खुमानी पलम  पर खतरा

By: Mar 17th, 2019 12:08 am

लगतार बर्फ और आड़ू पर भी मंडराया संकट

हमारी टीम ने पाया कि मौसम के बिगड़े तेवरों का हालांकि ज्यादा असर पहाड़ी एरिया में होने की आशंका है, लेकिन मैदान भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। प्रदेश के शिमला, सिरमौर, सोलन समेत निचले इलाकों में स्टोन फ्रूट का बड़ा बिजनेस रहता है

बर्फ और बारिश की मार अब खुमानी और प्लम पर पड़ने का डर बढ़ गया है। यही हाल रहा,तो इस बार आड़ू भी मटियामेट हो जाएगा। ‘दिव्य हिमाचल’ ने  प्रदेश में स्टोन फ्रूट पर हो रहे बर्फ और बारिश के साइड इफेक्ट खंगालने की कोशिश की। इसी के कुछ अंश ‘अपनी माटी’ के इस अंक में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। हमारी टीम ने पाया कि  मौसम के बिगड़े तेवरों का हालांकि ज्यादा असर पहाड़ी एरिया में होने की आशंका है, लेकिन मैदान भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। प्रदेश के शिमला, सिरमौर, सोलन समेत निचले इलाकों में स्टोन फ्रूट का बड़ा बिजनेस रहता है। अकेले रामपुर के मैदानी इलाकों में यह 80 लाख रुपए तक का कारोबार है। प्रदेश में कुल 38671 हेक्टेयर पर स्टोन फ्रूट की खेती होती है। जानकारी के अनुसार मौजूदा समय स्टोन फू्रट की फ्लावरिंग स्टेज का रहता है। अगर इसी तरह से तापनमान में भारी गिरावट रही तो निश्चित तौर से प्लम और बादाम की फसल चौपट हो सकती है। प्रदेश के कई इलाकों में प्लम और आड़ू की फ्लावरिंग शबाब पर है। ऐसे में फ्लावरिंग के समय मौसम का अनुकूल रहना जरूरी होता है। आजकल पारे में खासा उतार चढ़ाव चल रहा है। ऐसे में फ्लावरिंग पर विपरित असर पड़ना स्वभाविक है। खासकर पारा लुढ़कने से मधुमख्यों की परागण क्रिया सही ढ़ग से नहीं हो पाती। ऐसे में परांगण क्रिया को बेहतर फसल के लिए काफी अहम माना जाता है। मौसम के बदले मिजाज से ठंड बढ़ गई है, जिस कारण बादाम और पलम के बागीचोें में मधुमख्यिं दिखाई नहीं दे रही हैं। प्रगतिशील बागबान राधाकृष्ण कायथ, देवेंद्र कायथ, रविंद्र कायथ, सरस्वती ठाकुर, विजय ठाकुर और नेत्र ठाकुर का कहना है कि पूरे वर्ष की मेहनत मौसम पर आकर टिक गई है, जिस तरह से सर्दियों में इस बार का मौसम चल रहा था उसे देखकर लग रहा था कि इस बार अच्छी फसल होगी, लेकिन ऐन वक्त पर मौसम साथ नही दे रहा है।

– महेंद्र बदरेल, रामपुर बुशहर

बंदरों से डरें नहीं नींबू घास लगा दें

डा. प्रदीप कुमार

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर

क्या आपको पता है साबुन या सेंट में नींबू की खुशबू कहां से आती है। उसमें असल में नींबू नहीं होता, बल्कि नींबू घास होती है। लेमन ग्रास कहने को तो घास है, लेकिन इसमें वे गुण हैं, जिससे बड़े जहां सेहत बनती है, वहीं बंदर और नीलगाय जैसे फसलों को नुकसान करने वाले पशु फटकते तक नहीं हैं। निचले एवं बारानी क्षेत्रों के किसान जो की जंगली जानवरों के कारण खेती से मुंह मोड़ रहे हैं उनके लिए लेमन घास जैसी सगंधित फसलें एक अच्छा विकल्प है क्योंकि बंदर, नीलगाय, जंगली सुअर इस फ सल को नुकसान नहीं करते हैं। खास बात यह कि एक बार रोपित करने के  5-6 वर्षों तक इसकी खेती की जा सकती है। लेमन घास के सुगंधित तेल साबुन और डिटर्जेंट उद्योग में किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके तेल की कीमत लगभग 1400-1600 प्रति किलोग्राम है। एक कनाल क्षेत्र से लगभग 4.5 किलो ग्राम तेल प्राप्त किया जा सकता है जिससे लगभग 3000 से 4000 रुपए शुद्ध लाभ प्रति कनाल बंजर एवं बेकार पड़ी भूमि से प्राप्त किया जा सकता है।

