हिमाचल की गोल्डन बेटियां

By: Sep 10th, 2018 12:05 am

एशियाई गेम्स में छोटे से पहाड़ी प्रदेश का प्रदर्शन इस बार भी उम्दा रहा । इस बार पहाड़ की बेटियां बेशक गोल्ड से चूक गईं, पर रजत पदक लेकर प्रदेश का नाम रोशन किया है। हिमाचल में किस तरह ट्रेंड हो रहे हैं खिलाड़ी… इसी की तफतीश करता इस बार का दखल…

जकार्ता में चल रही एशियाई खेलों में भले ही हिमाचल की झोली में नाममात्र पदक आए हों, मगर हिमाचल के खिलाडि़यों ने पिछले चार वर्षों के पदकों का ग्राफ गिरने नहीं दिया है। इससे पहले भी वर्ष 2014 में प्रदेश की महिला कबड्डी खिलाडि़यों ने भी प्रदेश को पदक दिलाए थे। हालांकि वर्ष 2014 में महिला कबड्डी खिलाडि़यों ने प्रदेश की झोली में स्वर्ण पदक डाले थे। मगर इस मर्तबा प्रदेश की बालाएं स्वर्ण पदक की दौड़ में पिछड़ गई और उन्हें रजत (सिल्वर) पदक से ही संतोष करना पड़ा। कुल मिलाकर इस एशियाई गेम्स में छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल का प्रदर्शन उम्दा रहा है। खेल संबंधित आधारभूत ढांचा के अभाव के चलते भी प्रदेश की बालाओं ने एशियाई गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर प्रदेश को गौरवान्वित किया है।  प्रदेश में एशियाई गेम्स में विभिन्न खिलाडि़यों ने भाग लिया था। केवल मात्र प्रदेश की महिला कबड्डी खिलाड़ी ही ऐसी रही, जिन्होंने पदक दौड़ में फाइनल तक पहुंच कर प्रदेश के लिए सिल्वर मेडल जीता। कबड्डी के फाइनल मुकाबले में प्रदेश की बहादुर बेटियां बड़े कम मार्जिन से पराजित हुई हैं। मगर रजत पदक जीतकर प्रदेश की बेटियों ने प्रदेश का गौरव बढ़ाया है। कबड्डी को छोड़कर हैंडबाल, वेट लिफ्टिंग, तलवारबाजी और वालीबाल वर्ग में हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। खेल विशेषज्ञों की माने तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली खिलाडि़यों के पिछड़ने के पीछे सुविधाओं का अभाव सबसे बड़ा कारण है। पहाड़ी प्रदेश में खिलाडि़यों को उस स्तर की खेल संबंधित सुविधाएं नहीं मिल पा रही है जो अन्य राज्यों व देशों में मिल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य सरकारों द्वारा लंबे समय से प्रयास चल रहे हैं, मगर जमीनी स्तर पर अभी तक सकारात्मक परिणाम नहीं दिख पाए हैं। यही कारण है कि आज हिमाचल पदक की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है।

