भारत के सामने नए अवसर

By: Feb 11th, 2019 12:08 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

चीन की अर्थव्यवस्था में धीमापन आ रहा है। चीन में आई आर्थिक मंदी एवं युवा कार्यशील आबादी की कमी के कारण बढ़ती श्रम लागत की वजह से चीन में निवेश घट रहे हैं और औद्योगिक उत्पादन में मुश्किलें बढ़ रही हैं। दुनिया के निवेशक बड़ी संख्या में चीनी बाजारों के बजाय नकदी का प्रवाह भारत समेत नई उभरती अर्थव्यवस्था वाले बाजारों में कर रहे हैं। भारत अमरीकी उद्योग, कारोबार के लिए नया निवेश हब बन सकता है…

यकीनन इस समय देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि नए बदलते हुए वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम के कारण भारत के लिए कई आर्थिक मौके उभरकर दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में सात फरवरी को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) ने वैश्विक व्यापार से संबंधित रिपोर्ट में कहा है कि अमरीका-चीन के बीच ट्रेड वार से भारत के निर्यात में वर्ष 2019 में 3.5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। चीन की अमरीका के साथ कारोबारी जंग से चीन में अमरीका से आने वाले पदार्थों की आवक कम हो गई है और भारत से चीन के बाजार में इन पदार्थों का निर्यात बढ़ा भी है। ट्रंप प्रशासन के कठोर रुख के कारण अमरीका की फर्में चीन के साथ सौदे करने में डर रही हैं। चीन इस समय श्रम आधारित उत्पादों के विनिर्माण से दूर हो रहा है। मूल्यवर्धन और प्रदूषण घटाने पर उसका ध्यान केंद्रित होने की वजह से देश भर में इकाइयां बंद हो रही हैं। ऐसे में भारत से कपास, लौह अयस्क, आर्गेनिक केमिकल्स तथा विर्निमित उत्पादों के लिए चीन में नई बाजार संभावना दिखाई दे रही है। पिछले साल जून से लेकर नवंबर 2018 के बीच भारत से चीन को निर्यात में 32 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। चीन को आर्गेनिक केमिकल्स, लौह अयस्क और कपास जैसे कच्चे माल की बड़ी मात्रा में जरूरत बढ़ती जा रही है। इन पदार्थों की हिस्सेदारी भारत से चीन को होने वाले 13.33 अरब डालर निर्यात बास्केट में 70 प्रतिशत से ज्यादा है। निस्संदेह चीन की अमरीका के साथ चल रही कारोबारी जंग के कारण भारत से अमरीका को निर्यात में वृद्धि हो रही है। जून से नवंबर 2018 के बीच भारत से अमरीका को निर्यात में 12 फीसदी वृद्धि हुई है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि चीन में दिखाई दे रही मंदी का भी भारत को फायदा मिल सकता है। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) ने कहा है कि चीन में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2018 में घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई है।

यह दर सन् 1990 से यानी पिछले 28 वर्षों में अब तक की सबसे धीमी जीडीपी वृद्धि दर है। इससे यह संकेत मिलता है कि चीन की अर्थव्यवस्था में धीमापन आ रहा है। चीन में आई आर्थिक मंदी एवं युवा कार्यशील आबादी की कमी के कारण बढ़ती श्रम लागत की वजह से चीन में निवेश घट रहे हैं और औद्योगिक उत्पादन में मुश्किलें बढ़ती जा

