हिमाचल में गन्ना उगाना गुनाह

By: Dec 30th, 2018 12:05 am

हिमाचल में एक शुगर मिल तक नहीं बनवा पाई सरकारें, पंजाब में लुट रहे पांवटा साहिब,गगरेट और मीलवां के हजारों किसान

भले ही हमारी सरकारें अपना एक साल पूरा होने पर भी जोरदार जश्न मनाती हों,लेकिन सच यह है कि प्रदेश में किसान की हालत बहुत खराब है। खासकर गन्ना उत्पादकों को पूछने वाला कोई नहीं है।  ‘दिव्य हिमाचल’ की नई पेशकश के ‘अपनी माटी’ तीसरे अंक में हमने गन्ना किसानों की पड़ताल की,तो सामने आया कि सरकारों की बेरुखी के चलते कई किसान गन्ने की खेती से तौबा कर चुके हैं, लेकिन अब भी हजारों लोग इस खेती को कर रहे हैं,आखिर पापी पेट का सवाल है। हिमाचल में गन्ने की खेती मुख्यतः सिरमौर जिला के पांवटा,ऊना के अंब,गगरेट और हरोली व कांगड़ा में पंजाब से सटे इंदौरा में होती है। किसानोें की प्रमुख समस्या मार्केटिंग की है। साल में गन्ने की दो फसलें होती हैं। पांवटा साहिब और दून में सालाना करीब 1500 हेक्टेयर भूमि पर पांच लाख क्विंटल गन्ने का उत्पादन होता है। इसमें करीब अढ़ाई लाख क्विंटल गन्ना पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के डोईवाला शुगर मिल में जाता है। बाकी की खपत पांवटा साहिब में गुड बनाने और गन्ना जूस के रूप में होती है। शुगर मिल न होने से जहां किसानों को उचित दाम नहीं मिलते,वहीं मार्केटिंग के लिए भी ठोकरें खानी पड़ती हैं। दूसरी ओर ऊ ना जिला में हालात इससे भी गंभीर हैं। जिले में कभी सात हजार कनाल पर गन्ने की खेती की जाती थी जो कि अब सिकुड़ कर पांच सौ कनाल तक पहुंच गई है। कई किसानों ने खेती छोड़ दी। समस्या मार्केटिंग की है। वर्ष 2003 में जिले में शुगर मिल का सब्जबाग भी दिखाया पर मिल सपना बनकर रह गई। राष्ट्रीय स्वतंत्र किसान मोर्चा के अध्यक्ष सीता राम ठाकुर का कहना है कि शुगर मिल बनने से गन्ने की खेती आगे बढ़ सकती है। उधर कृषि मंत्री राम लाल मार्कडेय का कहना है कि अभी गन्ना मिल खोलने का कोई विचार नहीं है। भविष्य में इस ओर प्रयास किए जाएंगे।

हिमाचली नेताओं को नजर नहीं आते मंड के 37 गांव

कांगड़ा जिला में पंजाब सीमा से सटे मंड इलाके के 37 गांवों के  973 किसान गन्ना उगाते हैं। ये किसान 1991-92 से इंडियन सूकरोज लिमिटेड मिल मुकेरियां (पंजाब) से अग्रीमेंट के तहत गन्ने की  सप्लाई करते हैं। कैन कमिशनर पंजाब चंडीगढ़ द्वारा इंडियन सूकरोज़ लिमिटेड मिल मुकेरियां को मंड एरिया से  गन्ना खरीदने के आदेश जारी किए थे और इंडियन सूकरोज लिमिटेड मिल मुकेरियां द्वारा हिमाचल के मंड एरिया के ठाकुरद्वारा और मीलवां में दो डिवीजन आफिस खोल कर हिमाचल के 37 गांवों का 4298  एकड़ गन्ना बांड किया हुआ है तथा अनुमानित 43 करोड़ रुपए का गन्ना इस सीजन में किसान सप्लाई को तैयार बैठे हैं।  हिमाचल सरकार को शायद यह पता नहीं है कि मिल पंजाब में होने के कारण पंजाब के गन्ना उत्पादकों को 285 रुपए प्लस 25 रुपए सबसिडी सहित 310 रुपए प्रति क्विंटल मिलते हैं,जबकि हिमाचलियों को महज 285 रुपए। अब बताइए, कौन करेगा ऐसी खेती।

