आलू बीज का वायरस 6 साल में होगा खत्म

By: Feb 17th, 2019 12:08 am

पिछले साल केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने लगाई थी बीज पर रोक,हरकत में आए सीपीआरआई ने शुरू की मिट्टी की ट्रीटमेंट किसानों को  करना होगा इंतजार

हिमाचली आलू के बीज में आए वायरस को खत्म करने में 6 साल का वक्त लगेगा। तब तक किसानों को हिमाचली आलू के बीज का इंतजार करना पड़ेगा। पिछले साल हिमाचली आलू के बीज सूत्र कृमि पाए जाने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने रोक लगा दी थी। इसके बाद हिमाचल समेत बाहरी राज्यों के किसानों में हड़कंप मच गया था। गौर रहे कि हिमाचली आलू की हिमालनी, गिगिधारी चंद्रमुखी व ज्योति किस्में समूचे भारत में बेहद लोकप्रिय हैं। इसका कारण यह है कि यह आलू जहां चिप्स आदि के लिए बेहतर माना जाता है,वहीं इसके पोषक तत्त्व भी इसे औरों से अलग बनाते हैं। ऐसे में रोक लगने के बाद किसानों में मायूसी का आलम था। खैर हिमाचल ने इस मसले पर डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है।  फिलहाल केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) ने कुफरी फार्म में मिट्टी की ट्रीटमेंट शुरू कर दी है। हिमाचल के आलू में सूत्र कृमि (निमेटोड) वायरस की पुष्टि के बाद सीपीआरआई के वैज्ञानिकों ने मिट्टी का सुधार कार्य आरंभ कर दिया है। वैज्ञानिक आधुनिक व परंपरागत तकनीक से मिट्टी की ट्रीटमेंट कर रहे हैं,ताकि वायरस को जड़ से खत्म किया जा सके।  सूत्र कृमि वायरस पाए जाने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने बीते वर्ष अक्तूबर माह के दौरान हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और तमिलनाडु के आलू बीज पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह सर्वे केंद्रीय एजेंसी द्वारा किया गया था। सीपीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक एनके पांडेय ने बताया कि सीपीआरआई के कुफरी में मिट्टी का ट्रीटमेंट शुरू हो गया है। वायरस को खत्म करने में 5-6 वर्षों का समय लगेगा।

– टेकचंद वर्मा, शिमला

वायरस से जमीन होती है खराब

विशेषज्ञों के अनुसार सूत्र कृमि (निमेटोड) वायरस से जमीन (मिट्टी) खराब हो जाती है। इससे आलू की पैदावार 10 फीसदी तक कम हो जाती है। हिमाचल में हिमालनी, गिगिधारी चंद्रमुखी व ज्योति किस्म का आलू बीज तैयार होता है।

डेंडिलियन से कैंसर भी डरता है

मंजू लता सिसोदिया सहायक प्राध्यापक, वनस्पति विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक, केंद्रीय विश्वविद्यालय, वाराणसी की कलम से

  शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इस फूल को फूंक मारकर हवा में उड़ाने का आनंद न लिया हो। इस फूल का पौधा आपने अपने खेतों, बागीचों फूलों की क्यारियों में अकसर देखा होगा। आमतौर पर इसे जंगली घास समझकर उखाड़ कर फेंक दिया जाता है, लेकिन सच यह है कि यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसका वनस्पतिक नाम टराक्सेकम आफिसनेल है। इसे अन्य नामों जैसे सिंहपर्णी, कुकरौधा और डेंडिलियन से भी जाना जाता है। यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। डेंडिलिन की जड़ पत्तियां एवं फूल सभी खाने योग्य हैं और अत्यंत पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं। इसमें विटामिन ए,बी, सी, आयरन, कैल्शियम, पोटाशियम आदि मौजूद हैं। इसमें कैंसर से लड़ने की क्षमता होती है, जो विभिन्न प्रकार के कैंसर कोशिकाओं को अपना निशाना बनाते हैं। इस पौधे से निकाले गए रस कैंसर कोशिकोओं को नष्ट करने में सहायक होता है।

यह वजन को कम करने का सबसे सस्ता और प्रभावी इलाज है। यह शरीर में वसा के अवशोषण को रोकता है। डेंडिलियन में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो कि हड्डियों की मजबूती और विकास के लिए जरूरी है। इसमें मौजूद विटामिन सी और ल्यूटोलिन बढ़ती उम्र के साथ  होने वाले हड्डियों के क्षय से बचाते हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट लीवर को अच्छे से काम करने में मदद करते हैं। इसका रस इंसुलिन के बनने को नियंत्रित करता है। जिससे खून में शुगर लेवर कम रहता है। इसमें मौजूद फाइवर कोलेस्ट्राल को कम करता है जो कि हाई ब्लड प्रेशर का मुख्य कारण है। डेंडिलियन की पत्ते को आप चबा सकते हैं। डेंडिलियन की जड़ चाय बनाने में भी इस्मेताल की जाती है। यानी डेंडिलियन का पूरा पौधा ही गजब के औषधीय गुणों से भरपूर है।

