सोलर बाड़ लगाने की शर्तें जान लें

By: Dec 16th, 2018 12:05 am

सिर्फ 36 रुपये प्रीमियम से हो जाएगा काम

जिला के लहसुन उत्पादकों को महकमें ने फसल बीमा करवाने को कहा है। सरकार ने 14 दिसंबर तक टाइमलाइन इसके लिए तय किया था। लिहाजा, जिला के किसान बैंकों में पहुंच बीमा की औपचारिकताओं में जुट गए हैं। गेहूं व जौ का बीमा संबंधित बैंक एजेंसियों के माध्यम से करने के निर्देश विभाग ने किसानों को जारी किए हैं।  कृषि विभाग ने रबी सीजन की फसलों के बीमे के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। गेहूं और जौ का बीमा 31 दिसंबर तक करवाया जा सकता है। अधिकारियों के अनुसार जिला के किसान नजदीकी लोकमित्र केंद्र या बैंक में जाकर अपनी फसल का बीमा करवा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए कृषि  विभाग के खंड कार्यालय के विषयवाद विशेषज्ञ, कृषि विकास अधिकारी, कृषि प्रसार अधिकारी या एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारियों से संपर्क किया जा सकता है। कुल्लू के कृषि विभाग के उपनिदेशक रत्न चंद भारद्वाज ने बताया कि कृषि विभाग एक दर्जन से अधिक फसलों पर बीमा की सुविधा प्रदान कर रहा है।  बीमा करवाने वाले किसानों को प्राकृतिक नुकसान होने की दशा में मुआवजा प्रदान किया जाता है। गेहूं के लिए 36 रुपए प्रति बीघा, जौ 30 रुपए प्रति बीघा  प्रीमियम निर्धारित किया गया है।

– हीरा लाल ठाकुर, भुंतर  

एक कनाल कणक में सिर्फ 6 किलो यूरिया काफी

फसलों को ओस से बचाना है तो शाम के वक्त करें स्प्रे

हिमाचल में इन दिनों मटर, प्याज, आलू, मेथी, धनिया, गोभी व ब्रोकली आदि फसलें रोपी जा रही हैं। कई जगह ये फसलें रोपी जा चुकी हैं,तो कहीं कहीं रोपने का दौर है। इसके अलावा रबी की प्रमुख फसल को भी रोपा जा चुका है। प्रदेश में अकसर ज्यादातर किसान सर्दियों में गिरने वाली ओस से फसलों को नहीं बचा पाते। किसानों की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेश का अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ इस बार ओस से निपटने के  रामबाण तरीके सुझा रहा है। नई मैगजीन ‘अपनी माटी’ के दूसरे अंक में किसानों को वे जानकारी दी जा रही है,जो सही मायनों में उनके काम आएगी। प्रदेश भर के किसानों ने हमें सर्दियों में रोपी जा रही फसलों को लेकर प्रश्न भेजे थे। इस पर सोलन से हमारे सहयोगी सौरभ शर्मा ने डा. आरआर कौशल से बात की। डा. कौशल जिला कृषि अधिकारी हैं। उन्होंने बताया कि इन दिनों गेहूं के अलावा मटर, प्याज, आलू, मेथी, धनिया, गोभी व ब्रोकली आदि फसलें रोपी गई हैं या रोपी जा रहीं हैं। ऊना से श्याम का प्रश्न है कि गेहूं यानी कणक में पहली सिंचाई के बाद कितने कनाल में कितनी यूरिया खाद डालें? विभाग प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उर्वरक डालने की सलाह देता है। हिमाचली किसानों की दिक्कत यह है कि वे कनाल इकाई को समझते हैं। इस पर एक्सपर्ट कहते हैं कि वैसे तो  खाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही डालनी चाहिए। फिर भी 12-15 किलो यूरिया प्रति बीघा के हिसाब से डाल सकते हैं। यानी एक कनाल में 6 किलो। किसानों का एक सवाल था कि गोभी, आलू, प्याज पौधों को ओस से कैसे बचाया जाए?