यह बात सही है कि किसान गन्ने की खेती से विमुख हुए हैं लेकिन वे जीरो बजटिंग खेती के तहत गन्ने का उत्पादन करें तो लाभ मिल सकता है। ऊना जिले में एक हजार मीट्रिक टन गन्ना उत्पादन का अनुमान है।

– सुरेश कपूर, उपनिदेशक कृषि विभाग

खेती के टूल्स पर लग रहे टैक्स पर मंत्री जी नहीं दे पाए जवाब

खेती के उपकरणों पर गुडस टैक्स क्यों है। साथ ही जीएसटी क्यों लगाया जा रहा है। इन सवालों का फिलहाल हिमाचल सरकार के पास कोई सटीक जवाब नहीं है। कृषि मंत्री डा रामलाल मार्कंडेय का कहना है कि खेती के सभी उपकरणों पर जीएसटी नहीं लगाया गया है। सिर्फ  टै्रक्टर पर ही जीएसटी लगाया गया है। जहां तक गुडस टैक्स की बात है इस पर अभी वह कुछ नहीं कहना चाहेंगे। अब सवाल यह कि क्या ट्रैक्टर छोटा मसला है। हिमाचल में लगभग हर दूसरे-तीसरे किसान-बागबान के पास पावर टिल्लर या वीडर है। यही तो वे उपकरण हैं,जिनके सहारे किसान -बागबान अपना व्यवसाय चला रहे हैं।

जयराम भी कर्ज माफी की हिम्मत दिखाएं

तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों में मिली जीत के बाद कांग्रेस ने कर्ज माफी का वादा पूरा किया है। ऐसे में हिमाचल में कर्ज में डूबे किसानों और बागबानों का कहना है कि उनका कर्ज भी माफ होना चाहिए,ताकि वे एक नई शुरूआत कर सकें। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भी कर्ज माफी जैसा फैसला लेना चाहिए। हिमाचल किसान एवं बागबान कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश नेगटा ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से बागबानों के कर्जे को माफ  करने की मांग की है। आज प्रदेश के किसानों के पास बैंक से लिए गए कर्ज को चुकाने का कोई साधन नहीं है। कर्ज माफी न होने की स्थिति में उन्हें आत्महत्या तक का रास्ता न अपनाना पड़े।

किसानों को पेमेंट नहीं कर रहे आढ़ती,अब तक 300 शिकायतें

शिमला। हिमाचल में किसानों और बागबानों से खुली लूट हो रही है। बागबानों को आढ़ती अदायगी नहीं कर रहे। किसान संघर्ष समिति के सचिव संजय चौहान का आरोप है कि एपीएमसी के पास 300 बागबानों ने शिकायतें दर्ज करवाई हैं,मगर एक माह बाद भी कार्रवाई नहीं हुई है। कई आढ़तियों के तो लाइसेंस तक रिन्यू नहीं हुए हैं। आखिर सरकार कर क्या रही है।

किसान-बागबानों के सवाल

– ओलावृष्टि से किसानों को भारी नुकसान हुआ था, लेकिन सरकार और प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाही नहीं की गई थी?

– किसानों की बंदूक के लाइसेंस रिनिवल की भारी फीस वृद्धि  के बारे में ग्राम पंचायत कोठो को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा  सहकारिता  मंत्री डा. राजीव  सेहजल  जी द्वारा दिया जवाबी  पत्र किसानों को बंदूक लाइसेंस  रिनिवल की भारी फ वृदि  को वापिस लिया जाए

– बंदोबस्त हुए लगभग 110 साल हो गए हैं, जो किसानों की मुख्य समस्या बन गया है?

