस तरह परिचय दिया गया है ः ये हिमालय पुत्री, शंकर की प्रिया और गणेश की जननी हैं ः

हमाद्रिनयां देवी वरदां शंकरप्रियाम।

लंबोदरस्य जननींगौरीमावाहयाम्यहम्।।

2.माता पद्मा

लक्ष्मी का एक नाम पद्मा भी है। ( खचृक परि. श्री सूक्त श्रीमदभा. 10-46-13)। श्री सूक्त में माता लक्ष्मी के लिए पद्मस्थिता, पद्मवर्णा पद्मिनी, पद्ममालिनी, पुष्करीणी पद्मानना, मद्मोरू, पद्माक्षि, पद्मसंभवा, सरसिजनिलया, सरोजहस्ता, पद्मविपद्मपत्रा, पद्मप्रिया, पद्मवलायतीक्ष्थाज्ञी आदि पदों का प्रयोग हुआ है।

(त्रचृक परि. श्री सूक्त 4-26। इससे पता चलता है कि लक्ष्मी देवी का कमल से बहुत घनिष्ठ संबंध है। ये सुगंधित कमल की माला पहनती हैं। इसी को हाथ में रखती और इसी पर निवास करना भी पसंद करती हैं। इनका वर्ण भी पद्मकासा है क्योंकि ये स्वयं पद्म से उत्पन्न हुई हैं। पद्म की भांति इनकी आंखें बड़ी-बड़ी लुभावनी हैं। हाथ चरण अरु आदि सब अवयव पद्म की भांति हैं। अतः इनका पद्मा नाम अन्वर्थक है। इनका प्राकट्य समुद्र मंथन के समय हुआ था। (महा. आदि 18-35)।

विष्णु भगवान में इनकी पूरी अनुरक्ति थी। अतः इन्होंने पति के रूप में उन्हें ही वरण किया। वरण के अवसर पर इन्होंने जो माला उन्हें पहनाई थी, वह पद्मों की ही थी। (भा. 8-8-24)। लक्ष्मी के अनेक रूप हैं, उनमें पद्मा विष्णु की अनुरागीणीरूपा है। गोपियों ने विष्णु के प्रति पद्मा के प्रेम की इस एकतानता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। (भाग 10-47-13)। पद्मा के अलावा अन्य रूपों में ये ऐश्वर्य प्रदान करती है, संपत्ति के अंबार लगा देती है, सर्वत्र शोभा का आधान करती है। माता लक्ष्मी ने बहुत से अवतारों में अपना नाम पद्मा या एकदर्थक शब्द ही रखा है। आकाशराज की अयोनिजा कन्या के रूप में जब ये अवतीर्ण हुई, तब इनका पद्मावती पद्मिनी और पद्मालया रखा गया (स्कंद पु. वै. स्व. भूमिवाराह-खंड) भगवान जब कल्लिका अवतार ग्रहण करते हैं, तब लक्ष्मी का नाम पद्मा ही होता है। कल्कि पुराण में भी इनकी पद्मप्रियता को द्योतिक करने के लिए पद्मघटित बहुत से पद दिए गए हैं। माता पद्मा के कृपा कटाक्ष-पातमात्र से समस्त अनर्थों की निवृत्ति होकर सब सुख संपत्ति प्राप्त हो जाती है। पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार दुर्वासा के शाप से देवता श्रीहीन हो गए। वे व्याकुल होकर इधर-उधर भागने लगे। अमरावती पर दैत्यों का अधिकार हो गया। घबराकर ब्रह्मा आदि देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु की सन्मति से समुद्र का मंथन हुआ जिससे माता पद्मा का आविर्भाव हुआ।

-क्रमशः

 


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