शहरीकरण का सुनहरा परिदृश्य

By: Jan 14th, 2019 12:08 am

जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

शहरों में विकास की मूलभूत संरचना, मानव संसाधन के बेहतर उपयोग तथा सुरक्षा कसौटियों के लिए सुनियोजित प्रयास करना आवश्यक है। हमें नए शहरों की मौजूदा नई जरूरतों के लिए रोडमैप बनाना होगा। नए शहरों को तत्परता से निर्मित करने के लिए सरकार द्वारा आसान कर्ज के साथ-साथ निजी क्षेत्र से निवेश का सार्थक प्रयास करना होगा…

यकीनन नए वर्ष 2019 से भारत में तेजी से विकसित होते हुए नए शहरों का लाभप्रद परिदृश्य दिखाई देगा। इन दिनों पूरी दुनिया में विश्व के प्रतिष्ठित थिंकटैंक ऑक्सफोर्ड इकॉनोमिक्स के द्वारा हाल ही में प्रकाशित  दुनिया के 780 बड़े और मझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर प्रकाशित की गई  रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव देखने में आएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय दुनिया के अधिकांश विकसित शहर जैसे न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, लॉस एंजिल्स, बीजिंग, पेरिस, दिल्ली, मुंबई तथा कोलकाता दुनिया में अपना दबदबा बनाए रखेंगे। तेजी से विकसित होते हुए नए वैश्विक शहरों की रफ्तार के मामले में टॉप के 20 शहरों में से पहले 17 शहर भारत के होंगे और उनमें भी सबसे पहले दस शहर भारत के ही होंगे।

पहले 10 शहरों में  सूरत, आगरा, बंगलूरू, हैदराबाद, नागपुर, त्रिपुरा, राजकोट, तिरुचिरापल्ली, चेन्नई और विजयवाड़ा चमकीले वैश्विक शहरों के रूप में दिखाई देंगे। निस्संदेह भारतीय शहरों के बारे में जो अध्ययन रिपोर्टेंप्रस्तुत हो रही हैं, उनसे शहरीकरण से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आ रहे हैं। भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या और तेज गति से होते विकास के कारण तीव्र शहरीकरण को नहीं रोका जा सकता है। जहां एक ओर गांवों से रोजगार की चाह में लोगों का प्रवाह तेजी से शहरों की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर मध्यम वर्ग के लोग मुख्यतः शहरों में ही रहना पसंद करते हैं। निश्चित रूप से कल का उपेक्षित और गुमनाम भारतीय मध्यम वर्ग आज देश और दुनिया की आंखों का तारा बन गया है। भारत का मध्यम वर्ग जहां देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना लेकर आगे बढ़ रहा है, वहीं वह अपनी खरीददारी क्षमता के कारण पूरी दुनिया को भारत की ओर आकर्षित भी कर रहा है।

