प्लेग का खतरा, सर्विलेंस सेंटर पर ताला

बर्फबारी में बढ़ी टेंशन; चूहों-पब्लिक के सैंपल लेने वाला कोई नहीं, स्टाफ की कमी बन रही दिक्कत

शिमला  – शिमला में लगातार बर्फबारी से प्लेग का खतरा है और चूहों और मानव खून के सैंपल जांच के लिए नहीं लिए जा रहे हैं। इससे बड़ी चौंकाने वाली बात और क्या हो सकती है कि प्रदेश का प्लेग सर्विलेंस सेंटर ही बंद है। इसके नहीं चलने का कारण वहां स्टाफ की कमी सामने आया है। नतीजा यह है कि प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की ओर से शिमला के ऊपरी क्षेत्रों में चूहों और मानव खून का एक भी सैंपल इस दौरान लगातार बर्फबारी में नहीं लिया गया है। गौर हो कि बर्फ बारी में सबसे ज्यादा जंगली चूहे घरों के अंदर आते हैं और प्लेग का खतरा इस दौरान सबसे ज्यादा रहता है। फिलहाल अब यह पता लगाना बेहद मुश्किल है कि वहां बर्फबारी के दौरान इस बीमारी के फैलने की आशंका तो नहीं। गौर करने वाली बात तो यह भी है कि शिमला के ऊपरी क्षेत्रों में फैले प्लेग का दस वर्ष का राउंड सर्किल पूरा हो गया है। विशेषज्ञों ने साफ किया है कि दस वर्ष के बाद बीमारी फैलने की अन्य क्षेत्रों में आशंका ज्यादा रहती है लिहाजा शिमला के ऊपरी क्षेत्रों में समय दर समय मानव के खून और चूहों के सैंपल जांच के लिए लैब भेजने बेहद आवश्यक रहते हैं। बेहद खतरनाक बीमारी प्लेग की स्थिति देखें तो पिछले वर्ष अगस्त में बंगलूर से टीम श्मिला आई थी। इस टीम ने शिमला से चूहों और मानव खून का सैंपल लिया है, लेकिन डब्लूएचओ भी यह साफ कर चुका है कि राज्य को भी प्लेग पर नजर रखने के लिए अपना सर्विलेंस सेंटर रखना जरूरी रहता है, जो प्रदेश स्वास्थ्य विभाग नहीं कर पा रहा है।

2002 में रोहड़ू में मचा था आतंक

प्रदेश के अन्य क्षेत्र भी प्लेग को लेकर संवेदनशीलता के दायरे में हैं, जिस पर सतर्कता बरतना जरूरी है। वर्ष 2002 में शिमला के रोहड़ू क्षेत्र में प्लेग ने काफी आतंक मचाया था, जिसमें प्रदेश के डा. रोटेला का काफी योगदान रहा है। जब यह वायरस शिमला में फैला था, तो उस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को शिमला आना पड़ा था। यह वायरस इतना खतरनाक होता है कि जलाने से भी नहीं जलता है।