साई के खेल चुके हैं नेशनल-इंटरनेशनल

नाम                    खेल                 

अजय ठाकुर          कबड्डी

रवि शर्मा  कबड्डी

राकेश चंदेल          कबड्डी

विशाल भारद्वाज     कबड्डी

रोहित राणा            कबड्डी

शिवांम               कबड्डी

हेमंत                  कबड्डी

हिमंत ठाकुर           कबड्डी

अजय पटियाल       वालीबाल

दलीप                    वालीबाल

मनोज कुमार          वालीबाल

सुरजीत सिंह          वालीबाल

शिव चौधरी           बॉक्सिंग

अनुराग शर्मा          बॉक्सिंग

गीता नंद            बॉक्सिंग

मनीष चौधरी          बॉक्सिंग

कमलेश कुमारी       एथलेटिक्स

राकेश कुमार          एथलेटिक्स

बनीता ठाकुर          एथलेटिक्स

अमन सैनी            एथलेटिक्स

राजेश भंडारी, एसके शांडिल चुने गए ऑब्जर्वर

हिमाचल प्रदेश बॉक्सिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश भंडारी और सचिव एस के शांडिल को बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने एशियन गेम्स के लिए ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। राजेश भंडारी और एसके शांडिल 25 अगस्त से दो सितंबर तक बॉक्सिंग खेल में ऑब्जर्वर (पर्यवेक्षक) की भूमिक निभाएंगे। यह पहला अवसर है जब प्रदेश के किसी प्रतिनिधि को एशियन गेम्स के लिए ऑब्जर्वर (पर्यवेक्षक) चुना गया है।

एशियाई गेम्स में पदक विजेता 

नाम                       खेल       पदक     वर्ष

सुमन रावत मेहता एथलेटिक्स   कांस्य     1986

अजय ठाकुर          कबड्डी   गोल्ड      2014

पूजा ठाकुर            कबड्डी   गोल्ड      2014

कविता ठाकुर         कबड्डी   गोल्ड      2014

देशराज शर्मा          वालीबॉल सिल्वर    1962

एशियाई गेम्स में इन्होंने लिया भाग

ज्योतिका दत्ता        तलवारबाजी

अजय ठाकुर          कबड्डी

पंकज                   वालीबॉल

विकास ठाकुर         वेट लिफ्टिंग

रामेश्वरी शर्मा         रैफरी (शिमला)

निधि शर्मा सोलन    (हैंडबाल)

दीक्षा ठाकुर           बिलासपुर (हैंडबाल)

प्रियंका ठाकुर         बिलासपुर (हैंडबाल)

कबड्डी महिला :    सिल्वर मेडल

कविता                कुल्लू

प्रियंका                सिरमौर

रितु नेगी               सिरमौर

खिलाडि़यों के उत्थान को सरकार गंभीर

हिमाचल प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार आधारभूत ढांचा विकसित कर रही है। राज्य के कई जिलों में सिंथेटिक ट्रैक्स का निर्माण हो चुका है, जबकि कई जिलों में इस तरह का निर्माण प्रस्तावित है। इसके अलावा प्रदेश में सरकार द्वारा हर खेल के लिए विशेषज्ञ प्रशिक्षक तैनात किए गए हैं। अब केवल मात्र कुछेक खेल ही ऐसे हैं, जिसके प्रशिक्षक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त खिलाडि़यों को अभ्यास के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। खेल मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर का कहना है कि खेलों का स्तर बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा वर्तमान समय में कई योजनाएं चलाई जा रही   राज्य में खेलों के उत्थान के लिए हर जिला स्तर पर बड़े खेल मैदानों का निर्माण कार्य प्रस्तावित है। यही नहीं खंड स्तर पर भी खेल मैदान निर्मित किए जा रहे हैं। ग्रामीण प्रतिभा को आगे लाने के लिए जिम्नेजियम स्थापित किए जा रहे हैं। खिलाडि़यों के चयन के लिए ग्रामीण स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक ट्रायल आयोजित किए जाते हैं। इसके बाद उत्कृष्ट खिलाडि़यों का चयन किया जाता है।

प्रतिभा की कमी नहीं, सुविधाएं कम

हिमाचल प्रदेश में प्रतिभा की कमी नहीं है। मगर खेलों के मुताबिक राज्य में आधारभूत ढांचा विकसित नहीं हो पाया है। हिमाचल के खिलाडि़यों में इतनी प्रतिभा है। अगर उन्हें सही मार्ग दर्शन मिले तो वह खेलों में हरियाणा से भी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।   हिमाचल में इंडोर गेम्स को विकसित करने की आवश्यकता है।   प्रदेश में टेबल टेनिस, बैडमिंटन, रेस्लिंग, जिम्नास्टिक, कबड्डी, वालीबाल को तवज्जो देकर इससे अच्छे परिणाम निकाले जा सकते हैं। फुटबाल, क्रिकेट सहित अन्य आउट डोर गेम्स के लिए भी अपार संभावनाएं हैं। मगर इसके लिए जरूरत है तो खेल मैदान की। राज्य में खेल मैदान की कमी है।  सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए और खेलों को विकसित करने के लिए बजट का प्रावधान होना चाहिए और खिलाडि़यों को बेहतर डाइट मिलनी चाहिए। खेलों के लिए राज्य के खेल मैदानों की कमी है। इसके अलावा आधुनिक उपकरण भी नहीं है जिससे वह बड़े स्तर के मुकाबले की तैयारी कर सके।

