सेब को सबसे बड़ा एनर्जी ‌‌‌ ड्रिंक

By: Jan 13th, 2019 12:08 am

भले ही यह साल की पहली बर्फबारी है, लेकिन हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में सेब के लिए यह रामबाण साबित हुई है। बागबानी विशेषज्ञों की मानें, तो यह हिमपात आधे से ज्यादा चिलिंग आवर्ज पूरे कर चुका है। इससे इस बार सेब की बंपर फसल की उम्मीद है। ऐसे में करोड़ों के सेब कारोबार को बड़ी राहत मिलने के आसार बन गए हैं। दूसरी ओर बागबानी विशेषज्ञ डा. एसपी भारद्वाज ने बताया कि गत 13 नवंबर और हाल ही में हुई बर्फबारी सेब की फसल के लिए अमृत से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सेब के लिए चिलिंग आवर्स 11 सौ से 12 सौ घंटे की आवश्यकता होती है, उसमें से अब तक 614 घंटे चिलिंग आवर्स मिल चुके हैं। यानी आधे से ज्यादा चिलिंग आवर्स मिल चुके हैं। डा. एसपी भारद्वाज ने बताया कि जनवरी महीने में हुई बर्फबारी जमीन में नमी को और अधिक बढ़ा देती है। धीरे-धीरे पिघलने से बर्फ  का पानी सीधे सेब के पौधों में चला जाता है। इस तरह से आने वाले दिनों में भी बर्फबारी होती रहेगी, तो संभवतः 2019 में सेब की अच्छी फसल तैयार हो सकती है। जिला शिमला को छोड़ किन्नौर और कुल्लू घाटी में अभी पू्रनिंग का काम जारी है, फिर भी इस बार का हिमपात बागबानों के  लिए संजीवनी से कम नहीं है। प्रदेश में पांच लाख से अधिक बागबान हैं।                   – टेकचंद वर्मा, शिमला

गर्म इलाकों 200 घंटे काफी

बागबानी विशेषज्ञ डा. जेपी शर्मा का कहना है कि मैदानी इलाकों में सेब की अर्ली वैरायटी के लिए 200 चिलिंग आवर्स की जरूरत रहती है। इसके उलट ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 1200 से 1400 चिलिंग आवर्स पौधों के लिए आवश्यक रहते हैं।

प्रूनिंग के लिए यह महीने सही

हार्टीकल्चर एक्सपर्ट का कहना है कि सेब के पौधों में प्रूनिंग के लिए जनवरी व फरवरी माह का समय उपयुक्त रहता है। बागबानी विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रूनिंग के लिए खासकर जनवरी के बाद का समय बेहतर रहता है। प्रदेश में मौसम ने करवट ले ली है। इस दौरान पौधों में चूने का लेप लगाना  लाभकारी होगा।

माटी के लाल

होनहार शिक्षक ने बेटे को बनाया बागबानी का डाक्टर

बागबानी का ऐसा जुनून कि अपने बड़े बेटे को हार्टीकल्चर का डाक्टर बना दिया। यह कहानी है पौंग डैम विस्थापित गुरमुख सिंह अंबिया  के परिवार की । वह पेशे से अध्यापक रहे हैं व बागबान हैं। डैम में उपजाऊ भूमि खो जाने के बाद उन्होंने बंजर जमीन को अपनी मेहनत से उपजाऊ बना दिया तथा अपने बड़े बेटे को नौणी विवि से डाक्टरी की पढ़ाई कराई । यही नहीं उन्होंने अपने घर में कई औषधीय पौधे तैयार किए। इनमें मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला चंदन भी शामिल है। इसी तरह कई देसी सब्जियां उनके खेतों की शान हैं। आज पूरे प्रदेश को इन जैसे होनहार किसानों पर नाज है।

बंदूक की लाइसेंस फीस बढ़ाना गलत

बंदूक लाइसेंस की फीस बढ़ने से हर कोई आहत है। खासकर किसान भाइयों को यह फैसला पसंद नहीं आ रहा। दिव्य हिमाचल ने बढ़ी फीस पर लोगों की राय जानी। किसने, क्या कहा… प्रस्तुत हैं मुख्य अंश