– जयदीप रिहान,पालमपुर

भगतपुर यह गांव  नहीं बीजों का खजाना

गेहूं-धान उगाने में भी नंबर वन है शाहतलाई से सटा इलाका

बिलासपुर जिला में धार्मिक कस्बा शाहतलाई के साथ लगता  भगतपुर गांव इन दिनों सुर्खियों में है। इस गांव के किसानों ने  मेहनत के दम पर गेहूं का बीज तैयार कर समूचे हिमाचल में अपनी अनूठी पहचान बना ली है।  यह गांव विकास खंड झंडूता की पंचायत नघियार के तहत आता है। गांव के किसानों ने गेहूं बीज पैदा करने के अलावा धान की खेती में अव्वल मुकाम हासिल कर रखा है। जिला स्तर पर आत्मा प्रोजेक्ट के तहत रोशन लाल चंदेल और जोगिंद्र सिंह दस-दस हजार नकद राशि व प्रशस्ति पत्र प्राप्त करके पशुपालन क्षेत्र में भी खासी पहचान ग्रामीणों ने बनाई है। कई किसान डेयरी फार्म चलाकर सैंकड़ों लीटर प्रतिदिन दूध का कारोबार कर रहे हैं।

सच यह भी है कि वर्ष 2003-04 में भू-सरंक्षण विभाग के माध्यम से बहाव सिंचाई योजना के तहत 12 लाख रुपए खर्च कर कुहलों का निर्माण कर एक बांध भी सरहयाली खड्ड पर लगाया गया था, परंतु आज सिंचाई योजना के लिए बनी हुई कुहलें जर्जर हालात में हैं। सरकार अगर प्रयास करे,तो किसानों को काफी हद तक राहत मिलेगी।

– पवन कौशल, शाहतलाई

माटी के लाल

दस फुट लंबा पालक

यूसुफ खान

फोन नं.: 88946-97653

जिला ऊना के अंतर्गत खान मशरूम फॉर्म नंगल संलागड़ी के प्रगतिशील किसान ने अपने ग्रीन हाउस में करीब दस फुट ऊंचा पालक का पेड़ उगा दिया है। जिसे देखकर यहां आने वाले लोग हैरान हैं। इस पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। यूसुफ खान द्वारा करीब दो माह पूर्व अपने ग्रीन हाउस में पालक के बीज की बीजाई की थी। देखते ही देखते पालक के दो पौधों ने अपेक्षा से अधिक ऊंचाई पकड़ना शुरू कर दिया। जिसके चलते इन पौधों को नहीं काटा गया। वहीं, अन्य पालक के पौधों को समयानुसार काट दिया गया। लगातार बढ़ रही इन पौधों की ऊंचाई को देखकर सभी लोग हैरान हैं। अन्य लोग भी दस फुट ऊंचे पालक के इस पेड़ को देखने के लिए आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यूसुफ खान इससे पहले मशरूम उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा चुके हैं। देश के अलावा विदेश में भी मशरूम उत्पादन कर चुके हैं। उधर, प्रगतिशील किसान यूसुफ खान ने बताया कि उन्होंने करीब दो माह पूर्व पालक का बीज लगाया था, लेकिन कुछ पौधे करीब 10 फुट ऊंचाई वाले हो गए हैं। उन्होंने कहा कि पालक के इस पेड़ को देखने के लिए कई लोग आ रहे हैं।

– अनिल पटियाल, ऊना

देख लीजिए 2 किलो का शलगम

ठाकुर राम प्रकाश

फोन नं.: 94594- 52830

आज भी कई किसान ऐसे हैं, जो कड़ी मेहनत व मिट्टी के साथ मिट्टी होकर खूब उत्पादन कर चोखी कमाई कर रहे हैं। प्रोफेसर कालोनी अंब के प्रगतिशील किसान ठाकुर राम प्रकाश ने भी कड़ी मेहनत से अपने खेत में ऐसे शलगम पैदा किए हैं जिनका एक-एक का भार दो किलो से भी ज्यादा है। इनके द्वारा पैदा किए गए इन शलगम को देखने के लिए कई लोग उनके पास पहुंच रहे हैं और इनको तैयार करने की विधि जान रहे हैं। ठाकुर राम प्रकाश ने बताया कि वह इससे पहले भी सब्जी उत्पादन करते आए हैं और इस बार भी उन्होंने अपने खेत में शलगम की फसल लगाई थी। उन्होंने इस फसल पर यूरिया या किसी कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि इस खेत में महज देशी खाद का ही प्रयोग किया।

टिप्सः

किसान भाईयों से मैं यही कहना चाहूंगा कि फसल एक छोटे बच्चे की तरह होती है। जैसे बच्चे को ज्यादा दवा नहीं देनी चाहिए वैसे फसलों को भी ज्यादा कीटनाशक देने से बचें। कीटनाशक भी फसल की सेहत खराब कर सकते हैं।