रही हैं। दुनिया के निवेशक बड़ी संख्या में चीनी बाजारों के बजाय नकदी का प्रवाह भारत समेत नई उभरती अर्थव्यवस्था वाले बाजारों की ओर प्रवाहित करते दिखाई दे रहे हैं। भारत अमरीकी उद्योग, कारोबार और कंपनियों के लिए नया निवेश हब बन सकता है। चूंकि कई अमरीकी कंपनियां लगातार चीन में उद्योग, कारोबार करने में बढ़ती दिक्कतों की शिकायत कर रही हैं। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण मेन्यूफैक्चरिंग उत्पादन में चीन से अच्छी स्थिति रखने वाला भारत अमरीकी अर्थव्यवस्था में चीन की जगह ले सकता है। निश्चित रूप से चीन की मंदी और चीन-अमरीका ट्रेड वार के बीच भारत के लिए दुनिया का नया कारखाना बनने का मौका भी है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत चीन और पश्चिमी देशों को पछाड़कर दुनिया का नया कारखाना बन सकता है। वैश्विक शोध संगठन स्टेटिस्टा और डालिया रिसर्च के द्वारा मेड इन कंट्री इंडेक्स 2018 में उत्पादों की साख के अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि गुणवत्ता के मामले में मेड इन इंडिया मेड इन चायना से आगे है। स्थिति यह है कि कई आर्थिक मापदंडों पर भारत अब भी चीन से आगे है। विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में भारत ने विश्व की एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के तौर पर पहचान बनाई है। भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है। आईटी, साफ्टवेयर, बीपीओ, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं। आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं। वैश्विक आर्थिक अध्ययन बता रहे हैं कि भारत आने वाले वर्षों में दवा, रसायन निर्माण और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में सबसे तेजी से उभरने वाला देश बनेगा। भारत की श्रमशक्ति का एक सकारात्मक पक्ष यह है कि इस समय भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में सस्ती भी है। भारत की पहचान प्रतिभाओं के गढ़ के रूप में है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि उद्योग-कारोबार और प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में किए जा रहे विभिन्न प्रयासों से भारत दुनिया के परिदृश्य पर तेजी से उभरता हुआ दिखाई दे रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत में सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार तथा नई प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया की कंपनियां तेजी से कदम बढ़ा रही हैं। अमरीका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां नई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय आईटी प्रतिभाओं के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारत में अपने ग्लोबल इन हाउस सेंटर (जीआईसी) तेजी से बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स, कृत्रिम बुद्धिमता और डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में शोध और विकास को बढ़ावा देने के लिए लागत और प्रतिभा के अलावा नई प्रौद्योगिकी पर इनोवेशन और जबरदस्त स्टार्टअप माहौल के चलते दुनिया की कंपनियां भारत का रुख कर रही हैं। देश में जिस तरह प्रतिभाओं का उपयोग बढ़ रहा है, उसी तरह से एक बार फिर इस समय अमरीका सहित दुनिया के अधिकांश देशों में भारतीय प्रतिभाओं के लिए नई संभावनाएं बन रही हैं। हाल ही में सात फरवरी की अमरीका की सीनेट में फेयरनेस फॉर हाई स्किल्ड इमिग्रेंट्स एक्ट पेश किया गया। अमरीका के ग्रीन कार्ड पर देशों की अधिकतम सीमा खत्म करने के इस विधेयक के पारित होने से भारतीय पेशेवरों को लाभ होगा। अमरीका की स्थायी नागरिकता के बाद ये पेशेवर प्रवासी भारतीय भारत के लिए लाभप्रद होंगे। इतना ही नहीं, कुछ समय पहले तक भारतीय पेशेवरों के लिए दुनिया के जो देश दरवाजे बंद करते हुए दिखाई दे रहे थे, वे देश स्वागत के साथ फिर से दरवाजे खोलते हुए दिखाई दे रहे हैं।

विगत 11 जनवरी को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट करके एच-1बी वीजा धारकों को आश्वासन दिया कि उनका प्रशासन नए वर्ष 2019 में जल्द ऐसे बदलाव करेगा, जिससे उन्हें अमरीका में रुकने का भरोसा मिलेगा और नागरिकता लेने के लिए संभावित रास्ता सरल बनेगा। ऐसे में भारत की पेशेवर प्रतिभाएं अमरीका सहित दुनिया के विभिन्न देशों में अच्छा रोजगार प्राप्त करके भारत के लिए  अधिक विदेशी मुद्रा भेजते हुए दिखाई दे सकती हैं। यदि हम देश और दुनिया में उभरते  नए आर्थिक मौकों को अपनी मुट्ठियों में लेना चाहते हैं, तो हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा। हमें आर्थिक सुधारों को गतिशील करना होगा। देश में कर सरलीकरण को आगे बढ़ाना होगा। जीएसटी को सरल करना होगा।

दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की चुनौतियों के बीच जरूरी होगा कि सरकार और उद्योग-कारोबार एवं तकनीकी क्षेत्रों से जुड़े संगठन के द्वारा समन्वित रूप से देश और दुनिया की जरूरतों के मुताबिक देश की युवा आबादी को उच्च तकनीकी कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित करके कार्यक्षम बनाने की नई रणनीति के  साथ आगे बढ़ना होगा। निश्चित रूप से ऐसा होने पर ही भारत देश और दुनियाभर में उभरते हुए नए आर्थिक मौकों को अपनी मुट्ठियों में लेकर विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा।


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