किसान कुश ठाकुर का कहना है कि उनके पास अपने बुजुर्गों के समय की बंदूक पड़ी है। उनकी निशानी के तौर पर उन्होंने इसे अभी तक संभाल कर रखा है। उन्हें इस बंदूक को चलाना भी नहीं आता है। एकाएक बढ़ाई गई नवीनीकरण फीस के कारण उन्हें काफी दिक्कतें आ रही हैं।

शमरोड़ पंचायत के किसान प्रदीप ठाकुर का कहना है कि बंदूक लाइसेंस की फीस को बढ़ाकर 1600 रुपए कर देना बिलकुल गलत निर्णय है। उन्होंने कहा कि लाइसेंसी बंदूक का इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होता है। एकदम से बढ़ाई गई फीस के चलते वे अब बंदूक रखना ही नहीं चाहते हैं।

 किसान देवेंद्र ठाकुर का कहना है कि उनके बुजुर्गों ने 200 रुपए में बंदूक खरीदी थी। वहीं, अब इस बंदूक के लाइसेंस के लिए ही उन्हें 1600 रुपए खर्च करने पड़ेंगे, जो कि बिलकुल नाजायज है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस फीस को यथावत किया जाए।

 किसान संदीप ठाकुर ने कहा कि फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए बंदूक रखी है, लेकिन बंदूक का इस्तेमाल बहुत कम होता है। लाइसेंसी बंदूक के रिन्यूल के लिए फीस का बढ़ाया जाना गलत है, इससे किसानों को काफी दिक्कतें पेश आ रही हैं।

 मशीवर पंचायत के उपप्रधान कुलदीप ठाकुर ने कहा कि  किसानों को अपनी फसल के लिए कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लाइसेंसी बंदूकों का नवीनीकरण इतना महंगा है। सरकार को इस फीस को जल्द से जल्द घटाना चाहिए।

किसान-बागबानों  के सवाल

– दुलैहड़ के दीन दयाल का सवाल है कि सहकारी सभाओं में किसान कार्ड बनाने की क्या-क्या शर्तें हैं।

– दौलतपुर चौक राजकुमार का प्रश्न है कि क्या जिला में नई सब्जी मंडियां खोली जाएंगी।

– शाहपुर के  मेहर चंद का सवाल है कि अदरक के  बीज के हर जगह अलग-अलग दाम हैं। सरकार बीज के दाम कंट्रोल करने के लिए क्या कदम उठा रही है।

– सोलन के दिनेश का प्रश्न है कि सरकार जिला में बंदरों की रोकथाम के लिए क्या कदम उठा रही है।

गेहूं में घास ज्यादा  है, फिक्र न करें

गेहूं में जहां खरपतवारों की 2-3 पत्तियां आ गई हों, गेहूं की बिजाई के 30-35 दिन बीत गए हों,तो उनके नियंत्रण के लिए वेस्टा नामक रसायन की 16 ग्राम मात्रा 30 लीटर पानी में घोलकर प्रति कनाल की दर से छिड़काव करें, परंतु जहां घास कुल के खरपतवारों के साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की समस्या हो तो वहां क्लोडिनाफॉप की 24 ग्राम (10 डब्ल्यूपी) या 16 ग्राम (15 डब्ल्यूपी) प्रति कनाल व उसके पश्चात 2,4-डी का छिड़काव क्लोडिनाफॉप के छिड़काव के 2-3 दिन के बाद करें। छिड़काव के लिए फलैटफैन नोजल का इस्तेमाल करें। छिड़काव से दो-तीन दिन पहले एक हल्की सिंचाई दें। छिड़काव आकाश साफ रहने पर करें।

मूली के लिए सही समय

निचले पर्वतीय क्षेत्रों में यह समय मूली की बिजाई के लिए काफी उपयुक्त है। बिजाई के लिए सुधरी किस्म पूसा हिमानी का चयन करें। बिजाई समतल खेतों में या मेढ़ें बनाकर पंक्ति से पंक्ति या मेढ़ से मेढ़ 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। मध्यवर्ती क्षेत्रों में आलू की बुआई के लिए सुधरी किस्मों जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी गिरिराज व कुफरी हिमालिनी इत्यादि का चयन करें। बुआई के लिए स्वस्थ, रोग-रहित, साबुत या कटे हुए कंद (वजन लगभग 30 ग्राम) जिनमें कम से कम 2 आंखें हों, का प्रयोग करें। बुआई से पहले कंदों को डाईथेन एम-45 (25 ग्राम) तथा सिंगल सुपरफास्फेट (150 ग्राम) प्रति 10 लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक भिगोने के उपरांत छाया में सुखाकर बुआई करें। इसके अतिरिक्त खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्जियों जैसे फूलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, ब्रॉकली, चाईनीज-बंदगोभी, पालक, मेथी, मटर, प्याज व लहसुन इत्यादि में निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन (50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर) खेतों में डालें।

