पहाड़ी भाषा का संरक्षण और संवर्धन हो

By: Nov 7th, 2018 12:05 am

उमा ठाकुर

लेखिका, शिमला से हैं

जनता और बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि वे हमारी अमूल्य पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने का प्रयास करें, ताकि हिमाचल की पहचान, और हर पहाड़ी भाषा बोलने वालों का मान ‘पहाड़ी बोली’ देश में अपनी पहचान बना सके…

किसी भी देश अथवा प्रदेश की उन्नति, सभ्यता, संस्कृति और उसके मानवीय विकास को परखने की कसौटी उसकी बोली है। इसके अलावा बोली का महत्त्व इस बात पर निर्भर करता है कि सामाजिक व्यवहार, शिक्षा और साहित्य में उसका क्या महत्त्व है। प्रत्येक भाषा का विकास बोलियों से ही होता है। हिमाचली भाषा का इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है। साथ ही हमारी गौरवपूर्ण सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को वर्तमान संदर्भ में कलमबद्ध करने की नितांत आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ी बोलियों की इस अमूल्य धरोहर से वंचित न रह जाए। हिमाचल प्रदेश एक देवभूमि है।

देव आस्था और प्राचीन परंपराओं का निर्वहन तो यहां के लोग बखूबी करते हैं, साथ ही धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों को निभाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। हिमाचल प्रदेश में ज्यादातर क्षेत्रों में पहाड़ी बोली का प्रचलन है। इस पहाड़ी भाषा को भारतीय भाषा विज्ञान में पश्चिमी पहाड़ी नामकरण दिया गया है। इस भाषा के उद्भव में अभी तक मतभेद हैं, परंतु अधिकतर विद्वानों का मत है कि इस पर शौरसेनी अपभ्रंंश भाषा का अधिक प्रभाव है। पुरानी भाषा या बोलियों के नमूने हमें अनेक शिलालेख, ताम्रपत्र, भोजपत्र तथा स्तंभ आदि पर प्राचीनकालीन लिपियों के रूप में मिलते हैं। इसलिए शायद हमारी पहाड़ी भाषाओं का उद्गम वैदिक संस्कृति से ही माना जाता है। हिमाचल के अधिकतर क्षेत्रों में स्थानीय बोलियां प्रचलित हैं। इनमें कुल्लवी, कांगड़ी, मंडियाली, महासवी, किन्नौरी बोलियां प्रमुख हैं। वर्तमान में हिमाचल में करीब 33 क्षेत्रीय बोलियां बोली जाती हैं। ये बोलियां लोक साहित्य, लोक गीत, लोक गाथाओं और नैतिक मूल्यों का बेशकीमती खजाना अपने आप में संजोए हुए हैं। जनजातीय क्षेत्र जैसे किन्नौर की बात करें, तो पुराने जमाने में यहां रेखड़ पद्धति थी। रामपुर बुशहर में टांकरी का प्रचलन रहा और ऊपरी किन्नौर में तिब्बती या भोटी भाषा में तीन भाषाओं के तत्त्व मिले हैं। तिब्बती भाषा को किन्नौरी भाषा का मूल अंश भी माना जाता है। भरमौर के गद्दी जनजातीय क्षेत्र में भरमौरी भाषा बोली जाती है। कोटगढ़, रोहडू़, जुब्बल, कोटखाई यानी अप्पर हिमाचल में महासवी बोली जाती है। जैसा कि कहा भी जाता है कि ‘बारह कोस पर बदले बोली’ यह कहावत हिमाचल की बोलियों के लिए चरितार्थ होती है। हिमाचल प्रदेश का गौरवमयी इतिहास रहा है।

हिमाचल प्रदेश की लोक कला, पहाड़ी रूमाल, हस्तशिल्प कला, काष्ठकला, वास्तुकला तथा पहाड़ी चित्रकला इत्यादि देश में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में अपना लोहा मनवा चुकी है। खेद का विषय है कि हम 21वीं सदी में भी ‘पहाड़ी भाषा’ को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं दिला पाए हैं। पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पहाड़ी भाषा बोलने वाले आम आदमी को प्रयासरत रहना होगा। हिमाचल प्रदेश का कला संस्कृति विभाग विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से लोक संस्कृति, साहित्य, कला व बोलियों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है। ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में भी समय-समय पर लोक भाषा में नाटकों का मंचन किया जाता है। आकाशवाणी शिमला, हमीरपुर, धर्मशाला केंद्र भी स्थानीय बोलियों के संरक्षण के लिए प्रयासरत हंै। पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए हिमाचल के साहित्यकार, कवि व लेखक पहाड़ी बोली में ज्यादा से ज्यादा लेखन कार्य कर विशेष योगदान दे सकते हैं। समाज की आम जनता और बुद्धिजीवियों से भी यही निवेदन है कि वे भी हमारी अमूल्य पहाड़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने का प्रयास करें, ताकि हिमाचल की पहचान, पहाड़ की शान और हर पहाड़ी भाषा बोलने वालों का मान ‘पहाड़ी बोली’ देशभर में अपनी पहचान बना सके। मेरा यह मानना है कि युवाशक्ति ही ऐसी शक्ति है, जो समाज की धारा बदल सकती है। वर्तमान संदर्भ में इंटरनेट का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। युवा वर्ग अपनी स्थानीय बोली में ब्लॉग लिख कर भी विश्वग्राम की परिकल्पना को साकार कर सकता है। पाश्चात्य सभ्यता के रंग में न रंगकर युवा वर्ग अपनी अमूल्य धरोहर बोली को इस माध्यम से संजोकर रख सकता है। अभिभावकों की भी यह नैतिक जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों में बचपन से ही पहाड़ी बोली के महत्त्व को बताएं। वे अपने बच्चों को संस्कार का बीज अपनी स्थानीय बोली को जीवित रखकर बो सकते हैं, जिससे बच्चों में लोक संस्कृति व इसके इतिहास में रुचि पैदा होगी। युवा पीढ़ी गांव की मीठी बोली को अपनाकर अपने जीवन मूल्यों को समझंे और अपनी युवा सोच से देश के निर्माण में अपनी भागदारी सुनिश्चित करें।


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