हम उगाएंगे सबसे ताकतवर मशरूम  

By: Jan 20th, 2019 12:08 am

कैंसर के लिए रामबाग हैं जापानी मशरूम शटाके

कृषि विभाग के मुताबिक अभी तक प्रदेश में शटाके मशरूम नहीं उगाया जाता है और इसकी सबसे अधिक संभावनाएं पालपपुर क्षेत्र में हैं

जापान, चीन व दक्षिण कोरिया के लोगों का पसंदीदा शटाके मशरूम प्रदेश में भी उगाया जाएगा। हिमाचल के इस शटाके मशरूम को विदेशी मार्केट मिलेगी, जिसके लिए सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। इस मशरूम को विदेशों में निर्यात किया जाएगा, जिसकी बड़ी संभावना देखी गई है। ये संभावनाएं देखने के बाद सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में भी शटाके मशरूम की खेती बढ़ाई जाए। कृषि विभाग के मुताबिक अभी तक प्रदेश में शटाके मशरूम नहीं उगाया जाता और इसकी सबसे अधिक संभावनाएं पालमपुर क्षेत्र में हैं। वहां बाण के पेड़ों के साथ इसकी खेती की जा सकती है, जो बहुतायत में वहां उत्पादित हो सकता है। यह मशरूम की एक किस्म है, जिसे शटाके मशरूम कहा जाता है। जापान, चीन व दक्षिण कोरिया देशों में इसे बेहद पसंद किया जाता है, जो कि दुनिया में शटाके मशरूम की सबसे बड़ी मार्केट है। हाल ही में प्रदेश से अधिकारियों की एक टीम जापान के दौरे पर गई थी, जहां शटाके मशरूम पर विस्तार से चर्चा की गई। वहां इसकी मार्केट देखी गई और इसकी खरीद करने वाली कई कंपनियों के साथ चर्चा की गई है। इन विदेशी कंपनियों ने कहा है कि उनके पास शटाके मशरूम की बेहद डिमांड है और यह डिमांड पूरी करने में प्रदेश उनकी मदद कर सकता है। अच्छी बात यह है कि विदेशी मार्केट मिलने से उत्पादकों को बेहतर दाम मिलेंगे और यह चिंता नहीं रहेगी कि उनका उत्पाद बिकेगा या नहीं। उत्पादकों की यह समस्या दूर करने के लिए जापान से आयात कंपनियों के प्रतिनिधियों की एक टीम जनवरी में हिमाचल के दौरे पर आने वाली है। उनका जनवरी का दौरा तय हो गया है, जो यहां आकर शटाके मशरूम की संभावना देखें। ये लोग पालमपुर क्षेत्र का दौरा करेंगे, जहां कृषि विभाग इस मशरूम को लगाने पर जोर दे रहा है। यहां इसका उत्पादन भी कुछ क्षेत्र में शुरू कर दिया गया है। अब वहां लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, जिसके लिए कृषि विभाग मुहिम चलाएगा। एक प्लान इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए तैयार किया जा रहा है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव डा.श्रीकांत बाल्दी और कृषि विभाग के प्रधान सचिव ओंकार शर्मा जापान गए थे, जिन्होंने वहां कंपनियों से इस पर चर्चा की है। जनवरी में वहां की टीम को हिमाचल आने का न्योता दिया गया है, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। यहां और किन-किन क्षेत्रों में शटाके मशरूम उगाया जा सकता है, इस पर भी कृषि महकमा काम कर रहा है।