फसल संरक्षण

सरसों वर्गीय तिलहनी फसलों में तेले (एफिड) के अत्यधिक प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए डाईमिथोएट 30ईसी (रोगर) या साईपरमिथरिन 10 ईसी (मात्रा 1 मिलीलीटर कीटनाशक प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। छिड़काव के लिए एक बीघा क्षेत्र में कम से कम 60 लीटर घोल का प्रयोग करें तथा छिड़काव सुबह के समय न करें, ताकि मधुमक्खी आदि लाभदायक कीटों को क्षति न हो।

अच्छे बीज से मिलेगी अच्छी पैदावार

बीजों में अनुवांशिक शुद्धता जरूरी

निम्न स्तर के बीज बोआई करके अच्छी पैदावार नहीं ली जा सकती। कोई भी किसान चाहे जितनी भी सिंचाई करें, खाद डालें, पौध संरक्षण के सिद्धांतों का पालन करें मगर अच्छी पैदावार वह तभी पा सकता है जब पूर्णतः अनुकूलित उन्नत किस्मों के अच्छे बीजों का प्रयोग किया जाए। बीजों पर आने वाली लागत किसी भी फसल की खेती की कुल लागत का बहुत छोटा सा अंश होता है। निम्न स्तर पर बीज खरीद कर पैसा बचाना, दूसरे साधनों पर जैसे उर्वरक, सिंचाई आदि पर किया गया खर्च बर्बाद करना है। कहने का अभिप्राय यह है कि कृषि स बंधी जल, बिजली, उपकरण, तकनीकी जानकारी, ऋण की सुविधाएं आदि अपने आप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं। कृषि विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें बीजों का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। सुधरे बीज का तात्पर्य अधिक उपज, रोग तथा कीट प्रकोप सहन करने की क्षमता से है, जो उगाए जाने वाले क्षेत्र के लिए पूर्णता अनुकूलित हो।

– जयदीप रिहान, पालमपुर

उन्नत बीजों के प्रकार

केंद्रित व प्रजनक बीजः ये पादप प्रजनक द्वारा अथवा किस्म विकसित करने वाली  संस्था द्वारा पैदा किया गया बीज होता है जिसमें शत-प्रतिशत आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता होती है ।

आधार बीज : कृषि संस्थानों एवं बीज गुणन  प्रक्षेत्रों में उत्पन्न बीज होते हैं। प्रजनक बीज की तरह शुद्ध नहीं रहते हैं। विशेष मानदंडों के अनुसार आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से कम नहीं होती।

प्रमाणित बीज :  यह बीज आधार बीज के तैयार किया जाता है। जिनकी गुणवत्ता की जांच करके प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अच्छे बीजों का प्रमाण पत्र प्रदान करके की जाती है। इस बीज को उन्नत किसानों द्वारा प्रदेश बीज निगम द्वारा विशेष मानकों के अनुसार पैदा किया जाता है। तथा इनके आनुवांशिक तथा भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से कम नहीं होती है। इस बीज का प्रयोग किसानों द्वारा खेती उत्पादन में किया जाता है। इस बीज का प्रयोग किसान द्वारा फसल उत्पादन में किया जाता है। यदि किसान भाई सुधरे बीजों की उपरोक्त का चयन बुआई के लिए करें तो निश्चित तौर पर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

उन्नत बीजों के गुण

बीजों में आनुवांशिक शुद्धता: यह बहुत जरूरी है कि बीजों में आनुवांशिक शुद्धता हो अर्थात वे उसी किस्म के हों जिसके नाम पर उन्हें बेचा जा रहा है। उनमें किसी दूसरी किस्म के बीजों का मिश्रण न हो अन्य किस्मों के बीज मिश्रित हो जाने से उत्पादन में भारी कमी आती है क्योंकि विभिन्न किस्मों में रोग सहन करने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। उनकी जल व पोषक तत्त्वों की अलग अलग आवश्कता होती है। और पकने का समय भी अलग-अलग होता है। दो या अधिक किस्मों के मिश्रण को पहचान लेना बड़ा कठिन होता है इसलिए विश्वसनीय स्रोत से सरकार द्वारा प्रमाणित बीज ही खरीदना चाहिए।

