आलू बीज बेचेगी सरकार

By: Dec 23rd, 2018 12:04 am

हिमाचल में आलू की मुख्य बैरायटियों में कुफरी सदाबहार, कुफरी हिमसोना, हिमगोल्ड, पुखराज, बहार चंद्रमुखी के अलावा बरोट और लाहुल का बीज प्रमुख है

करीब 15 साल बाद एक बार फिर हिमाचल सरकार आलू का बीज बेचने की तैयारी कर रही है। प्रदेश सरकार अगर ऐसा करती है,तो लाखोें किसानों को इसके तीन बड़े फायदे होंगे। एक तो उन्हें सर्टिफाई बीज मिलेगी,दूसरे महंगे बीज खरीदने की टेंशन भी खत्म हो जाएगी। तीसरा फायदा यह होगा कि विकास खंड कार्यालय के जरिए बीजों का वितरण होगा। इससे बीडीओ आफिस पर किसानों का भरोसा और बढ़ेगा। मौजूदा समय में सहकारी सभाओं के जरिए या ओपन मार्केट में आलू का बीज किसान खरीदते हैं।

सर्टिफाइड न होने के चलते ज्यादातर बीज में डुप्लीकेसी का डर रहता है। यही नहीं,इसके दाम भी 40 से 50 रुपए तक रहते हैं। ऊपर से जंगली जानवर रही सही कसर पूरी कर देते हैं। ऐसे में हिमाचल के कई किसान आलू की खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। हिमाचल में आलू की फसल मुख्यतः कांगड़ा के पठियार,मंडी के बरोट,शिमला के कुफरी और लाहुल स्पिति  में होती है। प्रदेश का आलू स्वाद और गुणवत्ता के चलते विश्वविख्यात है। यह चिप्स के लिए भी अव्वल माना जाता है। लेकिन राजनीतिक अनिच्छा के चलते बेशकीमती फसल अब दम तोड़ने लगी है। इस सीजन की ही बात की जाए,तो नगरोटा और पठियार क्षेत्रों में आलू बीज की 5000 हजार बोरी की मांग पूरी न होने से कई किसानों ने आलू की बिजाई नहीं की है। यही वजह है कि मौजूदा सरकार आलू बीज को किसानों के लिए फिर से बेचने का प्रयास कर रही है,ताकि किसानों को ब्लाक कार्यालय में सर्टिफाइड बीज उचित दाम पर मिल सके।

बाग सजे बर्फ गिरने को तैयार

शिमला।  इस बार दिसंबर महीने में हुई बर्फबारी से सेब की फसल को बड़ी उम्मीदें हैं। प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में बागबान अभी से बागीचों में जुट गए हैं। सेब की फसल की तैयारियों को लेकर दिव्य हिमाचल ने बागबानी विशेषज्ञ से बात की। बागबानी विशेषज्ञ डा जेपी शर्मा का कहना है कि दिसंबर माह के दूसरे सप्ताह के दौरान ही बफ र्बारी व बारिश फसलों सहित पौधों के लिए संजीवनी का काम करेगी। इस माह में बर्फबारी का होना सेब के लिए रामबाण जैसा है। आगामी दिनों में अच्छी बारिश-बर्फबारी होने की उम्मीदें जगी हैं। प्रदेश में बारिश-बर्फबारी के बाद सेब सहित अन्य गुठलीदार पौधों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स प्रक्रिया भी आरंभ हो गई है।  दूसरी ओर मौसम विज्ञान केंद्र से मिली जानाकरी के मुताबिक दिसंबर के अंत में प्रदेश में भारी बर्फबारी और बारिश की संभावना हैं। जेपी शर्मा ने कहा कि मैदानी इलाकों में सेब की अर्ली वैरायटी के लिए 200 चिलिंग आवर्स की जरूरत रहती है, जबकि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 1200 से 1400 चीलिंग आवर्स पौधों के लिए आवश्यक रहती है। तापमान सात डिग्री से नीचे आने से पौधों में चिलिंग आवर्स प्रक्त्रिया आरंभ हो जाती है। पौधों में चिलिंग आवर्स प्रक्रिया पूरी होने से जहां पौधा रोगमुक्त रहता है। वहीं अच्छे उत्पादन की भी उम्मीद बनी रहती है। दूसरी ओर कुल्लू मे विशेषज्ञों का कहना है कि बागबान स्पर किस्मों में सही काट-छांट करता है, तो महज तीन साल में ही करीब आधी पेटी सेब उत्पादन में सक्षम हो जाता है। स्पर पौधों में दूसरे साल से लेकर चार साल तक उसके बीमों की बनने की प्रक्त्रिया और पौधों की बढ़ोतरी पर खास नजर रखने की जरूरत होती है।

