क्षमता से कितना बाहर मनाली
मनाली का प्राकृतिक सौंदर्य ही मानों उसका दुश्मन बन गया है। सैलानियों की आमद ने यहां के हरे-भरे जंगलों को होटलों में तबदील कर दिया… लिहाजा कुदरती शृंगार को ऊंचे- ऊंचे आलीशान भवन निगल गए । बिल्डिंग के साथ बिल्डिंग सटी देख ऐसा लगता है, जैसे सांस लेने के लिए भी जगह न बची हो… इसी ज्वलंत मसले को दखल के जरिए पेश कर रहे हैं…शालिनी रॉय भारद्वाज, आशीष शर्मा और मोहर सिंह पुजारी
हरियाली नहीं, होटलों से घिरा मनाली
मनाली में बेरोकटोक हो रहे भवन निर्माण से शहर में सैलानियों को ढूंढे से भी खुला स्थान नहीं मिलता है। हालांकि शहर से बाहर की मनाली की हरी-भरी खूबसूरत वादियां, बर्फ से ढकी चोटियां, दुर्गम ट्रैकिंग रूट मेहमानों को खूब भाते हैं। फल उत्पादन के लिए भी देश-दुनिया में विशेष पहचान रखने वाले कुल्लू-मनाली का यही आकर्षण है, जो सैलानियों को यहां खींच लाता है। प्रकृति की गोद में बसे मनाली के इसी नैसर्गिक रूप को निहारने की ख्वाहिश में यहां प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक पहुंचते हैं। यहां विदेशों से भी पर्यटक आते हैं, लेकिन यहां हो रहे इमारतों के अंधाधुंध निर्माण को देखकर सैलानी भी हैरान हैं।
सांस लेने के लिए भी नहीं बची जगह
कुल्लू-मनाली की खूबसूरती पर लगातार ग्रहण लगता जा रहा है। हरे -भरे जंगलों से घिरी पर्यटक नगरी में अब सुंदर घरों से अधिक होटल बन रहे हैं। यही नहीं, होटल और आशियानें भी एक ही भवन में बन रहे हैं। अधिकतर होटलों की ऊपरी मंजिल में लोग स्वयं रहते हैं और बाकी को होटल का रूप दिया जा रहा है। ऐसे में यहां की खूबसूरती को निहारने वाले लोगों की संख्या पर भी इसका अस्रर देखा गया है। भवन के साथ भवन होने से ऐसा लगता है, जैसे शहर में सांस लेने की भी शायद ही जगह बची हो।
हर दूसरी बिल्डिंग बहुमंजिला
मनाली में आपको हर दूसरी बिल्डिंग पांच से छह मंजिल की दिख जाएगी, जो शहर को नई तस्वीर में बदलती है। यही नहीं, शहर में जगह की इतनी किल्लत हो गई है कि यहां वाहनों को पार्क करना भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। ऐसे में प्रशासन यहां पार्किंग को लेकर वैकल्पिक व्यवस्थाएं तलाशने में जुटा हुआ है, ताकि सैलानियों को कोई दिक्कत न हो।
मनु नगरी ने क्या खोया
पहले ऐसा नहीं था दाणां बाजार
काष्ठकुणी शैली का बजूद खत्म, प्राकृतिक सौंदर्य गायब
मनाली के स्थानीय निवासी हरबंस अवस्थी, इकबाल शर्मा, रोहित शर्मा, लाल चंद शर्मा व राकेश की मानें तो मनाली, जो कि दाणां बाजार के नाम से जानी जाती थी, वह बहुत ही सुंदर थी। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, जो पहले था, वह अब कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। आज हरियाली को निहारने के लिए सैलानियों को ऊंचाई वाले इलाकों में जाना पड़ता है। मनाली आज कंकरीट बन चुकी है। जिस मनाली में प्रवेश करते ही काष्ठकुणी शैली के मकान देखने को मिलते थे, उनका अस्तित्व अब खत्म हो चुका है। पहले मनाली के दाणां बाजार में प्रवेश करते ही यहां की संस्कृति देखने को मिलती थी, आज चारों ओर कंकरीट का जंगल दिखाई देता है।
पहले नाम, फिर वेशभूषा खोई
