अपनी नर्सरी अपना सेब

By: Jan 6th, 2019 12:07 am

हिमाचल की नर्सरियों में 2023 तक तैयार होंगे 52 लाख रूट स्टाक, बागबारनों को सबसिडी पर देगी तैयार

न्यूजीलैंड और  नीदरलैंड की दर्ज पर नर्सरियों को संवारने की तैयारी

हिमाचल के बागबानों को अब अपनी नर्सरियों से सेब की पौध मुहैया करवाई जाएगी। प्रदेश की नर्सरियों में 2023 तक 52 लाख सेब के रूट स्टॉक तैयार किए जाएंगे। इसके दो बड़े फायदे होंगे। एक तो बागबानों को ये पौधे सबसिडी पर सस्ते मिलेंगे,वहीं विदेशी रूट स्टाक पर निर्भरता भी कम होगी। मौजूदा समय में न्यूजीलैंड और नीदरलैंड दो ऐसे देश हैं,जहां खुद रूट स्टाक तैयार किया जाता है। इसी तर्ज पर अब हिमाचल में अनूठी मुहिम शुरू हुई है। ध्यान रहे कि पूर्व में विदेशों से बड़े पैमाने पर रूट स्टॉक मंगवाए गए, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत पहुंचते ही सूख गए। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने राज्य की ही नर्सियों से लाखों रूट स्टॉक तैयार करने का प्रस्ताव तैयार किया गया। हिमाचल की भौगोलिक स्थितियां व जलवायु उन देशों से भिन्न हैं, जहां से इस प्रकार के रूट स्टॉक मंगवाए जाते रहे हैं। जबकि प्रदेश की नर्सरियों में यहां की जलवायु के अनुकूल  रूट स्टॉक तैयार करने की बेहतर संभावना मौजूद है। फिलहाल महकमे ने अभी से ही कवायद शुरू कर दी है। वर्ष 2023 तक मुख्य रूप से सेब, नाशपाती जैसे सम-शीतोष्ण पौधों के रूट स्टॉक तैयार किए जाने हैं। इसके साथ-साथ प्रदेश सरकार ने परामर्शी एजेंसी से राज्य के 7000 से 9000 फुट अथवा इससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब की पैदावार के लिए रूट स्टॉक की किस्मों का पता लगाने के लिए कहा है।

-टेकचंद वर्मा, शिमला

फील्ड में जाना होगा बागबानी अधिकारियों को

प्रदेश सरकार ने विभाग के सभी विषय विशेषज्ञ व बागबानी विकास अधिकारियों को  फील्ड में जाकर किसानों व बागबानों से सीधा संपर्क करने के निर्देश दिए हैं। निर्देश हैं कि परामर्शी एजेंसी के अधिकारी भी फील्ड में जाएं और बागबानों को आवश्यक प्रशिक्षण व परामर्श प्रदान करें। इसकी पल-पल की रिपोर्ट बागबानी मंत्री को देनी होगी।

सात महीने में तैयार होने वाली स्पेशल हल्दी

कब से उगा रहे हैं?

प्रारंपारिक खेती करने में कुछ नया करने की चाहत थी इसी वर्ष जून 2018 में बुआई की है।

कितने क्षेत्र में?

40 किलो बीज था लगभग आधा विगा में।

बीज कहां से आया?

बीज की उपलब्धता कांगड़ा के सोरेना गांव के रिटायर्ड कर्नल श्री पीसी राणा जी के सौजन्य से हुआ है, जो  स्वयं इसे महाराष्ट्र से कांगड़ा लेकर आए थे।

आप क्या चाहते हैं?

