पति को दीर्घायु देता है सोमवती अमावस्या का व्रत

By: Jan 26th, 2019 12:08 am

इस अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों की दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है…

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। यह वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों की दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गई है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चंदन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान है। कुछ अन्य परंपराओं में भंवरी देने का भी विधान है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढ़ाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्त्व समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों की आत्माओं को शांति मिलती है।

कथा

सोमवती अमावस्या से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलित हैं। परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है। मुख्य कथा के अनुसार एक गरीब ब्राह्मण परिवार था, जिसमें पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि कन्या की हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दंपति ने साधु से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे कि उसके हाथ में विवाह योग रेखा बन जाए। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोमा नाम की धोबी जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो कि बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपनी मांग का सिंदूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मण ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही। कन्या तड़के ही उठ कर सोमा धोबिन के घर जाकर सफाई और अन्य सारे काम करके अपने घर वापस आ जाती। सोमा धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि मां जी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो तड़के ही घर का सारा काम करके चला जाता है। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोमा धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन हैं और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधु द्वारा कही गई सारी बात बताई। सोमा धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोमा धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। बाद में सोमा धोबिन ने जब अपनी मांग का सिंदूर कन्या की मांग में लगाया, तो उसकी मनोकामना पूरी हो गई।

महिमा

पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी (परिक्रमा करना) देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। जो हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भंवरी देकर सोमा धोबिन और गौरी-गणेश की पूजा करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

विधान

ऐसी परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है। उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपनी सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है। भंवरी पर चढ़ाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है। अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में वह दान नहीं देना चाहिए।


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