कैंसर के बेहतर इलाज का रास्ता साफ

By: Mar 16th, 2019 12:05 am

शिमला —नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फेर मंे फंसे टर्शरी कैंसर संेटर को बनाने के लिए अब एनजीटी से स्वीकृति मिल गई है। प्रदेश को ये काफी बड़ी सफलता हाथ लगी है। जिसमंे राज़धानी मंे अटके पड़े प्रदेश के इकलौते कैंसर टरशरी संेटर के नक्शे को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मंजूरी दी है। पांच वर्ष से अटके पडे़ इस प्रोजेक्ट के पास होने के बाद अब कैंसर अस्पताल के डॉक्टर भी काफी खुश है। जिससे वह हाइटैक मशीनांे से मरीजा़ंंे को इलाज दे पाएंगें। गौर हो कि संेटर के उक्त भवन का ये मामला एनजीटी मंे लगा था। दो बार सुनवाई हो गई थी लेकिन कुछ सकारात्मक जवाब नहीं मिल पा रहा था पिछले सप्ताह हुई एनजीटी की सुनवाई मंे केंसर टर्शरी संेटर को खोलने के लिए हामी भर दी गई है। प्रदेश सरकार  को इसका स्वीकृति पत्र भी मिल गया है। जानकारी के मुताबिक लगभग 45 करोड़ की राशि सरकार द्वारा जारी कर दी गई थी लेकिन यदि एनजीटी की मंजूरी नहीं मिलती तो 45 करोड़ की राशि लैप्स हो जानी थी। बताया जा रहा है कि उक्त 45 करोड़ की राशि मंे से तीस फीसदी कैंसर के इलाज मंे मददगार साबित होने वाली मशीनांे और 70 फीसदी इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया जाना है। ये टर्शरी कंंेद्र प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे नॉर्थ जा़ेन के मरीजांे को काफी सहायक सिद्व होने वाला है। जानकारी के मुताबिक एनजीटी के समक्ष नगर निगम और टीसीपी ने अपना पक्ष रखा था। जिस पर एनजीटी मंे हुई सुनवाई मंे प्रदेश के हाथांे ये एक काफी बड़ी सफलता हाथ लगी है।

हर माह सौ मरीज़ किए जा रहे पीजीआई रेफर

पैट सिटी स्कैन कैंसर जांच क ो लेकर ये एक अहम टेस्ट हैं। जिसमंे ये पता लगाया जा सकता है कि आखिर मरीज़ मंे कैंसर की कौन सी स्टेज है। जब मरीज़ मंे कैंसर की पुष्टि होती है तो ये पता लगाना होता है कि आखिर मरीज के शरीर मंे कैंसर कौन सी स्टेज मंे है। वहीं गामा कैमरा टेस्ट भी अभी अस्पताल मंे नहीं हो रहा है। जिसमंे हर माह अस्पताल से लगभग सौ मरीजा़ंे को पीजीआई के लिए इस अहम टेस्ट के लिए रेफर किया जाता है। निजी स्तर पर इस टेस्ट की कीमत लगभग बीस हजा़र है। टर्शरी संेटर के खुलने से इस सुविधा को भी शुरू किया जा सकता है।

इनका भी योगदान

गौर हो कि इस योजना को शुरू करने मंे कैंसर अस्पताल के पूर्व विभाग अध्यक्ष डॉ सीम, डॉ विकास और संयुक्त निदेशक डॉ सूद, लॉ ऑफिसर रवि शुक्ला, मयंक, एसीएफ, टीसीपी और स्वास्थ्य के अधिकारियांे का काफी योगादन रहा है। बताया जा रहा है कि कैंसर मरीजा़ंे के लिए काफी बड़ा फैसला एनजीटी से मिला है।

प्रदेश में इलाज करने पर अभी विश्वास नहीं

प्रदेश में अभी भी गंभीर रोगों के इलाज पर साधन संपन्न लोग विश्वास नहीं दिखा पा रहे हैं। अब टर्शरी केंद्र खुलता है तो प्रदेश मंे शायद से तस्वीर बदल जाए। अभी तक वीआईपी ने कैंसर अस्पताल शिमला मंे इलाज ही नहीं करवाया है। इस बात को आईजीएमसी के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि वीआईपीस और संपन्न तबका संबंधित गंभीर बीमारी क ो लेकर प्रदेश के डॉक्टरांे से सलाह भले ही मांगते हैं लेकिन जब इलाज करवाने की बात आती है तो वह प्राइवेट हॉस्पिटल या फिर प्रदेश से बाहर जा रहे हैं।

बढ़ रहा है कैंसर मरीजों का ग्राफ

प्रदेश में कैंसर मरीजों  का ग्राफ बढ़ रहा है। हर वर्ष दो हजा़र से अधिक  मरीज़ विभिन्न कैंसर से ग्रसित मरीज़ अस्पताल मंे इलाज करवाने आ रहे हैं और उन्‍हें आउट डेटिड मशीनांे से इलाज मिल रहा है। अब टर्शरी केंद्र के खुलने से कैंसर मरीजांे़ को राहत मिलेगी। जिससे मरीज़ प्रदेश से बाहर इलाज के लिए नहीं दौड़ंेगें।

गरीब तबके पर रहता था जान का खतरा

कैंसर अस्पताल में आने वाले निम्म तबके के लिए यह स्थिति किसी जान के खतरे से कम नहीं दिख रही थी क्योंकि प्रदेश मंे न तो कहीं भी पैट स्कैन का सरकारी स्तर पर यह टेस्ट हो रहा है और न ही कहीं प्राइवेट स्तर पर टेस्ट किया जा रहा है। अब इस संेटर के खुलने से बेहतर मशीनें लाने की उम्मीद बंधी है।


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