चिलिंग आवर्ज की टेंशन खत्म

By: Feb 3rd, 2019 12:07 am

आड़ू प्लम के पौधों की ट्रांसप्लांट का सही वक्त प्रूनिंग नहीं की तो उसे भी कर लें

 

हिमाचल में हुई धांसू बर्फबारी ने भले ही लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी हों,लेकिन बागीचों के लिए यह अमृत जैसी है। कम से कम इस बार चिलिंग आवर्ज कोई मसला नहीं रहने वाले हैं। यह कहना है नौणी यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट डा मनमोहन का। डाक्टर मनमोहन कहते हैं कि आगामी 10 दिन प्लम,आड़ू और सेब आदि पौधों की ट्रांसप्लांट के लिए बेहतर हैं। इसके लिए कहीं टू बाई टू ,तो कहीं थ्री बाई थ्री की दूरी रख सकते हैं। यह संबंधित क्षेत्र की भौगोलिक दशा पर भी निर्भर करता है। डा मनमोहन का यह भी कहना है कि अगर कहीं बागबानों ने प्रूनिंग नहीं की है,तो वे इसे मुकम्मल कर सकते हैं।  आगामी 10 दिन में बागबान कुछ और काम भी निपटा सकते हैं।

– मोहिनी सूद, नौणी

 बागबान कुछ ऐसा करें

सेब के  तौलियों को खोद कर उनसे जड़ छेदक एकत्रित कर मार दें तथा बाद में तौलियों को क्लोरपायरिफॉस 20ईसी का 500 मिली प्रति 100 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर सिंचित करें।  खास बात यह कि आम के तने के चारों और 25 से 30 सैंमी चौड़ी अल्काथीन की पट्टी लपेटें।

मशरूम में स्प्रे करें

बटन मशरूम की फसल आने पर थैलों के ऊपर हल्के पानी से छिड़काव करें। कमरों में नमी बनाए रखने के लिए दीवारों व फर्श  पर भी पानी का छिड़काव करें। कमरे का तापमान 14 डिग्री सेल्सियस से नीचे आने पर हीटर जला कर कमरे का तापमान बनाए रखें। कमरों में दिन में 2-3 बार शुद्ध हवा आने दें।

प्याज को बेहतर बनाएं

मौसम शुष्क रहने के कारण जमीन में नमी की मात्रा बनाएं रखने के लिए सभी फसलों में यहां संभव हो सिंचाई  अवश्य करें। निचले क्षेत्रों में जहां प्याज की तैयार पनीरी रोपित न की गई  हो वहां 15 से 10 सैंमी फसलों पर रोपित करें।

गोभी-गेहूं बेचें आनलाइन
केंद्र के ई-नाम पोर्टल से अब तक जुड़े हिमाचल के 3 हजार किसान, खूब मिल रहा फायदा

भले ही हिमाचली किसान और बागबान बेहतर सुविधाआें को तरसता है, लेकिन जब भी मौका मिलता है, उसका फायदा जरूर उठाता है। अब केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए ई-नाम पोर्र्टल को ही ले लीजिए, इससे अब तीन हजार हिमाचली किसान जुड़ चुके हैं। इससे लग रहा है कि वह दिन दूर नहीं,जब हर हिमाचली किसान इस पोर्टल पर अपनी फसल यानी गोभी-आलू से लेकर गेहूं तक की मार्केटिंग करता नजर आएगा। गौर रहे कि अभी तक किसानों को अपनी फसल की मार्केटिंग के लिए  59 मार्केट हैं, जहां वे अपनी फसलों को बेच पाते हैं या उनका प्रचार कर पाते हैं। ऐसे में यह यह पोर्टल काफी लाभदायक साबित होने वाला है। सूचना तो यहां तक है कि पिछले वर्ष कृषि विभाग ने ई नाम ऑनलाइन पोर्टल पर 35 करोड़ की फसलें किसानों की बाहरी मार्केट में बेची हैं। अब आप यह भी जान लीजिए कि आखिर कैसे इस पोर्टल से जुड़ना है। किसानों को ऑनलाइन अपने प्रोडक्ट का प्रचार करने के लिए विभाग की वेबसाइट पर जाना है, वहां पर ई नाम पोर्टल पर अपना नाम एंटर करना होगा। इसके साथ ही अपनी किसी भी किस्म की फसल की फोटो और उसके फायदे के साथ उसे ऑनलाइन वेबसाइट पर चढ़ाने होंगे। बस हो गया काम। विभाग का दावा है कि अगर इस पोर्टल के साथ ज्यादा संख्या में किसान जुड़ जाते हैं, तो इससे बेहतर फायदा किसानों को मिलेगा। प्रदेश में ताजा बर्फबारी होने के बाद इस बार रबी और गेहूं की अच्छी फसल होने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में कृषि विभाग ने भी इस बार किसानों की फसलों के प्रचार के लिए ऑनलाइन पोर्टल को चुना है।