सुंदरनगर के जोगिंद्र ने घर पर ही तैयार कर दी गुच्छी

सुंदरनगर। 15 से 18 हजार रुपए महंगी बिकने वाली गुच्छी, जिसे किसान जंगलों से लाकर फिर बेच कर काफी मुनाफा कमाते हैं। उस गुच्छी को सुंदरनगर चांबी गांव के जोगिंद्र धीमान ने अपने घर पर उगा दिया। उनके द्वारा तैयार गुच्छी क्षेत्र में कौतूहल का विषय बनी हुई है। हमें यह तस्वीर खुद जोगिंद्र धीमान ने व्हटसऐप पर हमारे साथ सांझा की है। अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है, कुछ खास है, तो हमारे साथ सांझा कीजिए।

कांगड़ा के बलवीर सैनी का कमाल, एक फूल पर पांच-पांच गोभियां

धर्मशाला। एक फूल पर पांच-पांच गोभियां देखकर हैरान न हों। यह कमाल कर दिखाया है कांगड़ा के एक किसान ने। जिला मुख्यालय धर्मशाला के निकट इच्छी पंचायत के पटौला गांव में बलवीर सैणी 35 डिग्री तापमान में ऐसी गोभी उगाते हैं। खेती में नए-नए प्रयोग के लिए विख्यात बलवीर सैणी अब तक दर्जनों पुरस्कार जीत चुके हैं। प्रदेश का अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ उन्हें ‘किसानश्री’ अवार्ड से नवाज चुका है। खेती की किसी भी तरह की सलाह के लिए सैणी 24 घंटे किसान भाइयों की सेवा में समर्पित हैं।

माटी के लाल : यह हैं मशरूम के बादशाह

उपमंडल जवाली के गांव भनेई निवासी रविंद्र ठाकुर ने इलेक्ट्रॉनिक में इंजीनियरिंग करने के बाद भी सरकारी नौकरी पाने की विचारधारा से हटकर अपना निजी व्यवसाय चलाकर खुद रोजगार पाने के साथ-साथ कई गरीब परिवारों को रोजगार मुहैया करवाया है। रविंद्र ठाकुर भनेई में मशरूम फार्म चलाते हैं और आजीविका कमा रहे हैं। रविंद्र ठाकुर के मशरूम फार्म में 20 लोग कार्यरत हैं। रविंद्र ठाकुर ने कहा कि इंजीनियरिंग करने के बाद स्वयं भी बेरोजगार रहे और बाद में मशरूम फार्म खोला। उन्होंने कहा कि आज मशरूम फार्म में 20 लोग कार्य करके अपने परिवारों का पालन पोषण कर रहे हैं जोकि उनके लिए संतुष्टि की बात है। मशरूम फार्म में तैयार मशरूम को सीधे ही दिल्ली सहित अन्य बाजारों में भेजा जाता है। रविंद्र ठाकुर ने ऐसा करके प्रशिक्षित बेरोजगारों के लिए एक मिसाल भी कायम की है और संदेश दिया है कि हमें सरकारी जॉब की चाह छोड़कर अपना व्यवसाय करने की तरफ  ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब अगर उनको सरकारी जॉब मिल भी जाती है तो भी वह उसकी तरफ  जाने की बजाए अपने व्यवसाय पर भी ध्यान देंगे।

किसान-बागबान  के सवाल

  1. कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला से सटे बनवाला के प्रगतिशील किसान जितेंद्र का सवाल है कि आखिर हिमाचल सरकार क्यों कोल्ड स्टोर नहीं बनवा रही?