आढ़तियों ने डकारे बागबानों के दो करोड़

डा. रामलाल मार्कडेय कृषि मंत्री

झोला छाप आढ़तियों ने प्रदेश के बागबानों के दो करोड़ 15 लाख 75 हजार रुपए डकारे हैं। ऐसे आढ़तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए प्रदेश सरकार एक ठोस कानून भी लाएगी। विधायक राकेश सिंघा द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रदेश के कृषि मंत्री डा. रामलाल मार्कडेय ने यह जानकारी सदन को दी। डा. रामलाल मार्कडेय ने कहा कि वर्ष 2018-19 में एपीएमसी के पास किसानों को कमीशन एजेंटों द्वारा राशि नहीं देने के 101 मामले पंजीकृत हुए हैं। कमीशन एजेंटों के पास किसानों का 2.15 करोड़ से अधिक की राशि लंबित हैं। यह बात उन्होंने विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान विधायक राकेश सिंघा के सवाल के जवाब में कही। उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग ने अनसेटल कलेम के 90 मामले पंजीकृत किए हैं। एपीएमसी ने इन सभी को नोटिस जारी किए हैं।

किसान  बागबानों के सवाल

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40 किलो से 40 क्विंटल तक पहुंचाई खुम्ब पैदावार

मेहनत से चट्टानों पर भी मखमली रास्ते बनाए जा सकते हैं। इसी को सच कर दिखाया है झंडूता की बलघाड़ पंचायत के गांव पराहू निवासी जगदीश वर्मा ने। मई 1969 को स्व. प्रेम दास के घर पैदा हुए जगदीश के लक्ष्य को पूरा करने में वर्ष 2008 में उद्यान विभाग के तत्कालीन विषय विशेषज्ञ एंव वर्तमान उपनिदेशक उद्यान विभाग बिलासपुर विनोद कुमार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जगदीश को राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन में मशरूम उत्पादन के प्रशिक्षण के लिए भेजा। वर्ष 2009 में आत्मा परियोजना व कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से उन्होंने मात्र 20 बैग से मशरूम उत्पादन कार्य आरंभ किया। प्रथम वर्ष ही 40 किलोग्राम के मशरूम उत्पादन से उत्साहित जगदीश ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज वह 40 क्विंटल तक मशरूम उगा रहे हैं। जगदीश वर्मा द्वारा उत्पादित मशरूम की इतनी अधिक मांग है कि इसे झंडूता बाजार, भडोलियां, कलोल, जेजवीं, सुन्हाणी, शेर व बरोहा आदि की मार्किट में हाथों हाथ खरीद लिया जाता है। वर्मा मशरूम इकाई में वर्तमान में तीन बडें हॉल्ज में 1725 बैगों में केवल बटन मशरूम को ही उगाया जा रहा है। जगदीश वर्मा मशरूम उत्पादन सीजन में 12 से 18 घंटे तक निरंतर अथाह परिश्रम करते हैं। उन्होंने मशरूम के 40 क्विंटल उत्पाद को बढ़ाकर 50 क्विंटल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

इससे पहले आप क्या करते थे? और किसने आपका मार्ग दर्शन किया?

इससे पहले में दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था, फिर वहां पर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा और घर वापस आ गया। घर आकर मैंने टैंट हाऊस का काम किया, लेकिन मेरा गुजारा न होने लगा। फिर मेरा मार्गदर्शन उपनिदेशक उद्यान विभाग बिलासपुर के विनोद कुमार ने किया। और 2008 सितंबर, को उन्होंने मुझे अनुसंधान केंद्र चंबाघाट में खुम्ब उत्पादन की ट्रेनिंग के भेज दिया।

जब आपने यह कार्य आरंभ किया, तो मन क्या विचार आया?

मैंने शुरू में 20 बैग लगाए, मुझे मुनाफा हुआ, मेरा उत्साह बढ़ा। फिर मैंने 20 से 50 फिर 100  बैग लगाए। बीच में नुकसान भी हुआ पर मैंने अपने हौसले को कम न होने दिया और आगे बढ़ता गया।

किसानों, बेराजगारों को आप क्या राय देंगे?

