पोलिथीन चादरों से ढककर रखें प्याज की क्यारियां

By: Oct 30th, 2018 12:04 am

प्याज एक महत्त्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ विटामिन भी अल्प मात्रा में रहते हैं। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश,  ओडिशा कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यूकनाडा, ईए, जापान, लेबनान एवं कुवैत में निर्यात किया जाता है।

जलवायु : यद्यपि प्याज ठंडे मौसम की फसल है, लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता है। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 21० से.ग्रे. तापक्रम उपयुक्त माना जाता है, जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 15० से.ग्रे. से 25० से.ग्रे. का तापमान उत्तम रहता है।

मृदा : प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बालुई दोमट भूमि जिसका पीएच मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नहीं उगाना चाहिए।

किस्में : नासिक लाल, एन-53  एग्रीफाउंड डार्क रेड, पटर्ना रेड, ब्राउन स्पेनिश, पालम लोहित।

बुआई का समय

निचले पर्वतीय क्षेत्र   नवंबर-दिसंबर, मुख्य

फसल जून-जुलाई, खरीफ                              फसल

मध्य पर्वतीय क्षेत्र     अक्तूबर-नवंबर

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र     अप्रैल

भूमि की तैयारी : प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्त्व है। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरांत दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें प्रत्येक जुताई के पश्चात पाटा अवश्य लगाएं, जिससे नमी सुरक्षित रहे तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए। भूमि को सतह से 15 से.मी. ऊंचाई पर 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है। गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश की कुल मात्रा तथा कैन की आधी मात्र तैयार करते समय मिट्टी में मिलाएं। बची हुई कैन की आधी मात्रा के दो बराबर भाग करें, पहला रोपाई के एक माह बाद तथा दूसरा भाग उसके एक माह बाद डालें।

पौध संरक्षण : रोग, लक्षण

  1. कमरतोड़ रोग : पौध अंकुरण से पहले तथा बाद में मर जाती है। प्रभावित पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

उपचार :1. क्यारियों को फार्मलिन-1 भाग फार्मलिन+7 भाग पानी से बीजाई से 15-20 दिन पहले शोधित करें तथा पोलिथीन चादरों से ढक कर रखें। बीज तभी बोएं जब मिट्टी से इस दवा का धुआं उठना बंद हो जाए।

  1. क्यारियों को डायथेन एम-45 या माह एम-45,25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल से पौध जमीन से ऊपर निकलने पर रोग के लक्षण देखते ही सींचें।
  2. जामनी धब्बा रोग : फूल वाली डंडियों पर जामनी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और वहां से ये डंडियां टृट कर गिर जाती हैं।

उपचार : बुआई से पहले कंदों को मैन्कोजेब या डायथेन एम-45 या माह एम-45, 250 ग्रा./100 लीटर पानी में डुबोएं। रोग के प्रकोप के साथ ही उपरोक्त घोल का हर 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।

  1. डाऊनी मिल्डयू : प्रभावित भागों पर चकते पड़ जाते हैं।

उपचार : विधि वही है जोे जामनी धब्बा रोग में दी गई है। पैदावार : 200 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टर


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App