माटी के लाल

फारियां में अरुण के पास खीरे का खजाना

उपमंडल जवाली के अंतर्गत पंचायत फारियां के अरुण कुमार को खीरा का बादशाह कहा जाता है। एयरफोर्स में करीब 16 साल अपनी सेवाएं देने के उपरांत मौजूदा समय में पॉलीहाउस में खीरा उगाकर बेरोजगार युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। उन्होंने दो पॉलीहाउस लगाए हुए हैं तथा पॉलीहाउस में हर सीजन में खीरा ही तैयार किया जाता है। मौजूदा समय में एक पॉलीहाउस में खीरा खत्म हो गया है, जबकि दूसरे पॉलीहाउस में खीरा की पैदावार हो गई है। अब दूसरे पॉलीहाउस में दोबारा से खीरा बीज दिया गया है।  उनके पॉलीहाउस में ऑर्गेनिक तरीके से पैदा हुए खीरे की मंडियों में काफी डिमांड रहती है। बीज इत्यादि बाहर के फार्म से लाए जाते हैं जोकि महंगे तो मिलते हैं, लेकिन साथ ही उसकी प्रोडक्शन अधिक होती है। खीरे में लगने वाली फंगस को मारने के लिए खट्टी छाछ तथा कीड़े इत्यादि मारने के लिए नीम सहित अन्य जड़ी-बूटियों से तैयार की गई दवाई का छिड़काव किया जाता है। खीरे की फसल तीन महीने तक ही रहती है, लेकिन तीन माह में सर्दियों में 50 से 60 हजार रुपए जबकि गर्मियों में 50 से एक लाख रुपए तक की आय हो जाती है। उन्होंने कहा कि इस कार्य में मेहनत तो है , लेकिन साथ ही इनकम भी ज्यादा है। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया है कि सरकारी नौकरी की चाह को छोड़कर ऐसे व्यवसाय अपनाएं ताकि स्वरोजगारोन्मुखी हो सकें जिसके लिए बैंक इत्यादि से ऋण भी आसानी से मिल जाता है।

न कृषि विभाग को फिक्र, न बागबानी को

अरुण कुमार ने कहा कि एग्रीकल्चर फॉर्म व हार्टीकल्चर विभाग द्वारा समय पर बीज मुहैया नहीं करवाई जाते हैं और अगर बीज मिल भी जाता है, तो उसकी प्रोडक्शन अच्छी नहीं होती है। इसके अलावा दोनों ही विभागों से कोई भी कर्मी कभी भी कोई सलाह देने नहीं पहुंचते हैं। पॉलीहाउस की चादर इत्यादि फटने पर सब्सिडी पर चादर मुहैया नहीं करवाई जाती है। पॉलीहाउस की चादर फटने पर विभाग चादर मुहैया करवाने के साथ-साथ उसको लगाने के लिए भी कोई प्रावधान करवाए।

रिपोर्ट- सुनील दत्त, जवाली

फूलगोभी के बड़े-बड़े फूल

कांगड़ा जिला के इंदौरा ब्लाक में इंदपुर  निवासी चनन सिंह को कौन नहीं जानता। वह इलाके के होनहार किसान हैं। इस बार उन्होंने अपने खेत में साढ़े तीन किलो वजन तक फूलगोभी उगाई है।  उनके खेत में कई तरह की सब्जियां तैयार हैं।

 रिपोर्ट – एसपी राणा, इंदौरा

कर्ज माफी के साथ किसान को मिलें फसल के अच्छे दाम

किसान परिवार से संबंधित वीरेंद्र चौधरी को भाजपा ने दिल्ली प्रदेश ओबीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। कांगड़ा जिला के कोटक्वाला गांव निवासी वीरेंद्र चौधरी पूर्व मंत्री विद्या सागर के बेटे हैं तथा भाजपा के अलावा कई अन्य समाजसेवी संगठनों से जुड़े हुए हैं। वीरेंद्र कहते हैं कि कर्ज माफी के साथ-साथ किसानों को नई मार्केट उपलब्ध करवानी होंगी। उन्हें हाइटेक खेती के प्रति प्रेरित करना होगा। उन्हें फसल का सही दाम मिलना चाहिए। किसान को सस्ती बीज-खाद के अलावा सिंचाई सुविधा मुहैया करवानी होगी। वह किसानों के लिए एक खास योजना पर काम कर रहे हैं।

रिपोर्ट -पूजा चोपड़ा

अजब गजब

सेब पानी में क्यों नहीं डूबते

सेब के गूदे में पोषक तत्त्वों के अतिरिक्त 20/ हवा भी होती है जिसका हमें पता नहीं चलता। इसी हवा के कारण सेब के फल पानी में तैरत रहते हैं।

सबसे स्वादिष्ट फल

मैगोस्टीन को विश्व का सबसे स्वादिष्ट फल माना गया है। यह फल दक्षिण पूर्व एशिया में उगाया जाता है।