मैं चाहता हूं कि ऐसे किसान भाई जो पारंपारिक खेती से किसी न किसी वजह से हताश हो चुके हैं तथा अपनी भूमि को खाली छोड़ रहे हैं वह हमारे साथ इस जैविक खेती के अभियान में जुड़ सकते हैं तथा अपने  आर्थिकी को मजबूत कर सकते हैं।

सरकार की तरफ से कोई सहायता

सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है परंतु आने वाले समय में उम्मीद है। सरकार से मेरी मुख्य मांग यह है कि किसानों के खेत जो सोना उगल सकते हैं परंतु बिना सिंचाई की व्यवस्था से कुछ भी संभव नहीं है। मेरे गांव में बहुमूल्य जमीन है। परंतु सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। सरकार की तरफ से किसानों को दी जाने वाली मदद सराहनीय है परंतु प्रत्येक किसान उस मदद को प्राप्त करने के लिए निवेश नहीं कर पाता। सरकार से अनुरोध है कि सिंचाई व्यवस्था की जाए। मैंने इस वर्ष से अपने खेतों में कैमिकल खाद का प्रयोग पूरी तरह से निषेद किया गया है। तथा अपने किसान भाइयों से भी यही उम्मीद करता हूं।

-जसवीर सिंह, सुंदरनगर

सूक्ष्म सिंचाई योजना से लहराएगी खेती

 राहुल कटोच उपमंडलीय भूसरंक्षण अधिकारी

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पानी से खेत ऊंचाई पर स्थित है। ऐसी जगहों पर किसानों को सिचांई करने की कोई सुविधा नहीं मिलती थी जिसके कारण किसानों को वर्षा पर अधारित रहना पड़ता है, लेकिन अब ऐसी जगहों पर भी पानी पहुंचाने के लिए सरकार की सूक्ष्म सिचांई योजना कारगर सिद्ध होेगी। इस योजना के तहत उर्वरकों की लागत में भी 20 से 30 फीसदी की कमी आ जाती है। फसल को एक समान पानी और उर्वरक के पहुंचने से पदौवार में बढ़ौतरी के साथ-साथ गुणवता भी ज्यादा होती है।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ

इस पद्धति से कम पानी में अधिक क्षेत्र में सिंचाई कर कृषि उत्पादन संभव है। एक समान जल वितरण होता है तथा उत्पादन ज्यादा होता है। पानी देने के लिए नालियां बनाने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे की अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है। पोषक तत्वों, पानी एवं हवा का पौधों की जड़ों में समुचित समिश्रण संभव होने से पैदावार एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है। केवल जड़ों में पानी देने से खरपतवार नियंत्रण में कम व्यव होता है। इस सिंचाई प्रणाली का प्रयोग मुख्य रूप से बागीचों में होता है। इसमें लैटरल पर पौधों की दूरी के अनुसार छेद करके ड्रिपर को लगा देते हैं ड्रिपरो से जल बूंद-बूंद के रूप में पौधों की जड़ों के आसपास गिरता है। इसमें पानी का डिस्चार्ज पर ड्रिपर 2-20 लीटर तक प्रति घंटा होता है।

क्या है सूक्ष्म सिंचाई योजना में

सूक्ष्म सिंचाई योजना में  ड्रिप सिंचाई प्रणाली के माध्यम से किसान अपनी फसल को नियंत्रित मात्रा में पानी देकर ज्यादा पैदावार कर सकता है। इस योजना के तहत विभाग सूक्ष्म स्प्रिंकल सिस्टम, मिनी स्प्रिंकल सिस्टम, पोर्टेवल स्प्रिंकल सिस्टम, सेमि पोर्टेवल स्प्रिंकल सिस्टम और लार्ज वालियम सिस्टम मुहैया करवाता है। इसके तहत किसान को 80 फीसदी अनुदान प्रदान किया जाता है। साथ ही सरकार पानी के लिए वोरवेल करने और टैंक का निर्माण करने के लिए भी 50 फीसदी अनुदान मुहैया करवाती है।

इस योजना का लाभ उठाने को  जरूरी दस्तावेज

इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसान के पास कम से कम आठ कनाल जमीन होनी अनिवार्य है। इसके बाद किसान को अपनी जमीन का पर्चा, आधार कार्ड, बैंक अंकाऊट डिटेल और पासपोर्ट साईज फोटोग्राफ देना जरूरी है।