इस पर डा. कौशल का कहना है कि गोभी, आलू, प्याज पर ओस का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह फसलें सर्दियों में ही लगाई जाने वाली हैं। फिर भी यदि लगता है कि इससे फसल की क्षति हो रही है तो फसल की सिंचाई सांय काल करें और पाले वाले क्षेत्र में धुंआ लगाने से पाले से फसल को बचाया जा सकता है।

गेहूं में घास है,तो फिक्र न करें

कांगड़ा,चंबा,ऊना,सोलन,सिरमौर के ज्यादातर किसानों ने पूछा था कि गेहूं में इस बार शुरुआत में ही घास ज्यादा है, इसके कैसे बचाएं?

इस पर डा. कौशल कहते हैं कि गेहूं में बिजाई के 20-25 दिन के बाद क्लोडिनाफाप 15 प्रतिशत 160 एमएल 5 बीघा में स्प्रे करें। यह तो रही घास की बात,अब खाद से संबंधित कन्फ्यूजन दूर करते हैं।

यह हैं मशरूम के बादशाह

विकास ठाकुर

सोलन शहर की नौणी पंचायत के तहत आने वाले अणु गांव के किसान ने प्रदेश के बेरोजगारों के लिए मिसाल कायम की है। किसान विकास ठाकुर ने एमसीए की शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 2011 में 200 मशरूम के बैग से कार्य शुरू किया था। अब वह चार हजार बैग लगाकर प्रत्येक माह करीब 45 क्ंिवटल मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। वर्ष भर में वह इस कार्य से पांच से सात लाख रुपए तक अर्जित कर लेते हैं। विकास ने पीटीयू से एमसीए की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह कभी नौकरी के पीछे नहीं भागे। विकास ने बहुत कम बजट में मशरूम का उत्पादन किए जाने का निर्णय लिया। मात्र तीस हजार रुपए का निवेश करके 200 मशरूम के बैग से काम शुरू किया, लेकिन अब यह काफी आगे बढ़ गया है। बहरहाल विकास समूचे किसानों लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं।

-मोहिनी सूद, सोलन

किसान-बागबान के सवाल

1.आलू का बीज किसानों को 40 रुपए किलो मिला। आखिर हिमाचल सरकार आलू का बीज क्यों नहीं बेचती ?

2.खेती के उपकरणों पर गुडस टैक्स क्यों है? साथ ही जीएसटी क्यों लगाया जा रहा है?

3.क्या सब्जी मंडी में किसान सीधे अपना माल नहीं बेच सकते क्या?

आखिर दलालों से छुटकारा कब मिलेगा?

क्या आप जानते हैं

– हिमाचल का कृषि विभाग 36 सरकारी फार्मों में किसानों के लिए बीज पैदा करता है।

– इन फार्मों में साल के भीतर 3500 से लेकर 4000 क्विंटल तक बीज तैयार किया जाता है। इसमें अनाज,दालें,सब्जियां प्रमुख हैं।

– इस बीज के अलावा 9000 क्विंटल प्रमाणित बीज अलग से बांटे जाते हैं।

– हिमाचल में रासायनिक खाद की आपूर्ति हिमफेड और सहकारी समितियों द्वारा की जाती है।

– उर्वरक में 12:32:16,10:26:26,15:15:15 पर 1000 तक सबसिडी दी जाती है।

– कृषि विभाग के 12 आलू विकास केंद्र हैं। इन केंद्रों में बीज तैयार किया जाता है। नौणी यूनिवर्सिटी से वर्ष 2017-18 में विभाग में 5 पी. एच. डी. छात्रों ने अपनी डिग्रियां पूरी की है।