फोटो खींचते ही पता चलता है फसल को कौन सा रोग

किसानों को  पसंद ये ऐप

अकसर जब पत्ते पीले पड़ने या सूख जाने पर ही हमें फसल के रोग का पता चलता है। ऐसे में बहुत से मामलों में तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। किसानों की इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए नई तकनीकें काफी मददगार साबित हो सकती हैं। इन्हीं दिक्कतों के समाधान के लिए अपनी माटी के इस अंक में हम किसान-बागबानों को एक ऐसी ऐप से रू-ब-रू करवा रहे हैं, जो उन्हें मददगार साबित हो सकती है। नाम है प्लांटिक्स। गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड होने वाली यह ऐप जहां मौसम की लाइव जानकारी देती है, वहीं फसल का एक फोटो मांगते ही महज पांच सेकेंड में बता देती है कि आखिर आपकी फसल को मर्ज क्या है। इसी तरह हृड्ड क्कड्डठ्ठह्लड्ड ऐप भी काफी कारगर सिद्ध हो सकती है। इसमें कृषि उपकरणों के अलावा,किराए और फसलों के रेट तक आसानी से मिल जाते हैं। इसके अलावा मंडी ट्रेड्स नामक ऐप फसल को बेचने में कारगर साबित हो ती है। इसी तरह एक एग्रीएप भी है,जिसमें कृषि, बागबानी के अलावा पशुपालन पर जानकारी दी जाती है। वहीं रेनबो एग्री ऐप से खरीददारों के बार में महज दो मिनट में जानकारी देने का दावा किया जाता है। यह तमाम जानकारी किसानों-बागबानों की मदद के लिए महज सूचनार्थ है। यह अंतिम सुझाव नहीं है। इनके फायदे-नुकसान का अंतिम फैसला आपको खुद लेना है।

अपनी माटी डेस्क रिसर्च

खेतों में दबी कई क्विंटल हल्दी,नहीं मिला खरीददार

केएस वर्मा रिटायर्ड वैज्ञानिक पंजाब यूनिवर्सिटी

प्रदेश सरकार कहती है कि हिमाचल को कृषि राज्य बनाएंगे। दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वर्ष 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, लेकिन धरातल पर तस्वीर कुछ और ही रूप दिखा रही है। ऐसे किसानों भी हैं जिन्होंने कुछ साल पहले यह सोचकर खेतों में हल्दी की बिजाई कर डाली थी कि न तो इसकी जंगली जानवर उजाड़ करेंगे और न ही सिंचाई आदि की इसके लिए ज्यादा जरूरत होगी। आज क्विंटलों के हिसाब से तैयार हो चुकी हल्दी खेतों में दबी पड़ी है कारण इसके खरीददार नहीं मिल पा रहे हैं। भोरंज क्षेत्र के ढो गांव से ताल्लुक रखने वाले केएस वर्मा जोकि रिटायर्ड वैज्ञानिक आफिसर पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ हैं सुनते हैं उनकी कहानी उनकी ही जुबानी…..

मुझे शुरू से ही कृषि एवं कृषक में गहरी दिलचस्पी थी। मैंने अपने गांव ढो तहसील भोरंज में अपनी लगभग 80 कनाल जमीन पर सरकार के सहयोग से विभिन्न नकदी फसलों जिमींकंद, अदरक, लहसुन इत्यादि की खेतीबाड़ी कर और आम, अनार, रीठे व हरड़ इत्यादि के बागीचों को विकसित कर क्षेत्र के किसानों को प्रेरित कर कृषि से आय बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन हम सफल नहीं हो सके। चूंकि बेसहारा और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को बर्बाद किया जा रहा था। इसलिए हम किसानों ने मिड हिमालय टौणीदेवी (बमसन) के सहयोग से हल्दी की खेतीबाड़ी की। हल्दी का भरपूर उत्पादन पर उसकी लागत मूल्य पर भी कोई मांग नहीं है। हमारे हल्दी संघ ने सरकार के सहयोग तथा किसान समूहों ने मिलकर हल्दी के लिए ब्याईलर व ड्राईर जैसे सयंत्रों की स्थापना भी की, लेकिन उसमें भी संघ असफल रहा। मेरे जैसे दर्जन भर कृषक लगभग छह साल से हल्दी की मांग न होने के कारण अपनी फसल को खेत से नहीं निकाल पाए हैं। इस कारण वहां अगली फसलों की बिजाई भी नहीं हो पा रही है। किसानों की आय शून्य के बराबर है। विभिन्न स्तरों पर संबंधित विभागों से संपर्क साधा जाता रहा, लेकिन प्रत्येक स्तर पर संबंधित अधिकारी समस्याओं के समाधान के लिए लाचार दिखे। किसानों ने सरकार की कृषि योजनाओं के अंतर्गत कई प्रकार के कृषि कर्ज लिए हुए हैं और उस कर्ज का कृषि से आय न होने पर बैंकों की राशि का भुगतान करना भी असंभव हो गया है। कुछ किसानों ने तो पहले ही साल रवैया देखकर हल्दी को खेतों से निकालकर उसमें दूसरी फसलों की बिजाई शुरू कर दी थी, लेकिन हम लोग इस आस में रहे कि सरकार इसमें दिलचस्पी दिखाएगी। शायद इसी कारण प्रदेश के हजारों एकड़ कृषि व बागबानी भूमि बंजर पड़ चुकी है। किसानों की अनेक समस्याओं के साथ सबसे बड़ी समस्या सिंचाई और बेसहारा पशुओं व जंगली जानवरों की है। दूसरा मैदानी क्षेत्रों की तर्ज पर हिमाचल जैसे पहाड़ी इलाकों की कृषि को आधार बनाना, प्रयोग व तुलना करना, एकदम गलत है। सरकार को धरातल पर किसानों की समस्याओं को समझना होगा और उनके अनुरूप समाधान करना होगा।

