क्षमता से कितना बाहर दियोटसिद्ध

By: Nov 12th, 2018 12:10 am

साल भर में 14 लाख भक्त, 23 करोड़ आय, 200 दुकानें और 250 कर्मी। भले ही ये आंकड़े दुनियाभर में सिद्धपीठ दियोटसिद्ध का डंका बजा रहे हैं, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू उतना ही खराब है। आज तक न कोई मास्टर प्लान बना, न ही पार्किंग का स्थायी समाधान हो सका.. सबसे बड़ी समस्या बढ़ रहा अंधाधुंध निर्माण है, आखिर क्यों नहीं निखर पाई बाबा की नगरी.. दखल के जरिए बता रहे हैं,                                                        नीलकांत भारद्वाज और रजत कुमार

सिद्धपीठ कहलाया जाने वाला बाबा बालक नाथ मंदिर ट्रस्ट अपने गठन के 31 साल बाद भी बाबा की नगरी को वैसा नहीं बना पाया, जैसे यह होनी चाहिए थी। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की मंदिर के प्रति आस्था तो लगातार बढ़ती रही, लेकिन मंदिर के सुधारीकरण के लिए हमारे सियासतदानों और अधिकारियों की इच्छा शक्ति में वक्त  के साथ-साथ कमी ही देखी गई। मंदिर की देखरेख करने वाले ट्रस्ट के मुलाजिमों का स्वरूप हर पांच साल बाद सरकारों के बदलने के साथ बदलता रहा। यानी सियासत यहां भी हावी रही। मंदिर की सेवा में लगे ट्रस्ट के करीब 250 मुलाजिमों की सेवाएं भी हर पांच साल बाद सरकार बदलने क साथ बदल जाती हैं। डीसी जो कि मंदिर का कमिश्नर होता है, वह इसलिए प्लान पर काम नहीं कर पाता क्योंकि जब तक वह इस पर सोचना शुरू करता है, उसका तबादला हो जाता है। यहां पर अंधाधुंध भवन निर्माण भी इसलिए हो पाए क्योंकि कहीं न कहीं सियासदानों की शह रही है। इसके अलावा यहां श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वैसे तो प्रशासन प्रयासरत है, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल तो यहां स्थायी पार्किंग न होने पर होती है, हजारों के हिसाब से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को गाड़ी खड़ी करने के लिए दिक्कत होती है, ऐसी परिस्थितियों में सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।

खिसकती पहाड़ी का खौफ

यह अंधाधुंध होने वाले निर्माण कार्य का ही नतीजा है कि बाबा बालक नाथ की पहाड़ी से पत्थर और ल्हासे गिरते हैं, लेकिन फिर भी नियमों को दरकिनार करते हुए यहां निर्माण कार्य होते रहे। बता दें कि दियोटसिद्ध मंदिर बड़सर की चकमोह पंचायत में पड़ता है। पंचायत में 7 वार्ड हैं, जिसकी आबादी लगभग 1700 के करीब है। दियोटसिद्ध मंदिर चकमोह पंचायत के वार्ड नंबर पांच में बना है। यह वार्ड पंचायत का सबसे बड़ा वार्ड है, इसकी लोकल आबादी 500 की लगभग है। जानकार बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व यहां आई पुरातत्व विभाग की टीम ने मंदिर की भौगोलिक स्थिति और यहां किए गए अंधाधुंध निर्माण को देखते हुए मंदिर  की गुफा के आस-पास एक साथ 5000 लोगों की मौजूदगी को खतरा बताया था। किए गए सर्वे में कहा गया था कि बाबा की पहाड़ी पर लोड बढ़ गया है और यह खिसक रही है। बताते हैं कि उस  वक्त पहाड़ी की ग्रोटिंग करने की बात कही गई थी, लेकिन ग्रोटिंग के लिए जो खर्च बताया गया था,उसे वहन करने में पहले से ही खर्चों में डूबे मंदिर ट्रस्ट ने हाथ खड़े कर दिए थे। उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन कुछ सालों बाद फिर एक अन्य एजेंसी से यहां का निरीक्षण करवाया गया तो उसने कहा कि पहाड़ी नहीं खिसक रही है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि पहाड़ी पर बढ़े बोझ के चलते पहाड़ी खिसक रही है। बाद में इसके प्रमाण उस वक्त मिलना शुरू भी हो गए, जब पहाड़ी से अचानक पत्थरों का गिरना शुरू हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस पहाड़ी से कभी-कभी अपने आप पत्थर गिरने लगते हैं। बताया जा रहा है कि मंदिर ट्रस्ट अब इस दिशा में कुछ करने का प्लान बना रहा है और किसी एजेंसी को बुलाकर एक बार फिर निरीक्षण करवाकर गिरते पत्थरों को रोकने के लिए कदम उठाएगा।  अब यह कब तो हो पाएगा, इस बारे में तो कुछ पता नहीं लेकिन यहां के मौजूदा हालात बता रहे हैं कि जितना जल्दी हो सके, इस दिशा में कुछ करना होगा।