देश की ऊंची विकास दर के  साथ-साथ शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बलबूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक ताकत तेजी से बढ़ी है। वर्ष 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या और खरीद क्षमता चमकीली ऊंचाई पर पहुंच गई है और चारों ओर भारतीय मध्यम वर्ग का स्वागत हो रहा है। नेशनल इंस्टीच्यूट फॉर अप्लाइड इकॉनोमिक्स रिसर्च की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में देश में उच्च मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोग पूरे देश में 46 फीसदी क्रेडिट कार्ड, 49 फीसदी कार, 52 फीसदी एसी तथा 53 फीसदी कम्प्यूटर के मालिक हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय उच्च मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या बढ़कर 27 करोड़ से अधिक है। इस विशालकाय मध्यम वर्ग की आंखों में उपभोग और खुशहाली के जो सपने हैं, उनको पूरा करने के लिए देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपनी नई रणनीतियां बना रही हैं। इससे भी भारत में शहरीकरण के नए आयाम दिखाई देने लगे हैं। इस समय एशिया प्रशांत देशों में भारत सबसे तेजी से तरक्की करने वाला देश बन गया है। यद्यपि एक ओर भारत के लिए शहरीकरण की चुनौतियां हैं, लेकिन दूसरी ओर आर्थिक विकास और वैश्विक व्यापार बढ़ाने की भी भारी संभावनाएं हैं। यह माना जाता है कि शहर किसी भी राष्ट्र के विकास के आधार स्तंभ होते हैं। जैसे-जैसे शहरों का विकास होता है, वैसे-वैसे उसके साथ नया बाजार तैयार होता है। वैश्वीकरण के नए परिदृश्य में भारतीय शहर प्रतिभाओं के लिए खुशहाली के नए केंद्र बन गए हैं। प्रतिभाएं शहरों में इसलिए रहना चाहती हैं, क्योंकि शहरों में विश्वस्तरीय रोजगार अवसर सृजित हो रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लेसमेंट सेंटर बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि भारत के शहरों की ओर से विकसित देशों के लिए आउटसोर्सिंग का प्रवाह तेज होता जा रहा है। निश्चित रूप से जहां बढ़ती जनसंख्या के कारण शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है, वहीं  शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के अभाव में गांवों से लोगों का पलायन शहरों की ओर बढ़ता ही जा रहा है। वस्तुतः इस समय देश के अधिकांश शहर विकास और सामान्य जीवन स्तर के लिए मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। बिजली, पानी की भारी कमी, खराब सड़कें और भारी प्रदूषण भारतीय शहरों की बड़ी कमियां हैं। दरअसल हमारे देश में म्युनिसिपलिटी की अपनी कोई आर्थिक हैसियत ही नहीं बन पाई है। सड़कें जरा सी बारिश में बदहाल हो जाती हैं। आने-जाने के साधनों और ट्रैफिक जाम संबंधी मुश्किलें रोज दिखाई देती हैं। शहरों में जिस तेजी से कंकरीट के जंगल खड़े हुए हैं, उस रफ्तार से पेड़ नहीं लग पाए। इस लिहाज से देश के ज्यादातर शहरों में नवीनीकरण और वर्तमान व्यवस्थाओं में आमूलचूक बदलाव लाने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब दुनिया के देश शहरीकरण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने एवं अपने देश के शहरों को वैश्विक लाभ के लिए सजाने और संवारने की योजनाएं बना रहे हैं, तब हमें भी देश में मौजूदा शहरों को उपयुक्त बनाने और अच्छे नए शहरों के निर्माण में तेजी से कदम बढ़ाने होंगे। जरूरी है कि शहर सुनियोजित रूप से विकसित हों। शहर आधुनिक बुनियादी सुविधाओं, यातायात और संचार साधनों से सुसज्जित हों।

शहरों में विकास की मूलभूत संरचना, मानव संसाधन के बेहतर उपयोग, जीवन की मूलभूत सुविधाओं तथा सुरक्षा कसौटियों के लिए सुनियोजित प्रयास करना आवश्यक है। हमें नए शहरों की मौजूदा नई जरूरतों के लिए रोडमैप बनाना होगा। नए शहरों में सड़क का उपयुक्त मॉडल अपनाना होगा। नए शहरों को तत्परता से निर्मित करने के लिए सरकार द्वारा आसान कर्ज के साथ-साथ निजी क्षेत्र से निवेश का सार्थक प्रयास करना होगा। निश्चित रूप से नए शहरों के इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल उपयुक्त होगा। निश्चित रूप से ऑक्सफोर्ड इकॉनोमिक्स की नई रिपोर्ट भारत के तेजी से विकसित होते शहरों के विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह एक अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है और शहरीकरण की चुनौतियों के मद्देनजर देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय अभी मौजूद है। हम आशा करें कि सरकार देश के शहरों को एक बेहतर सोच, दृढ़ इच्छाशक्ति और सुनियोजित रणनीति से सजाएगी-संवारेगी, ताकि हमारे ये शहर राष्ट्रीय और वैश्विक जरूरतों की पूर्ति के अनुरूप लाभप्रद दिखाई दें और देश के आर्थिक विकास की बुनियादी ताकत बन जाएं।


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