रिपोर्ट- नीलकांत भारद्वाज, हमीरपुर

किसानों के तीखे सवालों पर सरकार के नरम- नरम जवाब

दुलैहड़ के दीन दयाल का सवाल है कि सहकारी सभाओं में किसान कार्ड बनाने की क्या-क्या शर्तें हैं? इसके लिए एक किसान को क्या करना चाहिए ?

सहकारी सभाओं में किसान कार्ड बनवाने के लिए किसान को सबसे पहले सहकारी सभा के सचिव के साथ संपर्क करना होगा। यहां पर किसान को किसान कार्ड के लिए आवेदन करने को एक एप्लीकेशन देनी होगी। जोकि सहकारी सभा की बैठक में जाएगी। यहां पर सहकारी सभा की ओर से किसान कार्ड के लिए आवेदन करने वाले किसानों के लिए एक प्रस्ताव पास किया जाएगा। वहीं, किसान कार्ड के लिए आवेदन करने वाले आवेदनकर्ताओं को जमीन की फर्द भी देनी होगी। सहकारी सभा की ओर से जो प्रस्ताव पास किया जाएगा वह बैंक के पास भेजा जाएगा। तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद बैंक द्वारा सहकारी सभा को ऋण जारी किया जाएगा। जोकि संबंधित सहकारी सभाओं के सदस्यों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र से संबंधित किसान को दिया जाएगा। बता दें कि एक लाख तक का किसान कार्ड बनवाने पर किसान को सात फीसदी ब्याज पर मुहैया करवाया जाएगा। जोकि एक साल के लिए होगा। निर्धारित समय अवधि में यदि किसान, किसान कार्ड के तहत राशि की यदि अदायगी कर देता है तो किसान को तीन फीसदी का लाभ मिलेगा। नाबार्ड की ओर से तीन फीसदी ब्याज राशि किसान को वापस कर दी जाएगी। कुल मिलाकर चार फीसदी पर किसान को किसान कार्ड का लाभ मिलेगा। जिला सहायक पंजीयक सहकारी संभाएं सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि किसान तमाम औपचारिकताएं पूरी कर लाभ उठा सकता है। वहीं, कृषि उप निदेशक सुरेश कपूर ने कहा कि सीधे बैंक के साथ मिलकर भी किसान, किसान कार्ड का लाभ उठा सकता है।

दौलतपुर चौक राजकुमार का प्रश्र है कि क्या जिला में नई सब्जी मंडियां खोली जाएंगी? इसके लिए क्या किसी योजना पर काम चल रहा है?