मनाली के लोगों ने पहले अपना पुराना नाम खोया, फिर यहां की वेशभूषा खोई। पहले लोग जब घरों से निकलते थे तो हमेशा अपनी वेशभूषा में रहते थे, जो आज दिखने को ही नहीं मिलती। पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन, वाहनों की बढ़ती संख्या, पेड़ कटान, अवैध निर्माण इत्यादि से न केवल प्रकृति को नुकसान हुआ है, बल्कि मनाली ने अनेक धरोहरें भी खोई हैं, जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती।
रोहतांग में सिग्नल शालिंण गांव का होगा शृंगार
जिला पर्यटन विकास अधिकारी बीसी नेगी का कहना है कि मनाली को लेकर पर्यटन विभाग भविष्य की योजनाओं पर काम कर रहा है। कुछ अनछुए पर्यटक स्थलों की सूची भी प्रदेश सरकार को भेजी गई है, जहां पर सैलानियों को पहुंचाने की बात कही गई है। इनमें प्राथमिकता के तौर पर मनाली के शालिंण गांव का भी जिक्र किया गया है। शहर के ब्यूटीफिकेशन के लिए एडीबी प्रोजेक्ट के तहत काम किया जाना है। इसके अलावा रोहतांग पर मोबाइल सिग्नल को और बेहतर बनाने के लिए टावर लगाए जा रहे हैं। समर सीजन के दौरान मई व जून में सबसे ज्यादा सैलानी मनाली पहुंचते हैं। ऐसे में विभाग का प्रयास रहता है कि सैलानियों को हर सुविधा मुहैया करवाई जाए।
मालरोड पर बनेगा सेल्फी प्वाइंट
मनाली के मालरोड पर प्रशासन आगामी समय में कई नए प्रोजेक्टों को अंजाम देने जा रहा है। इस दौरान मालरोड पर जहां एक सेल्फी प्वाइंट बनाया जाना है, वहीं मनाली के मालरोड को हेरिटेज लुक देने की भी प्रशासन ने योजना बनाई है।
विकास के नाम पर प्रकृति का वध
लोगों की मानें तो बदलते जमाने के अनुसार व्यवस्था को सुधारने के नाम पर प्रकृति का पूरी तरह से वध हुआ है। विकास के नाम पर मनाली में जो भी हुआ है, उसी का खामियाजा आज तबाही के रूप में चुकाना पड़ा है। अगर समय रहते प्रकृति को नहीं बचाया गया तो तबाही हर साल गहरे जख्म दे सकती है।
कैरिंग कैपेसिटी पर तीन माह में आएगी रिपोर्ट
मनाली की कैरिंग कैपेसिटी पर तीन माह में एनजीटी के आदेश पर गठित की गई विशेषज्ञों की कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी। यहां दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे दबाव को लेकर विस्तार से रपट तैयार की जाएगी। मनाली में कितने लोगों को बसाया जा सकता है, इसकी रिपोर्ट दस सदस्यीय विशेष विशेषज्ञ कमेटी तीन महीने में देगी। इस कमेटी में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से लेकर भू-जल और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों व वरिष्ठ वैज्ञानिकों को शामिल किया गया है। सरकार ने एनजीटी के आदेशों के तहत कमेटी का गठन कर दिया है। इस संबंध में संबंधित विभागों व संस्थानों को पत्र भी जारी कर दिए गए हैं। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही भविष्य में यहां मकानों का निर्माण होगा। यह कमेटी मनाली का निरीक्षण करने के साथ वर्तमान स्थिति का भी आकलन करेगी। इसमें भू-जल से लेकर वहां की प्राकृतिक स्थिति, सड़कों, भवन जनसंख्या और भविष्य में लोगों के रहने की क्षमता के संबंध में सारी जानकारी प्रदेश सरकार को दी जाएगी। प्रदेश सरकार द्वारा रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी जाएगी। इस कमेटी में केंद्रीय भू-जल बोर्ड के विशेषज्ञ वैज्ञानिक सहित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को नोडल अधिकारी बनाया गया है। कमेटी द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट में यह भी खुलासा होगा कि आपदा के लिए कौन-कौन सा क्षेत्र कितना संवेदनशील है। इन क्षेत्रों में पानी की निकासी की क्या व्यवस्था है। किस तरह की ढलान में ये क्षेत्र आते हैं और पीने के पानी की व्यवस्था व भविष्य की क्या संभावना है।