किसान कहां करें आवेदन

सूक्ष्म सिंचाई योजना का लाभ उठाने के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि अधिकारी व कृषि विकास अनुभाग भूसरंक्षण अधिकारी को संपर्क कर सकते हैं।

– नितिन राव, धर्मशाला

किसान-बागबानों  के सवाल

 प्याज की पनीरी सुपर फ्लाप

सोलन के राजेंद्र का कहना है कि इस बार प्याज की सरकारी पनीरी पूरी तरह से फ्लाप साबित हुई है। कांगड़ा के सुरेंद्र,चंबा के धीरज कहते हैं कि उन्होंने बड़ी उम्मीद से प्याज की पनीरी दी थी,जो बिलकुल नाकाम साबित हुई है।

कांगड़ा जिला के पठियार निवासी जोगिंद्र, बैजनाथ के रोहित, जवाली के ओम कहते हैं कि उन्हें इस बार प्याज का बीज पूरा नहीं मिल पाया, जो बीज मिला, वह भी 45 से 50 रुपए के बीच में। जब आलू तैयार होता है, तो दाम 5 रुपए से ज्यादा नहीं मिलता। आखिर सरकार कर क्या रही है।

शुद्ध चाहिए तो फिर लाना होगा जंगली

डा. तारा सेन ठाकुर

लेखिका मंडी कालेज में वनस्पति शास्त्र की विभागाध्यक्ष हैं

कहते हैं सेहतमंद और खुश रहने के लिए हमारे भोजन का सबसे बड़ा रोल है,लेकिन मौजूदा समय में फल-सब्जियों और अनाज में रसायन और फर्टिलाइजर का ज्यादा इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि आर्गेनिक खेती की बात हो रही है। मेरा मानना है कि हमें अपने दैनिक भोजन में कुछ ऐसी चीजों को भी शामिल करना होगा, अपने आप उगी हों यानी खेती से आई हों।  हमारे प्रदेश में अभी भी बहुत सी सब्जियां, फल आदि जंगलों से आते हैं। इनमें कोई केमिकल नहीं होता। आइए, इनमें दो चीजों को जान लेते हैं।

तरड़ी

तरडी हिमाचल प्रदेश के मध्य-पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में पाई जाने वाली एक बहुत ही पतली जंगली बेल है और अपने मूल कंदों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। मंडी क्षेत्र में शिवरात्रि के आसपास तरडी के कंदों का उपयोग लोग सब्जी और फलाहार के रूप में करते हैं। चूंकि इन कंदों की मिट्टी में बहुत गहराई तक जाने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए तरडी को खोद कर जमीन से निकालना काफी मेहनत का काम है। शायद यही कारण है कि मंडी में तरडी का भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलो रहता है।

दरेघल

दरेघल हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय जंगली भोजनों में से एक है। दरेघल 10 मीटर तक उगने वाली एक सदाबहार बारहमासी बेल है। जिसका कंद एक स्वादिष्ट मौसमी व्यंजन के रूप में खाया जाता है। कच्चा कंद थोड़ा कड़वा होता है, लेकिन सब्जी बनाने से पहले काट कर कुछ देर ठंडे पानी में डुबो कर रखने के बाद इसकी कड़वाहट दूर हो जाती है। कंद में बहुत से औषधीय गुण भी होते हैं। इसलिए इनका उपयोग घावों, फोड़े और सूजन के इलाज के लिए किया जाता है। सुखाकर कंदों का उपयोग अल्सर के उपचार में  होता है। कच्चे कंद ग्रामीणों, खासकर गरीब लोगों के लिए कमाई का अच्छा स्रोत हैं। औषधीय गुणों के कारण गुणवत्ता के हिसाब से आसानी से 200 से 400 रुपए प्रति किलो के हिसाब बिक जाते हैं।