पहाड़ी की ग्रोटिंग करवाएंगे

भविष्य में मंदिर के सुधारीकण के लिए कई योजनाएं हैं। कूड़े की समस्या है,उसे ठिकाने लगाने के लिए कूड़ा संयंत्र स्थापित किया जाएगा, इसके लिए जमीन की कुछ औपचारिकताएं बची हैं।  पहाड़ी से पत्थर गिरते हैं, उसके लिए हमने एक्सपर्ट एजेंसी से संपर्क किया है,वह जल्द ही यहां आकर मंदिर का निरीक्षण करके पहाड़ी पर ग्रोटिंग का काम शुरू करेगी

डा. ऋचा वर्मा; कमिश्नर, दियोटसिद्ध मंदिर ट्रस्ट

 पार्किंग की  है योजना

मंदिर में हर साल दस लाख के करीब भक्त शीश नवाने के लिए पहुंचते हैं। भविष्य में यहां उचित पार्किंग बनाने की योजना है। इसके अलावा सुधारीकरण के लिए और भी काम किए जा रहे हैं

प्रेम सिंह भाटिया,  मंदिर अधिकारी दियोटसिद्ध

पार्किंग न होने  से दिक्कत

पार्किंग व्यवस्था न होने के कारण श्रद्धालुआें को भारी परेशानी का सामना पड़ता है। मंदिर न्यास को लोअर बाजार में अपनी 14 कनाल खाली पड़ी जमीन में पार्किंग बनानी चाहिए

पवन जगोता,  बीडीसी उपाध्यक्ष व दियोटसिद्ध निवासी

कूड़ा संयंत्र न होने से मुश्किल

रोजाना मंदिर की सफाई और दुकानों से भारी मात्रा में कूड़ा निकलता है, लेकिन कूड़ा संयंत्र कक्ष न होने के कारण यह कूड़ा दुकानदारों को मजबूरन पहाडि़यों पर फेंकना पड़ता है। इस समस्या का स्थायी हल होना चाहिए

 राजेश कुमार,  स्थानीय निवासी

 बैरियर-एक पर रुकें गाडि़यां

प्रशासन के आदेशों के बावजूद सारी गाडि़यां अपर बाजार में चली जाती हैं, जिससे लोअर बाजार के व्यापारियों का व्यवसाय मंदा हो रहा है। बैरियर नंबर एक पर गाडि़यां रुकेंगी, तो समस्या का हल होगा

संजय कुमार; प्रधान, बाजार कमेटी दियोटसिद्ध

अग्निशमन वाहन होना जरूरी

मंदिर न्यास द्वारा श्रद्धालुआें को सुविधाएं देने के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ कमियां हैं। फायर ब्रिगेड की गाड़ी न तो दियोटसिद्ध में है और न ही शाहतलाई में है, जबकि यहां इसकी बहुत आवश्यकता है। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है

भक्त प्रेम; संचालक, अमृतसर सिद्धआश्रम

इनकम का 10 फीसदी श्रद्धालुओं की सुविधा पर खर्च

बाबा बालक नाथ मंदिर ट्रस्ट की सालाना इनकम की बात करें तो मंदिर में हर साल करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है,लेकिन हैरत की बात यह है कि इसमें केवल 10 फीसदी ही श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर खर्च होता है, बाकि 90 फीसदी मंदिर न्यास के अपने खर्चों पर ही व्यय हो जाता है। जानकारी के अनुसार पिछले साल मंदिर न्यास को चढ़ावा, दान और धर्मशालाओं  आदि से 23 करोड़ की आमदनी हुई थी। मंदिर न्यास का अपना एक डिग्री कालेज है, संस्कृत  कालेज और एक स्कूल है। कालेज के शिक्षकों की सैलरी यूजीसी स्केल के अंडर दी जाती है। इस हिसाब से एक शिक्षक एक से डेढ़ लाख रुपए तक हर माह वेतन लेता है।