एनजीटी के हस्तक्षेप के बाद रोहतांग में फिर रौनक दिखने लगी है। अगर टीसीपी नियमों को कुछ बदला जाए तो लोगों को और राहत मिल सकेगी। वैसे एनटीजी के हस्तक्षेप के बाद काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जो सराहनीय है। लोगों को नियमों के अनुसार ही होटल व घरों का निर्माण करना चाहिए, ताकि बाद में उन्हें नुकसान न उठाना पड़े। साथ ही पर्यटक स्थल की प्राकृतिक खूबसूरती भी बनी रह सके
— चंद्रा ठाकुर, आर्किटेक्ट, मनाली
2500 टैक्सियां, सैकड़ों टूरिस्ट वाहन
मनाली टैक्सी यूनियन की बात की जाए तो यहां पर करीब 2500 से अधिक टैक्सियां रजिस्टर्ड हैं। ऐसे में यहां टैक्सियों को खड़ा करने की जगह नहीं है, तो अन्य वाहनों की पार्किंग के हालात क्या होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। प्रशासन ने पर्यटकों के वाहनों के लिए शहर से कुछ दूर वोल्वो बस स्टैंड बनाया तो है, लेकिन ब्यास नदी के किनारे बनाए गए इस बस स्टैंड को हाल ही में बाढ़ ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। इसके अलावा सैकड़ों सैलानियों के वाहन भी यहां पहुंचते हैं।
हामटा की ओर मोड़ें पर्यटक
होटल एसोसिएशन ने भी पर्यटकों का रुख प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हामटा की ओर मोड़ने का सुझाव प्रदेश सरकार को दिया है। यहां बर्फ का दीदार आसानी से किया जा सकता है। अगर यहां सुविधाएं बढ़ाई जाएं, तो सैलानी भी बढ़ेंगे।
40 हजार लोगों के ठहरने की व्यवस्था
मनाली में प्रतिदिन करीब 40 हजार सैलानियों के ठहरने की व्यवस्था है। पर्यटन विभाग के पास पंजीकृत होटलों व होम-स्टे में करीब 13647 कमरे हैं। विभाग का कहना है कि मनाली में प्रतिदिन करीब 40 हजार सैलानियों को ठहराया जा सकता है। शहर में 628 होटल, 411 होम-स्टे
पर्यटन विभाग के पास मनाली के अब तक 628 होटल व 411 होम-स्टे पंजीकृत हुए हैं। इसके अलावा 74 रेस्तरां भी हैं। हालांकि मनाली में डेढ़ हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी होटल इकाइयां चल रही हैं, जिन पर अब एनजीटी ने जांच बिठा दी है। मनाली में करीब 40 फीसदी होटल अवैध हैं। बहरहाल मनु नगरी में अंधाधुंध निर्माण ने यहां की सुंदरता को तो बदसूरत किया ही है, साथ में सैलानियों की आमद भी घटने लगी है।
एनजीटी ने कसा शिकंजा
एनजीटी ने कुल्लू-मनाली, कसोल, मणिकर्ण व रोहतांग को लेकर काफी गंभीरता दिखाई है। पर्यावरण से छेड़छाड़ व भवनों के अंधाधुंध निर्माण पर भी एनजीटी ने सवाल खड़े किए हैं। रोहतांग में ढाबों को चलाने के आदेश नहीं हैं। एनजीटी के आदेशों के बाद मढ़ी में ईको-फ्रेंडली मार्केट का निर्माण किया जा रहा है। यही नहीं, रोहतांग दर्रे पर घोड़ों पर सैलानियों के सैर करवाने पर भी रोक है। वहीं, एनजीटी के हस्तक्षेप के बाद कुल्लू, कसोल सहित मणिकर्ण के उन होटलों पर काईवाई की गई है, जो नियमों को ताक पर रखकर बनाए गए थे।
विदेशी सैलानियों की आमद में गिरावट