– अजय ठाकुर, गगरेट

आने वाले चार दिनों का मौसम

अगले चार दिनों में मौसम शुष्क रहने व 20 मार्च को हल्की वर्षा  होने की संभावना है। दिन व रात के तापमान में 1-2 डिग्री से. की बढ़ोतरी होने की संभावना है। हवा की गति दक्षिण-पूर्व दिशा से 8 से 12 कि.मी. प्रति घंटा चलने तथा औसतन सापेक्षित आर्द्र्रता 23-66 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।

अनुमोदित किस्मों की ही बिजाई  का कार्य  इस सप्ताह अवश्य पूरा कर लें। फ्रांसबीन की बौनी किस्मोंः वीएल-1, पूसा पार्वती व कंटेंडर इत्यादि की 45 गुणा 15 सेमी. की दूरी पर बुआई करें। खीरे, करेले और कद्दू की बिजाई भी पूरी करें।

– मोहिनी सूद, सोलन

साप्ताहिक कृषि कार्य…

बागबानी संबंधित कार्यः निंबू प्रजातीय पौधों में जिंक की कमी को दूर करने हेतू 500 ग्राम जिंक सल्फेट व 250 ग्राम अनभुझा चुना 100 लीटर में घोल बना कर छिड़काव करें।

बागबानों को सलाह दी जाती है कि गुठलीदार फलों में पता मरोड़ तेला की रोकथाम के  लिए डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत (200 मिली रोगोर 30 ईसी प्रति 200 लीटर) पानी में घोल बनाकर फूल खिलने से 7-10 दिन पहले गुलाबी कली अवस्था में छिड़काव करें। सभी फल पौधों में अगर अभी तक गली सड़ी गोबर की खाद व उर्वरक (सुपर फास्फेट व पोटाश) दिसंबर व जनवरी में न डाली हो तो नमी को ध्यान में रखते हुए अब तुरंत डाल दें। सेब में संजोस स्केल व माईट की रोकथाम के लिए तेल का छिड़काव 4लीटर/200 लीटर पानी  के हिसाब से करें। बागबानों को सलाह दी जाती है कि फूलों की अवस्था में पेड़ों पर कोई  छिड़काव न करें, जो परागण क्रिया तथा मधुमखियों के  काम को प्रभावित कर सकता है।

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सएप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।सा

सोशल मीडिया से

सतीश कुमार

आईटी एक्सपर्ट एवं किसान, नगरोटा बगवां, कांगड़ा

खेती सुधारने के नाम पर सरकार कैंप लगाती है। समारोह में नेताजी वही पुराना झमाकड़ा देखने के बाद अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं।  और फिर खेल खत्म। दूसरी ओर जापान जैसे देश खराब हालात में भी  तीन-तीन बार उन्नत फसल काटते हैं। वहां मशीनें काम करती हैं और हमें बारिश का इंतजार रहता है। हमारे नेता भाषण के बाद अपनी महंगी गाडि़यों में उड़न-छू हो जाते हैं।

किसानों के दम से हिमाचली मेले

हिमाचल में इन दिनों मेलों का दौर है। क्या आपको पता है कि मेलों की परंपरा किसानों से जुड़ी हुई है या यूं कह लें कि मेले हैं ही किसानों की बदौलत। बेशक अभी मेलों का प्रारूप छिंजों तक सिमट कर रह गया है, लेकिन दशकों पहले मेलोें की सारी आर्थिकी किसानोें के बूते चलती थी। वे वहां पशुओं की खरीद फरोख्त करते थे, तो उन्हें कृषि औजार मसलन हल, फावड़े, दराट और मिट्टी के बरतन वहीं मिल जाते थे। खैर आज ट्रेंड बदल गया है। पारंपरिक कृषि औजार अब मेलों में कम ही दिखते हैं, लेकिन किसानों का दंगल यानी छिंज मेलों को अपना पूरा समर्थन अब भी जारी है। देश भर के पहलवानों को हिमाचल में वे इनाम, सम्मान और प्यार मिलता है, जो और कहीं नहीं। हम आपको देश-प्रदेश के कुछ नामी पहलवानों से भी रू-ब-रू करवाएंगे, लेकिन उसके लिए इंतजार करिए अगले अंक का।

किसान बागबानों के सवाल

पोलीहाउस कैसे लगाया जाता है। इसके लिए कैसे और कहां अप्लाई करना होता है?

-सुनील कुमार, घाड़जरोट (नगरोटा सूरियां,कांगड़ा)

ड्रिप सिस्टम कैसे इंस्टाल होगा, पानी कहां से आता है। इसके लिए कहां संपर्क करें।

-शिव कुमार दत्ता, ऊना सिटी

– मुकेश जसवाल,

edit.dshala@divyahimachal.com

(01892) 264713, 307700,

94183-30142, 88949-25173

पृष्ठ संयोजन जीवन ऋषि – 98163-24264


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