– विकास ठाकुर, उपप्रधान कसेठी पंचायत सोलन ब्लॉक

क्या आप जानते हैं

– हिमाचल में एक साल के भीतर साढ़े 16 लाख टन सब्जी पैदा होती है।

-सोलन, पालमपुर, मंडी में बीज परीक्षण लैब हैं।

-हमीरपुर, सुंदरनगर, शिमला में उर्वरक लैब हैं।

साल में 5 लाख तक कमा रहे हैं पराड़ा के युवा

जहां आज का युवा कृषि से दूर भागकर रोजगार की तलाश में भटक रहा है। वहीं जिला सिरमौर के नाहन विकास खंड के अंतर्गत आने वाले सैणधार के पराड़ा गांव के 40 घरों के युवा कृषि को अपनी आजीविका बनाकर आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती की ओर भी मूढ़ गए हैं। सैणधार के पराड़ा के गांव के 40 घरों के किसान यहां पर नकदी फसलें टमाटर, लहसुन, शिमला मिर्च, फूलगोभी, मटर, फ्रांसबीन का आर्गेनिक उत्पादन कर वर्ष भर में एक फसल से तीन से पांच लाख रुपए तक उत्पादन कर रहे हैं, जबकि पराड़ा के किसान दालों में राजमा, उड़द, बालडी इत्यादि पारंपरिक खेती को भी बखूबी कर रहे हैं। वहीं प्रदेश सरकार द्वारा प्रोमोट की जा रही प्राकृतिक खेती को पराड़ा के किसानों ने सबसे पहले अपनाया है। पराड़ा गांव के अग्रणी किसान युवा अर्जुन अत्री ने बताया कि पराड़ा में प्रत्येक घर से युवा और किसान अच्छी आमदनी के साथ कृषि कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नाहन विकास खंड के तहत पराड़ा गांव को प्राकृतिक खेती में निरीक्षण पर रखा गया है। कृषि विभाग पराड़ा गांव की प्राकृतिक खेती को लगातार बारीकी से प्राकृतिक खेती प्रक्रिया को आकलन कर रहे हैं। अग्रणी किसान अर्जुन अत्री, हरनाम सिंह, गुमान सिंह, रमेश, जगदर्शन अत्री, सहदेव सिंह, शिवदेव सिंह इत्यादि ने बताया कि पराड़ा में किसानों ने सिंचाई के लिए पूरे गांव में 20 से अधिक सिंचाई के टैंक का निर्माण किया हुआ है। नकदी फसलों में टमाटर, लहसुन, शिमला मिर्च, फूलगोभी, मटर, बीन इत्यादि को खेतों से ही व्यापारी यहां पर बुक कर लेते हैं। अर्जुन अत्री ने बताया कि प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को यहां पैदा हुई पारंपरिक दालें, राजमा, उड़द इत्यादि कृषि विभाग की प्रदर्शनी में इतनी पसंद आई।

– सुभाष शर्मा, नाहन

शुद्ध चाहिए तो फिर लाना होगा जंगली

डा. तारा सेन ठाकुर

लेखिका मंडी कालेज में वनस्पति शास्त्र की विभागाध्यक्ष हैं

कहते हैं सेहतमंद और खुश रहने के लिए हमारे भोजन का सबसे बड़ा रोल है,लेकिन मौजूदा समय में फल-सब्जियों और अनाज में रसायन और फर्टिलाइजर का ज्यादा इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि आर्गेनिक खेती की बात हो रही है। मेरा मानना है कि हमें अपने दैनिक भोजन में कुछ ऐसी चीजों को भी शामिल करना होगा, अपने आप उगी हों यानी खेती से आई हों।  हमारे प्रदेश में अभी भी बहुत सी सब्जियां, फल आदि जंगलों से आते हैं। इनमें कोई केमिकल नहीं होता। आइए,इनमें दो चीजों को जान लेते हैं।

खोंखना

सर्दियों के अंत में खोंखना के पौधे सड़कों किनारे और खेत खलिहानों में दिखते हैं। यह एक अल्पकालिक मौसमी पौधा है, जो लगभग दस सप्ताह में अपना जीवन चक्र पूरा करता है। पत्तियों को  लोग साग  बना कर खाते हैं। यह मौसम में केवल 2-3 बार ही खाया जाता है। पर यह साग बहुत पौष्टिक होता है। खोंखना की पत्तियों में लगभग 6ः प्रोटीनए 0ण्14ः वसाए 9 ण्5ः कार्बोहाइड्रेट, 1.4ः खनिज तत्त्व होते हैं तथा ये विटामिन ए, सी, और ई से भरपूर ।