अब देश-विदेश से सैलानी मनाली की ओर रुख कम कर रहे हैं। इस बात का खुलासा पर्यटन विभाग के पास मौजूद आंकड़े खुद बयां कर रहे हैं। 2016 में 36 लाख देशी-विदेशी सैलानी मनाली पहुंचे, वहीं 2017 में इसके मुकाबले साढ़े 34 लाख सैलानी ही कुल्लू-मनाली का दीदार कर पाए। दो वर्षों के बीच डेढ़ लाख सैलानियों का अंतर पाया गया है। बात वर्ष 2018 के सितंबर माह तक की करें तो इस वर्षकुल्लू-मनाली में 23,56,289 सैलानियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। ये आंकड़े पर्यटन विभाग के अनुसार हैं। हैरानी की बात यह है कि पिछले वर्षों के दौरान जहां मनाली आने वाले सैलानियों की आमद में इजाफा दर्ज किया गया था, वहीं अचानक सैलानियों के गिरे ग्राफ को देख कारोबारी भी हैरान हैं। मनाली होटलियर एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप ठाकुर का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से मनाली में एनजीटी की कार्रवाई व सड़कों के काम के चलते यहां कारोबार पर खासा असर पड़ा है।
दस वर्षों में कुल्लू-मनाली आए विदेशी सैलानी
वर्ष – विदेशी सैलानी
2008 112910
2009 119514
2010 133707
2011 138488
2012 143900
2013 119341
2014 109468
2015 109468
2016 122064
2017 133409
2018 82991
रोहतांग में सिमट रहा कारोबार
मनाली प्रदेश का एक ऐसा पर्यटक स्थल है, जहां साल भर पर्यटक और फिल्म यूनिट्स जमी रहती हैं। साथ ही लाहुल के रोहतांग दर्रे पर सैलानियों को साल भर बर्फ देखने को मिलती है, लेकिन यहां पर भी पर्यटन करोबार की गतिविधियों से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को ध्यान में रख अब एनजीटी ने प्रतिदिन जाने वाले वाहनों की संख्या तय कर दी है। मनाली से रोहतांग के लिए रोजाना 1200 वाहनों को ही भेजा जाता है। एनजीटी ने सैलानियों को रोहतांग जाने से मना नहीं किया है, लेकिन यहां कारोबारी गतिविधियों पर शिकंजा जरूर कसा है। हर पर्यटक रोहतांग जाना चाहता है। इसके चलते रोहतांग पर बोझ काफी बढ़ गया था। इस बोझ को कम करने के लिए ही एनजीटी ने वाहनों की संख्या 1200 तक सीमित कर दी है।
… तो भवन तोड़ने की नौबत नहीं आती
टीसीपी के तहत पहले अढ़ाई मंजिला भवन बनाने की ही अनुमति थी, लेकिन विभाग ने कभी इस निर्देश पर कार्रवाई नहीं की। ऐसे में लोगों ने घर व होटल अढ़ाई नहीं, बल्कि तीन से छह मंजिल तक बना डाले। आज एनजीटी की कार्रवाई के बाद नियम तोड़ने वाले भवनों व होटलों पर विभाग कार्रवाई कर रहा है। अगर विभाग पहले कार्रवाई करता, तो शायद आज यह नौबत न आती।
शहर में पार्किंग की सख्त जरूरत
जिस तरह से जिलाभर में पिछले कुछ सालों से वाहनों की संख्या बढ़ी है, उसके मुताबिक पार्किंग की व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है। पार्किंग की व्यवस्था न होने से यहां जाम की समस्या आम रहती है। वाहनों की संख्या के अनुसार पार्किंग के लिए कोई भी बेहतर प्लान नहीं बना है। शहर के साथ-साथ पार्किंग आज उन पर्यटक स्थलों पर भी जरूरी हो गई है, जहां तक सैलानी घूमने के लिए जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह पार्किंग की व्यवस्था शहर के साथ-साथ पर्यटक स्थलों पर भी करे। साथ ही वाहन लेने की अनुमति भी उसी को मिले,जिसके पास पार्किंग की सुविधा हो। शहर में अधिकतर होटल भी बिना पार्किंग के बने हैं। कई होटल मालिकों के पास पार्किंग सुविधानहीं है। इसके चलते सैलानियों के वाहन सड़कों पर खड़े रहे हैं।
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