पाले ओस और कोहरे में फर्क समझें

मोहन सिंह जांगड़ा

कृषि-मौसम वैज्ञानिक पर्यावरण विज्ञान नौणी विवि, सोलन

अकसर किसान-बागबानों के मुंह से सुनने को मिलता है कि आखिर अंबर के आगे किसका वश चला है। यह सही भी है। कभी बारिश,तो कभी बर्फ और कभी लंबा सूखा। सर्दियों में अब पाले को ही ले लीजिए,पाले के आगे किसानों और बागबानों की एक नहीं चलती,लेकिन किसान तो किसान हैं। वह अपनी ओर से पूरी कोशिश करता है। अब सवाल है कि आखिर पाला है क्या। पृथ्वी के धरातल तथा वायु का तापमान गिर कर जब इस स्तर तक पहुंच जाए कि जमीन की सतह या दूसरे खुले सतहों पर वायुमंडल की नमी संघनित होकर क्रिस्टलीय बर्फ के रूप में जम जाए , तो उसे पाला कहते हैं। कुछ लोग जमी हुई ओस को ही पाला कहते हैं परंतु यह बिलकुल ठीक नहीं है। पाला और जमी हुई ओस दोनों अलग-अलग कारक हैं। एक और मौसम कारक है कोहरा जिसको कुछ लोग पाला ही समझते हैं, परंतु यह भी पाला से बिलकुल अलग है। जब वायु का तापमान इस सतर तक गिर जाए कि जल वाष्प संघनित होकर पानी के कणों में बदल जाए और ये पानी के कण किसी सतह पर न जमकर हवा में ही लटके रहे तो उसे कोहरा कहते हैं। ओस व कोहरा फसलों के लिए लाभदायक ही होते हैं,परंतु पाला सदा नुकशानदायक व घातक होता है।

 ऐसे करता है नुकसान

पाला पेड़-पौधों व फसलों को दो तरह से हानि पहुंचाता है। एक, जब पाला पड़ने से पादप कोशिका के अंदर का पानी शून्य तापमान के कारण जम कर बर्फ  के क्रिस्टल में बदल  जाता है। जीवद्रव्य के जमने से उसका आयतन बढ़ जाता जिससे कोशिका फट जाती है तथा मर जाती है। दूसरा, पाला पड़ने से गिरते हुए तापमान के कारण जब दो कोशिकाओं के बीच का पानी जम जाए तो पानी कोशिका के अंदर नहीं जा पाता तथा जीवद्रव्य पानी की कमी के कारण सिकुड़ कर मर जाता हैं।

बचाव के उपाय

पाले के दौरान नलाई और गुड़ाई से बचें। छोटे पौधों को घास या बोरी से ढककर रखें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा में हल्का भरोसा रखें। हो सके तो सुबह के समाय बागीचों में छोटी छोटी आग जलाकर धुआं करें,क्योंकि सुबह ही पाला होता है। बागीचे में हवा बनाकर भी पाला हटाया जा सकता है। छिड़काव सिंचाई से भी पाले को खत्म किया जा सकता है।