— चमन चौहान : पूर्व स्पार्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, बालीबाल

खेल अधोसंरचना विकसित करना जरूरी

बदलते दौर के साथ एकल खेलों के प्रति रुझान अधिक बढ़ गया है। ऐसे में एकल खेलों को बढ़ावा देने के लिए एकल खेलों की अधोसंरचना विकसित होनी चाहिए। इसमें कबड्डी वालीबाल, रेसलिंग, जूडो बाक्सिंग मुख्यतः है। खेलों को बढ़ावा तभी मिल सकता है जब खेल संबंधित आधारभूत ढांचा विकसित हो और खिलाडि़यों को आधुनिक ट्रेनिंग के साथ-साथ प्राप्त डाइट भी मिले।   उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में आज भी खिलाडि़यों को चयन ट्रायल बेस पर किया जाता है।  मगर विदेशों में (फोरन पॉलिसी) के तहत खिलाडि़यों को खोजकर लाया जाता है। जगह-जगह से ऐसी नर्सरी तैयार की जाती है जो अपने देश का नाम बढ़ाते हैं।  खेलों के प्रति सरकार की नजरअंदाजी हर खेल के लिए आधारभूत ढांचे का विकसित न होना और खिलाडि़यों को पर्याप्त डाइट न मिलना वहीं उत्कृष्ट खिलाडि़यों को पदक जीतने पर तीन फीसदी कोटे के तहत रोजगार मिलना चाहिए।

— संजीव ठाकुर : कबड्डी कोच

हिमाचल का दमदार प्रदर्शन

हिमाचली गबरू पंकज शर्मा के दमदार प्रदर्शन से भारतीय पुरुष बालीबाल टीम ने पहला सेट 18 मिनट में 25-12 से जीता। वहीं दूसरा सेट 25-21 से जीतने में 3 से 23 मिनट का समय लगाया और तीसरे सेट में भारतीय टीम ने 25-12 से जीत दर्ज की। हिमाचली वालीबाल खिलाड़ी एशियाई गेम्स में उम्दा प्रदर्शन कर रहा है।

भंडारी ने चुने मुक्केबाज

एशियन गेम्स के लिए बतौर ऑब्जर्वर (पर्यवेक्षक) नियुक्त होने वाले राजेश भंडारी इससे पहले एशियन गेम्स 2018 के लिए मुक्केबाजों का चयन भी कर चुके हैं। बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उन्हें एशियन गेम्स 2018 के लिए टीम के चयन को सिलेक्शन कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया था।