पड़याला

पड़याला एक शीतकालीन मौसमी पौधा है, जो 4300 मीटर की ऊंचाई तक उगता है। इसकी पत्तियां और फूल साग बनाने के काम आते हैं। यह सलाद के रूप में कच्चा भी खाया जाता है। शरीर पर पड़याला का शरीर पर बहुत ठंडा प्रभाव होता है। यह किसी भी प्रकार की खुजली और त्वचा के संक्रमण को दूर करने में भी फायदेमंद बताया गया है। प्रदेश सरकार अगर इस लाजवाब पौधे का सरंक्षण करे, तो यह बड़ा फायदेमंद साबित होगा।

नोट : अगर आपके पास भी कोई शोध या फिर कोई खास औषधि व 

फल-सब्जी पर हटकर जानकारी है,तो हमें जरूर भेजें।  हमें फैक्स करें  01892-264600

नींबू के 120 बूटे लगा पछता रहे पठानिया

ऊना। करीब तीन साल पूर्व दौलतपुरचौक के बागबान अशोक कुमार पठानिया ने निजी नर्सरी के एंजेट से नींबू के करीब 120 पौधे खरीदे थे।  उन्हें आश्वासन दिया गया था कि ये पौधे करीब दो साल में फ्रूट देंगे,लेकिन तीन साल बाद भी फ्रूट नहीं मिला। उस समय ही उन्हें 20 हजार रुपए खर्च करने पड़े थे। अब तीन साल की लेबर उन्हें कौन देगा। वह कहते हैं कि अगर वह इस जमीन पर पारंपरिक फसल ही उगाते,तो हजारों की कमाई होनी थी,लेकिन निंबू लगाकर अब पछतावे के अलावा कुछ नहीं ,क्योंकि सरकार तो कभी ऐसे बागबानों का हाल पूछती नहीं। उन्होंने कहा कि वह  संबधित नर्सरी के एंजेट से भी  संपर्क साध चुके हैं, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। दूसरी ओर उद्यान विभाग ऊना के उप निदेशक केके भारद्वाज ने कहा कि इस बागवान द्वारा निजी कंपनी से यह पौधे खरीदे गए हैं।  फिर भी उद्यान विभाग के अधिकारी उनके प्लांटस का निरीक्षण करेंगे। ताकि बागवान की समस्या का समाधान हो सके। वहींए निजी नर्सरी से भी इस बारे में जानकारी हासिल की जाएगी।

– अनिल पटियाल, ऊना

माटी के लाल

सरहद पर 26 साल दिया पहरा, अब सहेजा मशरूम

ऊना उपमंडल के तहत टक्का निवासी रमन शर्मा बीएसएफ  में 26 साल तक सेवाएं देने के बाद अब मशरूम उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। करीब 27 मरले भूमि में इन्होंने बागबानी विभाग के सहयोग से मशरूम प्लांट लगाया हुआ है। जिससे उन्हें बेहतर आय भी प्राप्त हो रही है। मशरूम प्लांट लगाने के लिए उन्हें करीब 25 लाख रुपए की राशि खर्च करनी पड़ी। उनके द्वारा तैयार किया गया मशरूम लोकल मंडी में ही बेचा जाता है। मशरूम की बेहतर पैदावार हो रही है। करीब 125 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बाजार में उनके द्वारा तैयार की गई पैदावार बिक रही है। हालांकि रमन शर्मा ने ट्रायल बेस पर वर्ष 2006 में ही मशरूम उत्पादन शुरू कर दिया था। जिसके चलते उन्होंने बीएसएफ  से सेवानिवृत होने के बाद मशरूम प्लांट लगाने का निर्णय लिया। बागबान रमन शर्मा का कहना है कि मशरूम प्लांट लगाने के लिए उन्हें कई बार कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। कभी आर्थिक तौर पर तो कभी अन्य समस्याएं थी, लेकिन उन्होंने मन बना लिया था कि वह मशरूम उत्पादन करेंगे। उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। युवा वर्ग चाहे शिक्षा में मेहनत करें चाहे बागबानी में, लेकिन बिना मेहनत के किसी भी क्षेत्र में सफलता नहीं मिल पाती है।

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