श्रद्धालुओं के लिए दो टाइम लंगर

दियोटसिद्ध मंदिर में शीश नवाने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं की बात करें तो यहां श्रद्धालुओं के लिए दो टाइम लंगर की व्यवस्था की गई है। रात्रि ठहराव के लिए होटल धर्मशाला व सराय बनाई गई हैं। यहां 9 सराय मंदिर न्यास  द्वारा संचालित की जा रही हैं। चार धर्मशालाएं निजी संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही हैं। इनके अलावा दो निजी होटल और एक गेस्ट हाउस है।  बेशक प्रशासन श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने का प्रयास कर रहा है, लेकिन हजारों की संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए  अब काफी प्रयास किए जाने की जरूरत है।

पार्किंग न होने से  मुश्किल

दियोटसिद्ध मंदिर में लाखोें की तादाद में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों के लिए आज तक स्थायी पार्किंग की व्यवस्था नहीं हो पाई है। जगह होने के बावजूद पार्किंग आज तक नहीं बनी। रोजाना दर्जनों वाहन सड़कों के किनारे खड़े किए जाते हैं। चिंता का विषय यह है कि अपर बाजार में बड़ी गाडि़यां प्रतिबंधित हैं फिर भी श्रद्धालुओं से भरी बसें वहां पहुंच जाती हैं। निचले बाजार के दुकानदारों में भी इस बात का रोष रहता है कि सभी वाहन ऊपर जा रहे हैं, इससे एक तो पहाड़ी पर बोझ बढ़ रहा है, ऊपर से उनके कारोबार पर असर पड़ता है।

हक हकूक  के लिए ट्रस्ट और महंत में रहा विवाद

वर्ष 1987 में जब दियोटसिद्ध मंदिर ट्रस्ट का गठन हुआ तो उसके कुछ साल बाद यहां एक विवाद खड़ा हो गया। यह विवाद मंदिर  ट्रस्ट और महंत के बीच था। क्योंकि ट्रस्ट  के गठन से पूर्व महंत ही मंदिर की देखरेख करते थे। संपत्ति पर उनका मालिकाना हक था, लेकिन ट्रस्ट के गठन के बाद उन्हें इससे वंचित कर दिया गया। इसे लेकर महंत कोर्ट में चले गए। पहले जिला कोर्ट फिर हाई कोर्ट और बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। आखिर लंबे समय तक चले इस विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महंत के पक्ष में फैसला सुनाया।

हर साल आते हैं 14 लाख श्रद्धालु

दियोटसिद्ध मंदिर में हर साल शीश नवाने के लिए 13-14 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। इनमें हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू और राजस्थान शामिल हैं। भारत के अलावा विदेशों में भी बाबा बालकनाथ के भक्त हैं। यहां दुबई, कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया, कुवैत, सिंगापुर और न्यूजीलैंड से भी श्रद्धालु आते हैं।

मार्च-अप्रैल में बढ़ जाते हैं भक्त

पूरे साल की बात करें तो मार्च और अप्रैल महीने में श्रद्धालुओं की संख्या में एकाएक वृद्धि हो जाती है। उस वक्त यहां चैत्र मेले लगते हैं। मेलों के दौरान ही यहां 4 से 5 लाख श्रद्धालु बाबा के दर शीश नवाने पहुंचते हैं। इसके अलावा नववर्ष के उपलक्ष्य पर भी श्रद्धालु नया साल बाबे दे नाल मनाने के लिए काफी संख्या में पहुंचते हैं। बताते हैं कि हर साल पहली जनवरी को यहां 60 से 70 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं।

रविवार को 25-30 हजार आमद

बाबा बालक नाथ में रूटीन में आने वाले श्रद्धालुओं की बात करें तो सप्ताह के छह दिन श्रद्धालुओं की संख्या चार से पांच हजार तक होती है, जबकि रविवार को 25 से 30 हजार श्रद्धालु यहां पहुंच जाते हैं क्योंकि रविवार बाबा बालक नाथ जी का दिन माना जाता है। बाबा के दर्शनों के लिए शनिवार रात से ही यहां श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो जाते हैं।