हमें भेजें फोटो

अगर आपने अपने  खेत या बाग में कुछ हटकर उगाया है, तो तत्संबंधी जानकारी हमसे साझा करें। अपनी उन्नत खेती, सब्जी या फलोत्पाद की फोटो शेयर करें। खेती-बागबानी से जुड़े किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा या फिर सरकार तक बात नहीं पहुंच रही, तो हमें बताएं।

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खूब बर्फ गिरी अब ऐसे प्लान बनाएं बागबान

ताजा हिमपात के बाद पारा गिरने से सेब के चिलिंग आवर्स शुरू  हो गए हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में 1400 जबकि मैदानी क्षेत्रों में 200 आवर्स जरूरी हैं। बागबानी एक्सपर्ट डा. जेपी शर्मा ने कहा कि प्रूनिंग के लिए जनवरी तक इंतजार करना चाहिए।ऐसे में बागबान बागीचों के लिए अपना प्लान बना सकते है।

सेब के लिए रामबाण

सेब के चिलिंग आवर्स के लिए तापमान सात डिग्री से नीचे चाहिए और विशेषज्ञों के अनुसार ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इतनी ठंड पड़ी है जिससे सेब व दूसरे गुठलीधार फलों को चिलिंग आवर्स मिलने शुरू हो गए हैं। सेब के पौधों में सीजन के बाद कैंकर रोग का संक्रमण हो गया था। ऐसे में बारिश-बर्फबारी से  पौधों में लगे रोग नष्ट हो जाएंगे। बहरहाल बागबान अपना आगामी प्लान सेट कर सकते हैं।

– टेकचंद वर्मा, शिमला

गर्म इलाके में सेब के पौधों के लिए 200 चिलिंग आवर्स की आवश्यकता

बागबानी विभाग के विशेषज्ञ डा. जेपी शर्मा ने कहा कि मैदानी इलाकों में सेब की अर्ली वैराईटी के लिए 200 चीलिंग आवर्स की जरूरत रहती है, जबकि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 1200 से 1400 चीलिंग आवर्स पौधों के लिए आवश्यक रहते हैं। उन्होंने बताया कि तापमान सात डिग्री से नीचे आने से पौधों में चीलिंग आवर्स प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।

प्रूनिंग के लिए जनवरी व फरवरी माह उपयुक्त

सेब के पौधों में प्रूनिंग के लिए जनवरी व फरवरी माह का समय उपयुक्त रहता है। बागबानी विशेषज्ञ डा. जेपी शर्मा ने कहा कि प्रूनिंग के लिए जनवरी के बाद का समय बेहतर रहता है। प्रदेश में मौसम ने करवट ले ली है। इस दौरान पौधों में चूने का लेप लगाना पौधों के लिए लाभकारी होगा।

नौणी यूनिवर्सिटी दे रही 80 हजार पौधे

हिमाचली संस्थान 2

फल विज्ञान विभाग ने कीवी फल की 12 विदेशी किस्मे मंगवाई

नौणी के फल विज्ञान विभाग पिछले कई वर्षों से बेहतरीन कार्य कर रहा है। विभिन्न शीतोष्ण फलों की नई किस्मों के  मूल्यांकन के बाद सेब में जैरोमाइन, रेडकैंप वाल्टोड तथा रैडलम गाला को निचले क्षेत्रों के लिए तथा रेडविलोक्स, सुपरचीफ व गेल गाला को ऊपरी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया गया। इसके अतिरिक्त प्लम में कंकासका, आडू में स्नोवाइट तथा अखरोट में लारा किस्मों को अनुमोदित किया गया है। अखरोट की 7 विदेशी किस्मों, जिनमें से 3 लेटेरल फल देने वाल चांडलर, लारा व हावर्ड और 4 टर्मिनल फल   देने वाली  फर्नेट , फार्नार्नोर, माइलीनीज और फनक्वेट किस्मों के पौधों का मूल्यांकन किया गया तथा प्रारंभिक अध्यननानुसार चोंडलर और होवर्ड किस्मों को बेहतर पाया गया।