  • प्रतिमा चौहान, शिमला

जब किसान वायरल करेगा अपना प्रोडक्ट

ई-नाम पोर्टल में किसान अपनी फसलों की पहचान दिला सकते हैं। जो भी फसल तैयार हो जाती है तो उसे फोटो क्लिक कर ई-नाम पोर्टल पर वायरल कर सकते हैं। उसके बाद उनकी मार्केटिंग भी होगी। जिससे अच्छी कीमत भी मिलेगी।

बिच्छू घास है खास

मंजू लता सिसोदिया सहायक प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

प्रदेश भर मे खेतों के किनारे पाया जाना बाला अर्टिका डीओईके पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। अर्टिको डीओईके पौधे का प्रयोग कई औषधियों के लिए किया जाता है और इस पौधे के कोमल और छोटे पत्ते सब्जी बनाने के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं। आर्टिको डीओईके पौधे को प्रदेश में कुगश, कुक्शी, बिच्छू घास और नीटल लीफ  जैसे कई नामों से जाना जाता है। अर्टिका डीओईके के औषधीय गुण हार्मफुल केमिकल को शरीर से बाहर निकालते हैं, शूगर की बीमारी को रोकते हैं, रक्तचाप और बवासीर को कम करते हैं, गुर्दों और पिताशय की थैली के स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं और हार्मोनल गतिविधि को नियमित करने के साथ प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देते हैं। अर्टिका डीओईके के औषधीय गुण महावारी प्रबंधन का भी काम करते हैं। यह पौधा विटामिन ए, सी, कैल्शियम और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है। कुगस में मौजूद विटामिन सी और आयरन की उच्च मात्रा का संयोजन लाल रंग की कोशिकाओं के उत्पादन को भी उतेजित करता है। इस पौधे में मिथानोइक एसिड पाया जाता है, जो दर्द निवारक का काम करता है।

– राजू धलारिया, नेरचौक

हिमाचली दूध की पंजाब में कद्र

जिला कांगड़ा के ब्लॉक इंदौरा का मंड एरिया हिमाचल भर में खेतीबाड़ी ,बागबानी के साथ साथ डेरी फार्मिंग के लिए पंजाब में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। दूध मंड खेस्त्र के ग्रामीणों का आय का स्रोत भी है जिस कारण किसान अपनी होल्सटीयन फ्रीजन, रेड सिंधी और दोगली किस्म की गायों और भैंसों द्वारा दूध की पैदावार का 96 प्रतिशत से अधिक पंजाब के सीमावर्ती शहरों हाजीपुर, तलवाड़ा, मुकेरियां , दीनानगर और पठानकोट में बेचने पर मजबूर है। दूध के ब्यापारियों द्वारा अपने निजी वाहनों मोटरसाइकिल गाडि़यों और टैंकर के माध्यम से हिमाचल के द्वारा उत्पादित दूध ले जाकर पंजाब में बेचा जा रहा है। पंजाब सीमा से सटे मंड एरिया में हिमाचल मिल्क फेडरेशन द्वारा पंजाब की तर्ज पर दूध का रेट न दे पाने के कारण हिमाचल के किसान मजबूरन अधिक समय और खर्चा करके पंजाब के शहरों में दूध का मंडी करण कर रहा है। इसी कारण दूध के रेट में अत्यधिक अंतर के कारण हिमाचल मिल्क फेडरेशन के एक हजार कैपिसिटी बाले सरकारी मीलवां चिलिंग सेंटर में चार दूध मिल्क कोऑपरेटिव सोसाइटीयों के माध्यम से मात्र 200 लीटर प्रतिदिन दूध ही पहुंच पा रहा है जो कि चिंता का विषय है जबकि मंड खेस्त्र में अनुमानित 5000 लीटर से अधिक दूध की प्रति दिन पैदावार होती है