बीजों की भौतिक शुद्धता : बीजों में दूसरी फसलों अथवा खरपतवार के बीज नहीं मिले होने चाहिए यह भी आवश्यक है कि कंकड़ पत्थर मिटटी भूसा आदि न हो? भौतिक शुद्धता जितनी अधिक रहेगी, बीजों की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी होगी। विभिन्न फसलों के बीज जो रंग, आकार और प्रकार में समान होते हैं। उनकी आपस में मिल जाने की संभावना भी अधिक रहती है। खरपतवारों के बीजों को मिल जाने से खासतौर से नुकसान होता है क्योंकि बुआई करते ही खरपतवार उग आते हैं। बीज की भौतिक शुद्धता के लिए खेत में उगे हुए दूसरी फसलों व खरपतवारों के पौधों को उखाड़ देना चाहिए।

बीजों का रोगाणु एवं कीटरहित होना : रोगों के रोगाणु बीजों पर आक्रमण पर्वतीय खेतीबाड़ी करके उन्हें बुआई के लिए बेकार कर देते हैं। ऐसे बीजों की बुआई करके रोगग्रस्त पौधे पैदा होते हैं। भंडारण काल में बहुत से कीड़े बीजों को खाकर खोखला कर देती हैं, उनकी अंकुरण क्षमता नष्ट हो जाती है। बीजों को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए फंफूदनाशक, कीटनाशक दवाओं का छिड़काव खेती में तथा बीज उपचार भंडारण के समय करना आवश्यक है।

अजब गजब

यकीन मानिए, यह पेड़  उल्टा नहीं

बाओवा अफ्रीका में पाया जाने वाला एक फल है। इसका विशालकाय वृक्ष विचित्र आकार का होता है ,जो देखने में ऐसा लगता है कि जड़ें ऊपर हों और ऊपर का भाग जमीन में गड़ा हो। इसलिए स्थानीय लोग इसे ‘उलटा वृक्ष’ भी कहते हैं। जो कोई भी इस दरख्त को देखता है,वह देखता ही रह जाता है।

तीन साल में पकता है यह फल

स्केंडेनेवियायी देशों में ऐन नाम का एक सुगंधित मीठा फल पाया जाता है। ये नन्हा फल होता तो केवल 125 मि. ग्रा. का है, पर पकने में पूरे तीन वर्ष का समय लेता है। बेशक,यह तीन साल का समय लेता है, लेकिन इसके स्वाद के क्या कहने।   – चरणजीत परमार, मंडी

 सैणी ने तैयार की पर्पल ब्रोकली

अमूमन ग्रीन ब्रोकली मार्केट में लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी है,लेकिन अब पर्पल ब्रोकली भी आ गई है। कांगड़ा जिला के पटौला गांव के कि सान बलबीर सैणी ने यह कारनामा किया है। यह गोभी 120 दिन में तैयार हुई है। इसमें आम ब्रोकली से स्टिक भी ज्यादा हैं। कम तापमान में खुले खेत में तैयार करने वाले इस होनहार किसान को अग्रणी मीडिया ‘ग्रुप दिव्य’ हिमाचल अपने प्रतिष्ठित अवार्ड ‘किसान श्री’ से सम्मानित कर चुका है। वह अपने फार्म में नए-नए प्रयोग करते हैं,जो कि प्रदेश भर के किसानों के लिए लाभकारी साबित हुए हैं।                – पूजा चोपड़ा

क्या आप जानते हैं

-गेहूं में पीला रतुआ से  टिल्ट 25 ईसी. एक मिली/ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से छुटकारा मिलता है।

-पशु को सूखा चारा खिला रहे हों, तो प्रतिदिन 40 ग्राम खनिज लवण मिश्रण अवश्य खिलाना होता है।

आप हमें भेजें सब्जी के  फोटो

अगर आपने अपने खेत या बाग में कुछ हटकर उगाया है, तो तत्संबंधी जानकारी हमसे साझा करें। अपनी उन्नत खेती, सब्जी या फलोत्पाद की फोटो शेयर करें। खेती-बागबानी से जुड़े किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा या फिर सरकार तक बात नहीं पहुंच रही, तो हमें बताएं।

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