कविता ठाकुर पर हमें नाज

हंसती-खेलती कविता कब बड़ी हो गई पता ही नहीं चला और आज उसके नाम से हमारी पहचान बनी है। कभी घर व ढाबा में हाथ बटाने वाली कविता आज आर्थिक तौर पर भी हमारी मदद कर रही है और जगतसुख के  समीप ही घर के सपने को भी साकार कर रही है। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी कविता ठाकुर के पिता पृथ्वी सिंह का। उन्होंने बताया कि बचपन से ही कविता कुछ नटखट व खेलकूद में ज्यादा दिलचस्पी लेती थी, लेकिन आर्थिक हालात ठीक न हो पाने के कारण खेल के क्षेत्र में हर व चीज उपलब्ध नहीं करवा पाए, जो समय की जरूरत थी, लेकिन कविता ने फिर भी अपने आप को साबित किया । पृथ्वी सिंह का कहना है कि उन्हें इस बात की खुशी है कि आज उनकी बेटी को दुनिया जानती है और खेल जगत में उसका अच्छा नाम है। कविता की माता कृष्णा देवी का कहना है कि उनकी बेटी का एक ही सपना था कि वह देश के लिए कबड्डी खेले, जिसके लिए उन्होंने अपने स्तर पर हर वह प्रयास किए, जो उनसे संभव थे। उन्होंने कहा कि कविता को कभी भी उन्होंने घर व ढाबे से संबंधित दिक्कतों के बारे में नहीं बताया। जब तक कविता सफल नहीं हुई उन्होंने नए कपड़े तक नहीं लिए।  खुद कविता का भी कहना है कि उसके माता-पिता खुद आर्थिक तंगी में रहे और खेल के लिए जिन चीजों की उसे आवश्यकता होती थी,वे उपलब्ध करवाते रहे। खासकर वह अपनी मां का धन्यवाद करती हैं। आज जो भी वह है उसका श्रेय वह अपने माता-पिता व मामा टशी को देती हैं। पिता पृथ्वी सिंह उन्हें बेटे से कम नहीं मानते हैं। कविता का परिवार आज भी किराए के मकान पर रहता है। उनके पास आज भी अपना मकान नहीं है।

धर्मशाला साई होस्टल तराश रहा हीरे

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाओं को भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र धर्मशाला निखार कर हीरा बना रहा है। स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया (साई) का ट्रेनिंग सेंटर जिला कांगड़ा के जिला मुख्यालय धर्मशाला में चलाया जा रहा है। इसकी शुरुआत 1998 में की गई थी। साई होस्टल धर्मशाला में पांच खेलों का प्रशिक्षण विशेष रूप से प्रदान किया गया। इसमें कबड्डी, वालीबाल, बास्केटबाल, एथलेटिक्स और हॉकी शामिल हैं। अब होस्टल में बास्केटबाल और हॉकी को बंद कर दिया गया है।  अरुणा तोमर, रंजीता, इंदुबाला, बलविंद्र कौर, पूजा ठाकुर, चंपा, आशु शिल्पा, कविता ठाकुर, हरमिलन कौर सरीखी कई स्टार खिलाड़ी हैं, जो धर्मशाला की ही पौध हैं।  अब तक  धर्मशाला की खिलाडि़यों ने दो सौ से ज्यादा मेडल हासिल किए हैं।

सीमा धर्मशाला की उड़नपरी 

प्रदेश के चंबा के अति दुर्गम क्षेत्र रेटा की 17 वर्षीय एथलीट सीमा साई सहित राज्य व देश की स्टार बन गई है। सीमा ने दो इंटरनेशनल सिल्वर-कांस्य के साथ ही तीन राष्ट्रीय रिकार्ड भी अपने नाम किए हैं।  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीमा ने बैंकाक-2017 कांस्य मेडल, बैंकाक में आयोजित एशियन यूथ ओलंपिक बेनिस क्वालिफाई प्रतियोगिता में तीन हजार मीटर दौड़ में 9.55 में सिल्वर मेडल जीतकर ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया।

सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बने धर्मशाला

साई होस्टल के प्रभारी एवं एथलेटिक्स कोच केएस पटियाल का कहना है कि धर्मशाला में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाए जाने की अपार संभावनाए हैं। ऐसे में धर्मशाला में सेंटर ऑफ एक्सीलेस को ज़मीन उपलब्ध करवाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर का इंफास्ट्रक्चर विकसित करना चाहिए।

खिलाडि़यों को मिले बेहतर सुविधा

कबड्डी के कोच मेहर सिंह वर्मा का कहना है कि खेलों के विकास के लिए इंफास्ट्रक्चर के साथ-साथ व्यवस्थाओं को भी सुधारने की आवश्यकता है,जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन भी कर सकें। धर्मशाला में ही आउटडोर कबड्डी कोर्ट में छत डालने का भी प्रोपोजल है, जिसे पूरा करने से अधिक लाभ मिल सकता है।

ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशने की जरूरत

वालीबाल कोच प्रीतम चौहान का कहना है कि ग्रामीण स्तर से प्रतिभाओं की तलाश करने की जरूरत है। इसके लिए खेल संघों को भी जमीनी स्तर पर प्रयास करने चाहिए।

रितु ने रोशन किया प्रदेश का नाम

स्टार कबड्डी खिलाड़ी रितु नेगी के पिता भवान सिंह नेगी ने बताया कि वह स्वयं कबड्डी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुके हैं। वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी भी कबड्डी जैसे खेल में आगे बढ़े लेकिन आज रितु ने प्रदेश ही नहीं देश का भी नाम रोशन किया है। उन्होंने बताया कि आरंभ में वह शिलाई के शरोग  में ही रहते थे तथा प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई शरोग में ही पूरी करने के उपरांत वह बच्चों की पढ़ाई के लिए शिलाई शिफ्ट हुए।  जब रितु शिलाई स्कूल में पढ़ती थी तो इस दौरान शारीरिक शिक्षक व कबड्डी के जाने माने खिलाड़ी रह चुके स्व. हीरा सिंह की नजर रितु की गतिविधियों पर पड़ी। सातवीं कक्षा में रितु ने कबड्डी में रुचि दिखानी शुरू की तथा आठवीं कक्षा में रितु नेगी का चयन पहली बार झारखंड में वर्ष 2004-05 में राष्ट्रीय स्कूली प्रतियोगिता के लिए हुआ। रितू नेगी को कबड्डी का खिलाड़ी बनाने के पीछे सर्वाधिक योगदान यदि किसी व्यक्ति का है तो वह स्व. हीरा सिंह पीटीआई थे। जब रितु नौवीं में थी तो उसका ट्रायल बिलासपुर में कबड्डी छात्रावास के लिए हुआ तथा वह छात्रावास के लिए चयनित हो गई।  माता पूर्णिमा नेगी व पिता भवान सिंह नेगी ने बताया कि बच्ची की अपनी मेहनत के साथ-साथ माता-पिता व बड़ों का आशीर्वाद भी मंजिल को आसान बनाता है।

स्कूली खेलों में ही प्रियंका ने दिखा दी थी प्रतिभा

भारत के लिए महिला कबड्डी में सिल्वर मेडल जीतने वाली शिलाई की बेटी प्रियंका नेगी की उपलब्धि से न केवल परिवार बल्कि पूरा  प्रदेश गदगद है।  प्रियंका नेगी के पिता कंवर सिंह नेगी व माता सुनीता नेगी खुशी से फूले नहीं समां रहे थे। प्रियंका नेगी के माता-पिता ने बताया कि उनकी बेटी प्रियंका चार भाई-बहनों में से सबसे बड़ी है। आरंभ में प्रियंका की कबड्डी में भले ही रुचि नहीं थी, परंतु जैसे ही प्रियंका कबड्डी के मैदान में शारीरिक शिक्षक स्व. हीरा सिंह के मार्गदर्शन में आगे बढ़ी तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र आठवीं कक्षा तक प्रियंका ने स्कूली स्तर पर कबड्डी में झंडे गाड़ दिए थे तथा वर्ष 2006 में वह बिलासपुर स्थित कबड्डी छात्रावास में प्रवेश कर कबड्डी के क्षेत्र में सफलता की सीढि़यां लगातार ऊंचाइयों की ओर चढ़नी शुरू की। प्रियंका नेगी के पिता कंवर सिंह नेगी व माता सुनीता नेगी ने बताया कि आरंभ में उन्हें प्रियंका के घर से जाने पर बहुत दुख हुआ था। प्रियंका के पिता ने बताया कि जब प्रियंका कबड्डी में आगे बढ़ती गई तो परिवार वालों का भी पूरा प्रोत्साहन व योगदान उसके साथ रहा। परिजन हमेशा प्रियंका को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित  करते रहे।