उत्तर : कृषि मंत्री रामलाल मार्कंडेय का कहना है कि प्रदेश में कोल्ड स्टोर की कमी है। प्रदेश सरकार का प्रयास है कि इस दिशा में शीघ्र प्लान बनाया जाएगा।

  1. सोलन के श्याम कहते हैं हिमाचल में लावारिस पशुओं से ज्यादा कुत्तों का खौफ बढ़ गया है। एक दशक पहले की तरह क्यों सरकार फिर से कुत्तों को मारने का अभियान नहीं चला रही?

उत्तर : पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि स्ट्रीट डॉग्स के लिए नसबंदी अभियान चलाया जा रहा है। कुत्तों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए शीघ्र बड़ी मुहिम छेड़ी जाएगी।

फोरलेन किनारे ताजी सब्जियों की महक

नेरचौकः मिनी पंजाब के नाम से मशहूर बल्ह घाटी में डडौर से लेकर नागचला तक का चार किलोमीटर का फोरलेन अब परचून की ताजा और हरी सब्जियों का केंद्र बनता जा रहा है। मिनी पंजाब में यूं तो करीब 12 सौ हैक्टेयर भूमि में किसान सब्जी का उत्पादन करते हैं और यहां की सब्जियां दूसरे जिलों में भी पहुंचती हैं, लेकिन अब डडौर से नागचला तक के चार किलोमीटर के क्षेत्र में करीब 40 हैक्टेयर भूमि में एक नया क्षेत्र सब्जी उत्पादन के रूप उभरा है। नए फोरलेन की ओर आवाजाही के चलते ही फोरलेन के करीब के गांवों के लोग सब्जी उत्पादन की ओर मुड़े हैं और इन लोगों का मकसद केवल फोरलेन के किनारे ही परचून में सब्जी बेचना है। धीरे-धीरे अब डडौर से नागचला तक के फोरलेन के किनारे जगह -जगह सड़क के किनारे सब्जियां बेचने बालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। नतीजन अब यहां स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि 15 से बीस किलोमीटर दूर मंडी और सुंदरनगर से भी लोग अपने किचन के लिए परचून की हरी और ताजा सब्जियां खरीदने के लिए फोरलेन पंहुच रहे हैं। चार किलोमीटर के इस फोरलेन में करीब दो दर्जन से ज्यादा स्थानों पर लोग परचून में सब्जियां बेच रहे हैं। लोगों का कहना है कि हर रोज यहां हर सब्जी बेचने वाला करीब 60 से 70 किलोग्राम सब्जी बेच लेता है। लोगों को यहां बाजार से कम रेट पर सब्जी मिल जाती है और सब्जियों की ताजगी को लेकर भी ग्राहक यहीं ज्यादा आना पंसद कर रहे हैं।