हिमाचल मिल्क फेडरेशन 3.5 फैट और 7.5 एसएनएफ  स्टैंडर्ड दूध का रेट 20 रुपए 97 पैसे प्रति लीटर दे रहा है जिससे किसानों को उनकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल रहा है जबकि पंजाब में प्राइवेट इसी स्टैंडर्ड का दूध 30 रुपए से भी ऊपर बिक रहा है। पंजाब में दूध के अधिकतर व्यापारी फैट पर फ्लैट रेट देकर खरीद करते हैं। डायरेक्टर सतपाल कटोच का कहना है कि स्वयं उन्होंने कई बार मीटिंग में आला अधिकारियों को अपनी इस समस्या से अवगत कराया है कि दूध का दाम हिमाचल की तर्ज पर नहीं बल्कि पंजाब की तर्ज पर दिया जाए जिससे हिमाचल में दूध की सप्लाई की अभूतपूर्व बढ़ोतरी भी होगी।

मंड एरिया के ग्रामीणों चैन सिंह, करण कटोच, सरवन सिंह, प्रेम सिंह, पवन कुमार, तिलक राज, राजेश कटोच, कमलजीत भम्बोता, धर्म सिंह, नारायण सिंह, कुलदीप सिंह, ने हिमाचल सरकार से मांग की है कि हिमाचल में पंजाब के तर्ज पर दूध का दाम तय किया जाए जिससे किसानों को सही मूल्य मिले वहीं हिमाचल की आय में भी बढ़ोतरी हो। अनूप कटोच भारतीय किसान संघ हिमाचल प्रदेश में बतौर सचिव पद पर कार्य कर चुके। उनका कहना है कि सरकार द्वारा दूध का कम रेट और वेटरनरी विभाग द्वारा सहयोग न मिलने से डेरी फार्मिंग मुश्किल दौर से गुजर रहा है तथा पशुओं का आवारा कर देना तथा दुधारू पशुओं का ड्राई टाइम में खर्चा पूरा न होना किसानों की समस्या बनी हुई है तथा युवा इस कारोबार से दरकिनार कर रहे हैं, जिस कारण सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर भी इसकी विफलता साफ  नजर आ रही है ।

– सुनील कुमार, मीलवां

फसलों को कैसे बचाएं

गेहूं में जहां खरपतवारों में 2-3 पत्तियां आ गई हों, यानी गेहूं की बिजाई के 30-35 दिन बाद तो उनके नियंत्रण के लिए वेस्टा नामक रसायन की 16 ग्राम मात्रा 30 लीटर पानी में घोल कर प्रति कनाल की दर से छिड़काव करें। अथवा जहां घास कुल के खरपतवारों के साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की समस्या भी हो तो वहां क्लोडिनाफॉप की 24 ग्राम (10 डब्ल्यूपी) या 16 ग्राम (15 डब्ल्यूपी) प्रति कनाल व उसके पश्चात 2,4-डी का छिड़काव करें।

छिड़काव के लिए फलैटफैन नोजल का इस्तेमाल करें। छिड़काव से दो-तीन दिन पहले एक हल्की सिंचाई कर सकते हैं। छिड़काव आकाश साफ रहने पर करें। गेहूं में छिड़काव पंप से ही करें। रसायन को रेत में मिश्रित करके छट्टा न दें। छिड़काव के बाद कम से कम एक सप्ताह सिंचाई न करें और जब भी करें, सिंचाई हल्की हो। पंप को छिड़काव से पहले व बाद में अच्छी तरह धो लें।

गोभी-सरसों को ऐसे बचाएं

गोभी सरसों में फूल आने से पहले यूरिया 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। पौधों की संख्या अगर खेत में अधिक हो तो यूरिया डालने से पहले फालतू पौधों को निकालें।

सब्जी उत्पादन : सही दूरी अपनाएं

मूली की सुधरी किस्म पूसा हिमानी की बीजाई समतल खेतों में या मेढ़ें बनाकर 20-25 × 5 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। खेतों में बीज की सही मात्रा डालने के लिए बीजाई से पहले बीज में बराबर मात्रा में सूखी रेत मिलाएं।  फूलगोभी, बंदगोभी तथा ब्रॉकली में फूल बनने  का समय नजदीक आ रहा है। इन सब्जियों में नत्रजन 40-50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर डालें। प्याज की फसल में निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन (40-50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर) खेतों में डालें। आलू में मिट्टी चढ़ाने के समय सूरिया 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फसलों में डालें।