किसानों, बेरोजगारों और युवाओं के लिए मैं यही संदेश देना चाहुंगा कि बैंक की एफडी भी पांच साल के बाद मुनाफा देती है, लेकिन स्वरोजगार योजनाओं के भरपूर लाभ के लिए आपको पांच साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इसलिए स्वरोजगार योजनाओं चाहे खुम्ब उत्पादन हो या कोई भी इनका लाभ उठाइए।

-कश्मीर मिन्हास, झंडूता

आबोहवा बचाने के लिए 5000 पौधे उगाने वाले महंत

महंत रुपेशर ने लाखों रुपए खर्च कर 5 हजार के बीच पेड़- पौधे लगाए हैं। फलदार व औषधीय पौधे लगाकर महंत समाज में पर्यावरण सरंक्षण का संदेश दे रहे हैं। झंडूता उपमंडल के अंतर्गत घंडीर क्षेत्र में 16 वर्षों से बेहतरीन कार्य को महंत हेतु बेहतरीन कार्य को अंजाम देकर क्षेत्र में इतिहास रचा है। वर्ष 2002 से लगातार प्रतिवर्ष 350 से 400 के बीच विभिन्न प्रकार के प्रजातियों के पेड़ पौधे लगाने का सिलसिला चला रखा है। पेड़- पौधों की रखवाली भी कर रहे और रोजगार के चलते 300 के करीब फलदार आम का बागीचा भी लगाया हुआ है।  रोपे जाने वाले पौधों को बंदरों से सुरक्षित रखने के लिए काफी कठिनाई रहती है। इनका मानना है वन विभाग और सरकार पेड़ पौधे लगाने पर प्रोत्साहित कार्यक्रम रखें। आमजन को साथ लगते जंगल क्षेत्र में प्रतिवर्ष पौधे लगाने का टारगेट हो और  जब 500 के करीब पौधे तैयार होने पर  उचित इनाम प्रोत्साहित राशि दें।

क्या आप जानते हैं

6 वर्ग मीटर से लेकर 1008 वर्ग मीटर तक माडल पोलीहाउस के निर्माण पर 85 फीसदी सबसिडी मिलती है।

प्रदेश में इस बार स्प्रिंकलर-ड्रिप जैसी सिंचाई सुविधा के दायरे में 14 हजार किसानों को लाभ देने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें 8500 हेक्टेयर को दायरे में लाने की योजना है।

अगर बागबान हैं तो ध्यान से इसे पढ़ें

नौणी यूनिवर्सिटी के अनुसार अगले पांच दिन मौसम परिवर्तनशील रहने व एक दो स्थानों पर हल्की बारिश की संभावना है। दिन व रात के तापमान में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा। हवा की गति दक्षिण पूर्व दिशा से चार से छह किलोमीटर प्रति घंटा चलने तथा औसतन सापेक्षित आद्रर्ता 50.91 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।

नौणी (सोलन)। नौणी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने बागबानों को सलाह दी है कि बागीचों में पौधों के तौलिए बनाने का कार्य करने के बाद गुठलीदार फलों में गोबर खाद व अनुमोदित नत्रजन उर्वरक आदि डालें। इसके बाद इन फलों के तौलिए में मल्चिंग करें, ताकि जमीन में उपलब्ध नमी की मात्रा को संचित किया जा सके। बादाम और खुमानी फलों में बोरोन तत्व की कमी के कारण दरार आ सकती है। इस कमी को दूर करने के लिए बोरिक एसिड का एक ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर गुलाबी कली आस्था में छिड़काव करें। मैंगोमालफोर्मेशन की रोकथाम के लिए 120 ग्राम पोटाशियम मेटाबाइसल्फाइड या नैप्थलिन एसिड 40 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

– मोहिनी सूद, नौणी

मटर-प्याज-लहसुन को ऐसे बचाएं

नौणी (सोलन)। प्याज व लहसुन में नत्रजन डालकर निराई-गुड़ाई करें। मटर में फलियां बननी शुरू हो गई हैं, इसलिए इसमें सिंचाई का विशेष ध्यान रखें। साथ में जंबें भी लगाना शुरू करें। मटर में यदि पाउडरी मिलयू का प्रकोप हो तो कैराथीन(50मिली/100 लीटर) या सल्फेक्स (250ग्राम /100 लीटर) का छिड़काव करें। गर्मी में लगाई जाने वाली सब्जियों जैसे टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च आदि के लिए खेत तैयार करें।

जीरो बजट खेती में जान झोंक रहे प्रवीण

कांगड़ा जिला के तहत भवारना ब्लाक से ठंडोल निवासी प्रवीण कुमार जीरो बजट खेती कर रहे हैं। उन्होंने अपने खेत में मटर, पालक, धनिया, मूली और फूलगोभी जैसी फसलें तैयार की हैं। प्रवीण डेयरी भी चलाते हैं। उनका मानना है कि सभी किसान भाइयों को जीरो बजट खेती की तरफ बढ़ना होगा। जीरो बजट खेती करने वाले किसानों को इसके लिए मदद मिलनी चाहिए। वह चाहते हैं कि प्रदेश का हर किसान जीरो बजट खेती के प्रति प्रेरित हो,जिससे कि इस दिशा में देखे जा रहे सपनों को पूरा किया जा सके।

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