 हिमाचली संस्थान 3

चंबा की बूटियों का जोगिंद्रनगर खोल रहा राज

जोगिंद्रनगर की शांत वादियों में स्थापित राजकीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान भारतीय चिकित्सा पद्धति जोगिंद्रनगर हिमाचली जड़ी बुटियों व औषधीय पौधों के सरंक्षण व उनके शोध में अहम भूमिका निभा रहा है। यही नहीं यहां पर न सिर्फ दुर्लभ जड़ी बुटियों का सरंक्षण किया जा रहा है, बल्कि इनपर शोध भी हो रहा है। इसी संस्थान से जुड़े उतर भारत के 6 राज्यों पर आधारित क्षेत्रीय एंव सुगमता केंद्र जोगिंद्रनगर द्वारा भी राष्ट्रीय औषध पादक बोर्ड के साथ मिलकर किसानों को औषधीय पौधों के मूल्य संवर्धन व विपणन पर काम किया जा रहा है। संस्थान के प्रभारी डा. अरूण चंदन, डा. पंकज पालसरा और डा. सुनील पठानिया ने बताया कि संस्थान द्वारा मुख्य तौर पर दुलर्भ औषधीयों के सरंक्षण व सवर्धन के कार्य को ही बल दिया गया। वहीं प्रदेश सरकार के किसानों को जीरो बजट पर खेती करने के निर्देशों के दृष्टिगत औषधीय पौधों पर कार्य करने पर जोर दिया गया। इस दौरान गत अक्तूबर माह में चंबा जिला के दूर दराज विकास खंड तीसा व विकास खंड चंबा में संस्थान के एक दल ने सर्वेक्षण किया व इस इस सर्वेक्षण दल ने साचपास, बैरागढ़, देवीकोठी, तरेला, भंजराडू, तीसा, सालघाटी,खजियार आदि क्षेत्रों में पाए जाने वाले औषधीय पौधों के नमूने एकत्रित किए। सर्वेक्षण दल ने उन औषधीय पौधों के स्थानीय स्वास्थ्य की परंपराओं के ज्ञान का भी प्रलेखन किया है। जिस पर अनुसंधान संस्थान, भारतीय चिकित्सा पद्धति जोगिंद्रनगर शोध करेगा। इस सर्वेक्षण दल ने लगभग 50  दुर्लभ प्रजाति के पौधे एकत्रित किए। बताया गया कि  इन औषधीय पौधों के नमूनों की पहचान के बाद उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा एवं आगे अनुसंधान भी होगा।

पहले देश की रक्षा, अब खेत जगदीश

पहले सेना में सेवाएं दीं। फिर प्रगतिशील किसान, बागबान बनकर औरों के लिए प्रेरणा बन गए। अंब उपमंडल के किसान जगदीश कुछ ही समय में नई तकनीक सीख रहे खेती शुरू की और अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। नड़ोली के जगदीश और टक्का के रमन शर्मा को कार्य करते हुए कुछ ही समय बीता है, लेकिन उसके बावजूद भी उनकी कड़ी मेहनत के आगे सभी समस्याएं भी बौनी साबित हुई हैं। सेना में 24 साल तक सेवाएं देने के बाद घर में अपनी बंजर जमीन को कृषि योग्य बनाकर मिसाल कायम कर दी है। जिसके चलते कृषि विभाग की ओर से इन्हें जिला स्तर सर्वश्रेष्ठ किसान के अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। हालांकि जब तक जगदीश सेना में तैनात थे तो परिजन इस जमीन में आना भी पसंद नहीं करते थे, लेकिन उन्होंने सेना से सेवानिवृत होने के बाद इस जमीन को कृषि योग्य बना दिया। उन्होंने अपनी करीब एक एकड़ जमीन में कृषि विभाग के सहयोग से छह पोलीहाउस लगाए हुए हैं। इसमें दो पोलीहाउस में खीरा, दो में पपीता, दो में भिंडी और दो में प्याज की पनीरी लगाई हुई है। हालांकि अभी तक इन्हें खेती करते हुए कुछ ही समय हुआ है, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत के चलते एक प्रगतिशील किसान बने हैं। उनकी ओर से तैयार किए जाने वाले उत्पाद लोकल सब्जी मंडी में ही बिक जाते हैं। जिससे उनकी मासिक आय करीब 20 हजार है। वह अपने साथ अपने बेटों को इस व्यवसाय में जोड़ने पर विचार कर रहे हैं। ताकि बाहर नौकरी करने के बजाए कृषि में ही कार्य कर अपनी आर्थिकी भी सुदृढ़ कर सकें। प्रगतिशील किसान जगदीश का कहना है कि आज के युवा स्थानीय स्तर पर खेती करने के बजाय छोटी मोटी नौकरी के लिए भाग रहे हैं, लेकिन वर्तमान में युवाओं को कृषि को व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहिए। कृषि को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।  उन्होंने कहा कि किसानों को कुछ एक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए सरकार, संबंधित विभाग को उचित कदम उठाने चाहिए।

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