फसल संरक्षण : तेले का खात्मा करें

अगर सरसों के किनारे पौधों पर तेले का प्रकोप हो तो उन पौधों को नष्ट कर दें। सरसों, गोभी सरसों इत्यादि ेितलहनी फसलों में तेले के अत्याधिक प्रकोप होने पर डाइमिथोएट (रोगर 30 ईसी) या साइपरमैथरिन 10 ईसी नामक कीटनाशी (1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से) का छिड़काव करें। गोभी वर्गीय सब्जियों में तेले व पत्ते खाने वाली सुंडी के प्रकोप के लिए मैलाथियान 50ईसी (1 मिलीलीटर के हिसाब से) का छिड़काव करें। चने में फली-छेदक सुंडी के आक्रमण के प्रति सावधान रहें ताकि इसका अधिक प्रकोप होने की स्थिति में तुरंत एनपीवी (350-500 एलई प्रति हेक्टेयर) के घोल कर छिड़काव करें। 50 प्रतिशत फूल आने पर अजेडिरोक्टिन (0.03 प्रतिशत) या मोनोक्रोटोफास 36 एसएल 875 मिलीलीटर को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

 – जयदीप रिहान, पालमपुर

माटी के लाल

गोबर से उत्तम खेती

बेदी के पूरन चंद भाटिया ने रासायनिक खाद के बिना अपने बागबान में मटर, गोभी, मूली तैयार की है। इन्होंने अपने बागबान में रासायनिक खाद की जगह गोबर और गोमूत्र का ही प्रयोग किया है। इनका कहना है की हमारे इस प्रयोग से बहुत अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

यह विचार या इस दिशा में क्यों मुड़े?

सितंबर या अक्तूबर के लास्ट में पालमपुर में नेचुरल फार्म पर कैंप लगा था। इस में डा. सुभाष पालेकर जिनको पद्मश्री आवार्ड मिला है, इन्होंने खेती के बारे में छह दिन तक लगातार जानकारी दी। हमें यह विकल्प बहुत अच्छा लगा और इस तरह से खेती करने का सोचा।

कैसे संभव हुआ और परिणाम आने में कितना समय लगा?

हमने  इसका परिणाम जानने के लिए इसका एक डेमो लगाया था और परिणाम बहुत अच्छा रहा।

किसान क्यों पीछे मुड़ कर देखें, पक्ष में क्या कहेंगे?

इसमें रासायनिक खाद हमें खरीदने नहीं पड़ती और जिनके घर में पशु हों, वह तो खुद ही कीटनाशक खाद बना लेंगे।

नगरोटा सूरियां के प्रीतम सिंह बेच रहे देशी खाद से तैयार सब्जियां

विकास खंड नगरोटा सूरियां के तहत गांव बलदोआ के  किसान प्रीतम सिंह ठाकुर ने अपनी करीब 28 कनाल भूमि पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत द्वारा प्रेरित लोगों को जहर मुक्त सब्जियों का उत्पादन कैसे करें इस पर किसान नेता प्रीतम ठाकुर ने बहुत ही सुंदर कार्य करते हुए लोगों को ये सब्जियां बेच रहे हैं, जो कि जहर मुक्त हैं और देशी खाद से पैदा की जाती हैं किसी प्रकार की कोई मिलावट या अंग्रेजी दवाई का प्रयोग नहीं  किया जाता। किसान प्रीतम सिंह ने ‘दिव्य हिमाचल’ से बातचीत करते हुए बताया कि इस खेती करने पर पैसा कम खर्च होता है, पर मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए उनके साथ उनके बेटे तथा बहुएं पूरा साथ दे रही हैं वह इस खेती में किसी प्रकार की दवाइयां अन्य अंग्रेजी खाद आदि का प्रयोग नहीं करते हैं गाय का गोमूत्र तथा देशी चीजों का स्प्रे करके सब्जियों में प्रयोग करते हैं। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि लोगों को सरकार इस बारे जागरूक करें तथा छोटे किसानों को सहायता दें ताकि वे सभी लोगों को जहर मुक्त सब्जियों का उत्पादन करें।

            – रामस्वरूप शर्मा, नगरोटा सूरियां

किसान  बागबानों के सवाल

टमाटर में पता धब्बा रोग की रोगथाम के लिए किस दवाई का छिड़काव करें?

बंद कमरे में खुंब उत्पादन के लिए जलवायु कैसी हो सफेद खुंब की फस्ल में कमरे का तापमान कितना बनाए रखें ?

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