दिसंबर की रातों में ठंड से जमती जवानी

पालमपुर में टेरिटोरियल भर्ती के लिए पहुंचे हजारों युवाओं को पूछने वाला कोई हमदर्द नहीं

पालमपुर – बेरोजगारों की फौज उम्मीद की नई किरण के साथ पालमपुर की गली-कूचों में घूम रही है। पारा सात डिग्री के नीचे है, हवाएं बर्फानी, रात शैतानी, नागरिक और सैन्य प्रशासन की बेरुखी व्यावसायियों की लूट भरी सोच भविष्य के रक्षा प्रहरियों के हौसले तोड़ने में नाकाम हो रही है। टेरिटोरियल आर्मी की भर्ती के लिए प्रदेश ही नहीं, पड़ोसी  राज्यों के हजारों युवाआें पहुंचे हैं, पर उनके जज्बे को सलाम करने के बजाय दृष्टिकोण सबका हांसला तोड़ने वाला है। अगर ऐसा नहीं होता तो दिसंबर की खून जमा देने वाली रातों में क्या हम हजारों युवाआें को सड़क पर तो नहीं छोड़ते। बता दें कि कृषि विश्वविद्यालय के मैदान में तीन दिसंबर से शुरू हुई भर्ती युवाआें ही नहीं, पालमपुर वासियों के लिए भी आफत बन गई है। वे आधी रात को जब युवाआें को मारा-मारा फिरता देख रहे हैं, तो लोग उन्हें अपने घरों और दुकानों में आसरा दे रहे हैं। कोई रेन शेल्टर में तो कोई होली कला मंच पर, तो कोई शहर की दुकाना के बाहर कंबल ओढ़े नजर आता है। युवाआें के लिए ठहरने के लिए उचित व्यवस्था न होने के चलते क्षेत्रवासी भी व्यवस्थाआें को लेकर सवाल उठाने लगे हैं। वहीं, युवाआें को रात को ऐसे खुले आसमान के नीचे आसरा ढूंढने के लिए भटकता देख शहरवासी  इनके ठहरने में व्यवस्था करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसके तहत रोटरी क्लब, आर्य समाज मंदिर, गुरुद्वारा, राधाकृष्ण मंदिर सराय, प्रेस क्लब, रैन बसेरा में युवाआें के लिए रात को ठहरने के लिए निःशुल्क व्यवस्था की गई है।

राजनीतिक रैली होती तो खूब लगते लंगर

पालमपुर के कुछ दुकानदारों से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने ने तो यहां तक कह दिया कि यह हमारे वीर जवानों की भर्ती थी, इसलिए यहां कोई लंगर नहीं लगे। उन्होंने कहा कि किसी राजनीतिक दल को यहां पर वोट बैंक नहीं दिखता है। अगर यहां किसी राजनीतिक पार्टी की रैली होती तो यहां जगह-जगह लंगर लगे होते। युवाओं के ठहरने की व्यवस्थाआें पर उन्होंने कहा कि आर्मी द्वारा जब इस भर्ती का आयोजन किया गया था तो उन्हें इन युवकों के ठहरने के लिए भी इतंजाम करना चाहिए था। इसके लिए प्रशासन शहर के किसी बड़े मैदान में पंडाल लगाकर भी रात को ठहरा सकता था।

50 की डाइट के 90 रुपए वसूले

यहां पहुंच युवाआें को सिर छिपाने के लिए छत ही नहीं, बल्कि पेट भरने के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। युवाआें की मजबूरी का फायदा उठाते हुए शहर के ढाबा मालिकों ने युवाओं से 50 रुपए के सादे खाने के भी 90 रुपए तक वसूल किए। इस लूट को रोकने के लिए प्रशासनिक अधिकारी भी कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।

आधी रात को ही क्यों होती है दौड़

लोगों का कहना है कि सेना की किसी भी भर्ती के लिए दौड़ आधी रात को ही शुरू हो जाती है। घुप्प अंधेरा, नींद से भरी आंखों से न जमीन दिखाई देती है और न ही आसमान। कोई यहां गिरता है तो कोई वहां। इन हालातों में दौड़ सही नहीं है। सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठाने चाहिएं।

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