-विभाग से हर वर्ष शीतोष्ण फलों के 70-80 हजार नर्सरी पौधों बागबानों को उपलब्ध करवाए जाते हैं।

-सेवा में सघन बागबानी पर अनुसंधान कार्य किया जा रहा है। इसके लिए प्रदेश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में स्थापित क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्रों पर ट्रायल लगाए गए हैं। प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार जैरोमाइन किस्म को एम-9 मूलवृंत पर तैयार करके तथा टाल स्पिंडल विधि से सिधाई करके 4000 पौधे प्रति हैक्टेयर लगाने से तीसरे वर्ष 20-30 मिट्रिक टन उत्पादकता आंकी गई तथा फलों की गुणवता भी अच्छी पाई गई। फल विज्ञान विभाग में कीविफल की 12 नई किस्में विदेशों से मंगवाई गई है, जिनका मूल्यांकन कार्य प्रगति पर है। इन किस्मों से कीविफल की नई प्रजाति विकसित करने हेतू कार्य भी विश्वविद्यालय में चल रहा है। कीविफल की एलिसन किस्म मेें फल आकार व गुणवता बढ़ाने हेतु प्रतिशाखा 6 फल लेने तथा सीपीपीयू नामक बृद्धि नियामक 5 मि.ली. प्रति लीटर की दर से प्रयोग करने पर अच्छी गुणवता व बड़े आकार में फल लिए जा सकते हैं।

– मोहिनी सूद, नौणी

मौसम का मोहताज नहीं हरिमन का सेब

बर्फ  से लकदक पहाडि़यों में उगने वाला सेब अब 45 डिग्री के तापमान में भी उग रहा है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की घुमारवीं तहसील के गांव पन्याला के बागबान हरिमन शर्मा की हैरतअंगेज करने वाली खोज से तैयार हुई सेब की वेरायटी एचआरएमएन-99 गर्म इलाकों की तपती धरती के मुफीद हैं। जिसकी फसल आज देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में लहलहा रही है। गर्म जलवायु में उगने वाली हरिमन शर्मा की तैयार सेब की वेरायटी एचआरएमएन-99 की दिसंबर-जनवरी माह में ग्राटिंग करते हैं। इस वेरायटी के पौधों में फरवरी माह में अंकुर फूट जाते हैं। पर परागत सेब जुलाई से सितंबर तक मिलता है, जबकि गर्म इलाके में एचआरएमएन-99 सेब जून में तैयार हो जाता है। हरिमन शर्मा लोकल मार्केट में ही सेब बेचते हैं। जबकि देशभर के 29 राज्यों से आने वाली सेब के पौधों की डिमांड को कुरियर के माध्यम से भेज रहे हैं। इस वेरायटी के सेब आज देशभर में अच्छी पैदावार दे रहे हैं। जिससे इस वेरायटी के पौधों की डिमांड दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। प्रगतिशील बागवान हरिमन शर्मा अब तक लगभग साढ़े चार लाख सेब के पौधे देशभर में बेच चुका है। हरिमन शर्मा ने 1999 में एक बीज से सेब का पौधा तैयार किया। पहले प्लम की ग्राटिंग की। सफलता के बाद सेब की पौध पाला पर ग्राटिंग की। जोकि आकार, गुणवत्ता और स्वाद में पूरी तरह से परंपरागत सेब की तरह रहा। किसी ने नहीं सोचा था की बर्फीली पहाडि़यों पर तैयार होने साला सेब निचले हिमाचल प्रदेश में आम और अनार के साथ पैदा हो सकता है। जहां का तापमान 40 से 46 डिग्री होता है। तमाम तरह के परीक्षण पूरे होने के बाद वर्ष 2006 में गर्म जलवायु वाले इलाकों में ट्रायल शुरू किया गया था।

-राजकुमार सेन, घुमारवीं


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