अजय सरीखे प्लेयर साई बिलासपुर की खोज

साई होस्टल बिलासपुर के अधीन कई एक्सटेंशन सेंटर भी चल रहे हैं। सुंदरनगर के सिरड़ा में लड़कियों का सेंटर है, जबकि सुंदरनगर कालेज में ब्याज का है जहां इनडोर गेम्स के लिए खिलाडि़यों को तैयार किया जा रहा है। दभाल में रेस्लिंग और हमीरपुर में एथलेटिक्स का एक्सटेंशन सेंटर चल रहा है।

साई होस्टल बिलासपुर के पास अपना खेल का मैदान, इंडोर व सिंथेटिक ट्रैक न होने के बावजूद यहां के खिलाड़ी देश दुनिया में नाम चमका रहे हैं। आए साल इस होस्टल से कोई न कोई खिलाड़ी देश विदेश में खेलने के लिए जाता है। वहीं, भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान अजय ठाकुर भी इस होस्टल की पौध है। इसी के साथ ऊना जिला के विशाल भारद्वाज ने भी अपनी विशेष जगह कबड्डी खेल में बनाई है, लेकिन भारतीय कबड्डी टीम तक पहुंचने के लिए विशाल के कोच रहे वर्तमान में भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावास प्रभारी व कबड्डी कोच जयपाल सिंह चंदेल का अहम योगदान रहा है। 1987 में खुले साई के इस प्रशिक्षण केंद्र ने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं। अलबत्ता खेल छात्रावास का इसकी क्षमता के अनुरूप विस्तार नहीं हो पाया, लेकिन अब साई ने छात्रावास को विस्तार देने का पूरा खाका तैयार कर लिया है। इसी के साथ भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावास प्रभारी व कबड्डी कोच जयपाल सिंह चंदेल ने बताया कि खेल और खिलाडि़यों के भविष्य को तराश रहे भारतीय खेल प्राधिकरण के बिलासपुर छात्रावास का दायरा और बढ़ेगा। शहर की मुख्य मार्केट स्थित साई के पुराने छात्रावास के साथ साई द्वारा अब लुहणू स्थित राज्य खेल छात्रावास के पास नए व बड़े भवन का निर्माण किया जाएगा। साई होस्टल प्रबंधन ने क्षेत्रीय कार्यालय चंडीगढ़ के माध्यम से पत्र के जरिए केंद्रीय खेल मंत्रालय से बिलासपुर के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्वीकृत करने का आग्रह किया है।

वर्तमान में 66 खिलाड़ी ले रहे प्रशिक्षण

वर्तमान में इस खेल प्रशिक्षण केंद्र में बॉक्सिंग, वालीबाल तथा कबड्डी  खेलों में 66 खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं, जिसमें से 25 खिलाड़ी कबड्डी ,वालीबाल-20 और बॉक्सिंग में 21 खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं।

तृप्तेंद्र कौर, सीनियर कोच, कबड्डी

साई होस्टल में खिलाडि़यों को बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास किया जाता है।  साई होस्टल के खिलाडि़यों को कंपीटीशन कम मिलते है, जिसके कारण उन्हें और उनके खिलाडि़यों को अपनी खेल भावना को तराशने के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। साई बिलासपुर के पास अपना मैदान व अन्य सुविधाओं की कमी है, सरकार से इस संदर्भ में बातचीत की जा रही है

विजय नेगी, बॉक्सिंग कोच

बिलासपुर से अभी तक दो इंटरनेशनल और 25 नेशनल प्लेयर बॉक्सिंग खेल चुके हैं।  बॉक्सिंग की जिला स्तरीय और ब्लॉक स्तरीय प्रतियोगिताएं भी होनी चाहिए। क्योंकि इससे खिलाडि़यों के भीतर कंपीटीशन की भावना पैदा होगी। साई द्वारा शुरू की गई आओ और खेलो योजना के तहत भी बाहरी खिलाडि़यों को निःशुल्क कोचिंग दी जाती है


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