मेलों के दौरान जाम आम

मेलों के दौरान हजारों के हिसाब से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं लेकिन पार्किंग की स्थायी व्यवस्था न होेने से कई बार लंबा जाम भी लग जाता है, जिससे श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान अकसर ट्रैफिक कर्मियों और श्रद्धालुओं की तू-तू मैं मैं भी होती रहती है। गौर हो कि एकाएक श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने से व्यवस्था भी पटरी से उतरने लगती है, हालांकि प्रशासन मुस्तैदी के साथ काम कर रहा है। इसके अलावा काफी संख्या में श्रद्धालु अपनी गाडि़यों में या फिर सड़क किनारे ही रात गुजार लेते हैं।

अंधाधुंध निर्माण ने बिगाड़ी सूरत

 200 दुकानों के साथ रेहड़ीधारकों ने जमाया कब्जा

भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय का अवतार माने जाने वाले, धौलगिरी पर्वत पर असुर दियोट का वध करके दियोटसिद्ध कहे जाने वाले सिद्ध जोगी बाबा बालक नाथ वर्षों से हिमाचल सहित अन्य राज्यों के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि बाबा बालक नाथ जी कलियुग के अवतारी हैं। वर्षों से श्रद्धालुओं का यहां आगमन जारी है। वक्त के साथ-साथ चकमोह पंचायत स्थित कभी एक छोटे से मंदिर और दो दर्जन दुकानों वाली बाबा बालक नाथ की नगरी दियोटसिद्ध में आज न केवल भक्तों की संख्या में इजाफा हुआ है, बल्कि यहां हुए अंधाधुंध निर्माण का भार धीरे-धीरे यहां के लिए खतरा बनता जा रहा है, यहीं नहीं अंधाधुंध निर्माण ने यहां की सूरत बिगाड़ कर रख दी है। कुछ साल पहले हुए एक सर्वे के दौरान यह बातें निकलकर आईं थी कि यह पहाड़ खिसक सकता है। यहां अब किसी भी तरह का निर्माण करना खतरा बताया गया है। यही नहीं, पहाड़ी से पत्थर गिरने की बातें सामने आती रहती हैं। बावजूद इसके निर्माण कार्य चले हुए हैं। बताते हैं कि करीब 40 साल पहले यहां  20 से 25 दुकानें होती थीं, लेकिन आज यहां अपर और लोअर दो बाजार बन गए हैं। यहां दुकानों की संख्या 200 के करीब पहुंच गई है। पहले मंदिर महंतों के अधीन था लेकिन श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए 16 जनवरी 1987 को दियोटसिद्ध मंदिर में ट्रस्ट का गठन कर दिया गया। उसके बाद से यहां की स्थिति लगातार बदलती गई। अंधाधुंध निर्माण हो रहे हैं। मौजूदा समय में बस स्टैंड दियोटसिद्ध के पास बेतरतीब निर्माण जारी है। यहां करीब 10 रेहडि़यां लगाई जा चुकी हैं। गरीबी की आड़ में रेहड़ी धारक 20-20 फुट जगह पर कब्जा जमाए हुए हैं जो आने वाले समय में दुकानों का रूप ले लेगा। यही हाल रहा तो आने वाले समय में यही संख्या दर्जनों में पहुंच जाएगी।

कूड़ा ठिकाने लगाने का प्रबंध नहीं

करोड़ों  की इनकम वाले मंदिर न्यास के पास कूड़े को ठिकाने लगाने का कोई प्रबंध नहीं है। रोजाना मंदिर से तथा दुकानों से क्विंटलों के हिसाब से कूड़ा निकलता है। कूड़ा संयंत्र न हो पाने के कारण इस कचरे को आसपास की ढांकों पर ठिकाने लगाया जाता है, जो कि बहुत बड़ी चिंता का विषय है।

धरा ही रह गया मास्टर प्लान

वर्ष 1994 में तत्कालीन मंदिर के आयुक्त ने यहां के विकास के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया था। जिसमें सारी प्लानिंग थी कि कहां क्या-क्या और कैसे होना चाहिए, लेकिन उस पर आज तक काम नहीं हो पाया। क्योंकि थोड़े-थोड़े समय पर डीसी बदलते रहे और वह अपने-अपने हिसाब से प्लान बनाकर चलते बने और इतना पैसा होने के बावजूद यहां की खूबसूरती के लिए काम नहीं हो पाया।


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