जातिवाद…लोकतंत्र के लिए खतरा

By: Mar 20th, 2019 12:05 am

लोकसभा चुनावों की रणभेरी बजते ही सियासी पारे मंे आया उछाल हिमाचल मंे भी चढ़ता जा रहा है। सियासी दलों के साथ-साथ टिकट के कुछ चाह्वान जाति को मुद्दा बनाकर चुनावी समर मंे उतरने का दम भर रहे हैं। पर क्या जाति की बैसाखियों के सहारे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की पगडंडियों पर चलना उचित है! क्या जाति के नाम पर चुनावी समर मंे उतरने वाले नुमाइंदे लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं हैं, इन्हीं मुद्दों पर लोगांे की राय सामने ला रहा है, प्रदेश का अग्रणी मीडिया गु्रप ’दिव्य हिमाचल’  लकांत भारद्वाज की रिपोर्ट

 लोकतंत्र के लिए घातक जातिवाद

समाजसेवी ध्यान सिंह ढटवालिया का कहना है कि देश अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गया, लेकिन जाति, धर्म और नस्लभेद जैसे मतभेद कहीं न कहीं समाज को दीमक की तरह चाट रहे हैं। यह सच है कि कई नेता खासकर चुनावों के समय ऐसे मतभेदों को सिक्का चलाते हैं, लेकिन लोकतंत्र के लिए यह बहुत घातक है। नेताओं को समझना होगा कि यह केवल चुनाव जीतने का मसला नहीं है, बल्कि देश के भविष्य का सवाल है।

जाति के आधार पर चुनाव लड़ना सही नहीं

 विजय वर्मा मोबाइल विक्रेता का कहना है कि जाति के आधार पर चुनाव लड़ना और लड़वाना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। इससे एक तो सामाजिक रिश्तों में दूरियां पैदा होती हैं, दूसरा समाज में असमानता की भावना भी पैदा होती है। हमारे नेताओं को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे लोगों को इस तरह जाति के नाम पर न बांटे। क्यांेकि हो सकता है उन्हें थोड़े समय के लिए इसका फायदा हो जाए, लेकिन आगे चलकर परिणाम घातक होंगे।

 चुनाव जीतने को अपने समुदाय को तरजीह

युवा साविन चंदेलब का कहना है कि बचपन से हम स्कूलों में पढ़ते आए हैं कि जात-पात, ऊंच-नीच जैसे भेद समाज को बांटते हैं। हमें एकता की बातें सिखाई जाती हैं, लेकिन चंद नेता चुनाव जीतने के चक्कर में अपने समुदाय के लोगों को तरजीह देने लगते हैं। इससे दूसरे लोगों की जहां भावनाएं आहत होती हैं, वहीं उनमें न केवल उस नेता के प्रति बल्कि संबंधित समुदाय के प्रति भी विरोध उत्पन्न हो जाता है।

सब समान है कहने वाले जातिवाद बढ़ा रहे

दुकानदार उर्मिला शर्मा का कहना है कि जब चुनावों के समय में जातिवाद की बातें होती हैं , तो हमें लगता है कि अभी हम बहुत पिछड़े हुए हैं। क्योंकि यह देखकर आश्चर्य होता है कि मंच से नेता अपने भाषणों में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि मेरे लिए सब समान हैं, लेकिन वही नेता गुपचुप अपनी जाति के लोगों में जाकर बिरादरी का नारा देने के लिए उकसाते हैं, जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।

जनता जागरूक है

दुकानदार डिंपल का कहना है कि  यह सही है कि नेता चुनावों में कास्ट फेक्टर चलाने का प्रयास करते हैं, लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि अब जनता जागरूक हो रही है। लोग समझ रहे हैं कि केवल चुनावों तक नेता उनके साथ चिकनी-चुपड़ी बातें करेंगे और बाद में कोई नजर भी नहीं मिलाएगा। भेद किसी ाी तरह का हो लोकतंत्र के लिए घातक ही होता है। इसलिए इससे बचना होगा।

शुभचिंतक बनने का ढोंग

गृहिणी वीनिता का कहना है कि नेताओं ने भी आजकल मजाक बना रखा है। हर कोई समाज के किसी न किसी वर्ग को रिझाने के लिए किसी भी हद तक जा रहा है। कोई जाति के नाम पर वोट मांगते हैं, कोई महिलाओं के बीच अपनी पैठ साबित करने के लिए उनके शुभचिंतक बनने का ढोंग रचते हैं, तो कोई पूर्व सैनिकों को अपने पक्ष में करने में लगा हुआ है।


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