माटी के लाल

लुधियाड़ के करतार सिंह ठाकुर सब्जियों के बादशाह

उपमंडल जवाली के अंतर्गत पंचायत लुधियाड के गांव लुधियाड निवासी 68 वर्षीय करतार सिंह ठाकुर को सब्जियों के बादशाह के नाम से जाना जाता है। करतार सिंह ठाकुर पिछले करीब 25 सालों से सब्जी पैदा करने का कारोबार कर अपना व परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। करतार सिंह ठाकुर ने करीबन 14 कनाल जमीन पर टमाटर, मटर, गोभी, मूली, पालक, आलू, धनिया की सब्जी उगा रखी हैं जोकि बिलकुल तैयार है। तकरीबन 10 क्विंटल गन्ना भी तैयार करते हैं। करतार सिंह ठाकुर ने बताया कि वह सुबह 3 बजे उठकर सब्जियों को पानी इत्यादि देते हैं तथा इसके बाद सायंकालीन 2 बजे तुड़वाई करने में जुट जाते हैं। उनका इस कार्य में उनकी पत्नी व बेटे भी साथ देते हैं। करतार सिंह ठाकुर ने बताया कि सब्जी के कारोबार से ही उन्होंने बच्चों को पढ़ाया है और परिवार का खर्चा भी इसी पर निर्भर करता है। प्रतिदिन 500 से 1000 रुपए कमा लेते हैं। उन्होंने बताया कि वह तीसरे दिन पानी का टैंक सब्जी को सिंचित करने के लिए मंगवाते हैं। वह सब्जियों को जैविक तरीके से तैयार करते हैं जिसमें न तो दवाइयों का छिड़काव करते हैं और न ही रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं। घर में पशु पाल रखे हैं तथा गोवर की खाद का ही प्रयोग किया जाता है। करतार सिंह ठाकुर एक बार जिला स्तरीय कृषक का खिताब भी आत्मा प्रोजेक्ट से जीत चुके हैं। उन्होंने कहा कि सब्जी उगाने की बारीकियां अलग-अलग फॉर्म में जाकर सीखी हैं तथा अब भी कई फार्म में जाते हैं। करतार सिंह ठाकुर ने बताया कि पहले कृषक मित्र पंचायत स्तर पर रखे गए थे जोकि समय-समय पर जानकारी मुहैया करवाते थे, लेकिन अब कोई भी किसी प्रकार की जानकारी देने नहीं आता है। उन्होंने कहा कि दूर-दूर से लोग उनके घर में आकर सब्जी खरीद कर ले जाते हैं, इसके अलावा वह रोजाना सायंकालीन साइकिल पर सब्जी बेचने निकलते हैं।  उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी  लोगों को घर से तैयार पनीरी इत्यादि देकर उनको जैविक खेती करने बारे प्रेरित किया जाता है। उन्होंने नीबू, संतरा, पलम, आम, लीची, सेब इत्यादि प्रजातियों के पौधे भी लगाए गए हैं।

– सुनील दत्त, ज्वाली

अनदेखी का मलाल

उनको मलाल है कि एग्रीकल्चर व होलटिक्लचर विभाग का कोई भी अधिकारी-कर्मचारी उनके पास नहीं आया जबकि बार-बार उनको बुलाया जाता है। करतार सिंह ठाकुर ने बताया कि सब्जी बीज भी समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है जिस कारण दूरदराज से बीज लेना पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकारें किसानों-सब्जी उत्पादकों को सुविधाएं देने की बात तो करती है, लेकिन धरा पर कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि न तो आजतक सोलरतार मुहैया करवाई गई और न ही कंटीली तार। जबकि सब्जी को पानी देने के लिए विभाग से बार-बार मोटरचालित हैडपंप की मांग की गई, लेकिन आजतक हैंडपंप नहीं लग पाया है। करतार सिंह ठाकुर उन समस्त बेरोजगारों के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं जोकि खेतीबाड़ी को छोड़कर सरकारी नौकरी की आस में बेरोजगार बैठे हैं। अगर युवा वर्ग इस किस्म के कारोबार को अपना लें, तो स्वयं रोजगारमुखी हो सकते हैं। उन्होंने मांग की है कि सरकार अगर सब्जी उत्पादकों को सुविधाएं मुहैया करवाती है तो इससे न केवल जैविक सब्जियां खाने को मिलेंगी बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के द्वार भी खुलेंगे।

क्या आप जानते हैं

 -हिमाचल में सबसे ज्यादा मृदा परीक्षण केंद्र शिमला जिला में हैं। शिमला में यह 6 केंद्र हैं।

 -प्रदेश में मंडियों व बाजार के रोजाना के भाव मुख्यतः दूरदर्शन, रेडियो और अखबारों से देख सकते हैं।

-आगामी समय में जीरों बजट खेती के तहत गोशाला को पक्का करने व बदलाव करने के लिए अस्सी फीसदी उपदान का प्रावधान है या  होगा।

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