ऊना जिला के अंतर्गत बंगाणा के डुमखर मुच्छाली में जल्द ही नई सब्जी मंडी खुलेगी। बंगाणा में नई सब्जी मंडी खोलने की प्रक्रिया के तहत इसके लिए जमीन स्थानांतरित हो चुकी है। करीब पांच कनाल जमीन में यह सब्जी मंडी खुलेगी। इससे क्षेत्र के किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए इधर-उधर नहीं जाना पड़ेगा। बता दें कि ऊना जिला के तहत चार सब्जी मंडियां मार्केटिंग कमेटी की ओर से चलाई जा रही हैं, लेकिन इनमें दो सब्जी मंडियों का ही किसानों को लाभ मिल पा रहा है। वहीं, दो सब्जी मंडियां किसानों के लिए कोई भी लाभ नहीं मुहैया करवा रही हैं। ऊना, संतोषगढ़ में स्थित सब्जी मंडी का लाभ किसानों को मिल रहा है। वहीं, टकारला सब्जी मंडी का कार्य चला हुआ है। इसके अलावा भदसाली की सब्जी मंडी बनकर तैयार है, लेकिन इस सब्जी मंडी तक पहुंचने के लिए रास्ता ही नहीं है। जिसके चलते इसका कोई भी लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। मार्केटिंग कमेटी के सचिव सर्वजीत डोगरा ने बताया कि बंगाणा में सब्जी मंडी शुरू करने के लिए औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही यहां पर सब्जी मंडी शुरू कर दी जाएगी।

रिपोर्ट -अनिल पटियाल, ऊना

बागबानों के लिए तैयार फलदार पौधे

डा. जेएन शर्मा, डायरेक्टर सर्च, नौणी विश्वविद्यालय

डा. वाईएस परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में हर वर्ष की तरह इस साल भी बागबानों के लिए फलदार पौधे की बिक्री की गई । पौधों को खरीदने के लिए प्रदेश के किसानों में बहुत उत्साह दिखा और सुबह से उनका विश्वविद्यालय परिसर में आना शुरू हो गया था। हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू और कश्मीर सहित अन्य राज्यों से भी कई किसान पौधे लेने विश्वविद्यालय आए। पहले दिन करीब 40000 पौधे विश्वविद्यालय द्वारा बेचे गए। सेब में स्पर किस्मों की काफी डिमांड रही।

इस वर्ष विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा फलों की विभिन्न किस्मों के करीब 84000 पौधे तैयार किए गए हैं, जो विश्वविद्यालय परिसर से ही किसानों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त हिमाचल के विभिन्न हिस्सों में स्थित विश्वविद्यालय के कृषि विकास केंद्रों ‘केवीके’ और क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्रों ने भी करीब 62000 पौधे बागबानों के लिए तैयार किए हैं। नौणी विवि के अंतर्गत आने वाले सोलन के कृषि विकास केंद्र कंडाघाट, किन्नौर के केवीके शारबो, लाहुल स्पीति के केवीके ताबो, शिमला के केवीके रोहडू, केवीके चंबा और क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बजौरा और मशोबरा में भी पौधे तैयार किए गए हैं। जिन फलदार पौधों की बिक्री की गई उनमें सेब, कीवी, पलम, खुरमानी, आड़ू,चेरी, आनर, नेक्टरिन ,पेरसिमोन, पेकननट, नाशपती आदि शामिल हैं। विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग, बीज विज्ञान और अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत मॉडल फार्म में इन पौधों को तैयार किया गया है। यह सभी पौधे पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बेचे गए

रिपोर्ट -मोहिनी सूद, नौणी

किसान-बागबानों के सवाल

सहकारी सभाओं और ओपन मार्केट में पावर टिल्लर और पावर वीडर के रेट एकसमान हैं। प्रदेश सरकार इस दिशा में कब कदम उठाएगी।

– राम प्रकाश, कांगड़ा

 किसी बागबान ने अपनी जमीन पर बागीचा लगवाना हो,तो उसे किस दफ्तर में किसके पास आवेदन करना होगा।

– श्याम सिंह, सोलन

क्या आप जानते हैं

किसानों का सबसे करीबी दोस्त बना डीडी किसान

दूरदर्शन का डीडी किसान चैनल किसानों के लिए काफी मददगार साबित हो रहा है। मई,26,2015 से संचालित कृषि से जुड़ी हर जानकारी प्रदान करता है। यह डीडी फ्री डिश में चैनल नंबर 16 पर आता है। इसी तरह रिलायंस के चैनल 180 पर है। डिश टीवी पर 198, टाटा स्काई पर 500, सन डायरेक्ट पर 800 और वीडियोकॉन पर 746 पर भी आता है।

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